मां की कमी
मां की कमी
मंजिल बहुत शरारती थी। उसकी बढ़ती शरारतों से तंग आकर आज उसके टीचर जी ने उसके गाल पर दोनों ओर दो चांटे रसीद कर दिए। वह जोर जोर से रोने लगी। वह छोटी थी लिहाजा स्कूल में पिटने पर.. मम्मी... मम्मी पुकार कर रोए जा रही थी! तभी टीचर जी के कान में उसके यह स्वर पड़े। वह अपनी कुर्सी से उठे और उसे गोद में लेकर अपने सीने से लगा लिया। बच्ची बहुत देर तक सुबकती रही क्योंकि नन्हे गाल टीचर जी के सख्त हाथों को बर्दाश्त न कर सके थे।
उस दिन टीचर जी काफी परेशान नजर आए। अगले दिन वे उस मंजिल के लिए टॉफी और बिस्किट लाए । बच्ची मंजिल काफी खुश हो गई।
उसने कहा... थैंक यू सर ..! आप बहुत अच्छे हैं। पर आप कभी-कभी मारते क्यों हैं ...?
इस प्रश्न का से टीचर जी की आत्मा भाव विभोर हो उठी। इसका कोई उत्तर उन्होंने न दिया। बस वे आंखें बंद करके सोचते रहे।
कितने नादान होते हैं बच्चे भी.... एक पल में रोते तो.... दूसरे पल में थोड़ा सा प्यार पाकर खुश हो जाते हैं। पर यह मंजिल क्या करे.... जिसकी मां ही न है ।
मंजिल भला कैसे पाएगी अपने जीवन की मंजिल..? पर वह भी क्या करें ...जीवन की पहली पाठशाला का पहला गुरु... मां ही जब नहीं है.... कौन सिखाएगा उसे इस कठिन जीवन के ककहरे...! इसकी कमी इसके जीवन में हमेशा बनी रहेगी !
उसके बाद उन्होंने फिर से उसे गले लगाया ...इस संकल्प के साथ कि उन से जो भी बन पड़ेगा... उसकी भलाई के लिए वे हमेशा करते रहेंगे उसको अपनी मंजिल तक पहुंचाने के लिए....
