Meera Parihar

Children Stories

3.5  

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पक्षियों की सभा

पक्षियों की सभा

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चाची जी की छत पर कल पक्षी, गिलहरियां और चींटियां इकठ्ठी थीं। इसी बीच एक गिद्ध एक गिलहरी के मासूम बच्चे को उठा ले गया। उसके शोक में आज फिर सभी इकठ्ठे हुए। कबूतरों को बड़ा गुमान था कि वे महलों, मीनारों और घरों में इंसानों के बीच रहते हैं।

 ..कबूतर की इंसानों के साथ रहने वाली बात पर कि वह तो इंसानों की तरह जोड़े बना कर एक साथ रहते हैं।

   

" हा हा हा बुलबुल बुलबुलायी...". इंसान हमारी तरह रहना चाहते हैं और ये महाशय इंसानों की तरह। अपने मुँह मिठ्ठू बनना" तो कोई आपसे सीखे।"


 पड़कुलिया कुलकुलाती हुई कुछ ऊपर उड़कर जाती और फिर नीचे आ जाती। कितनी ही बार उसने यह मुहावरा दोहराया। मिठ्ठू नाम सुनते ही सुग्गा महाशय के कान खड़े हो गए। उनके मस्तिष्क में विचार सुगबुगाने लगे। ऐसा शोर मचाया कि सबकी बोलती बंद।

 

  ...चींटियां भी वहाँ चावलों पर चर्चा करने पहुँची हुई थीं। स्वभाव वश वे अपनी सखियों से अंग्रेजों और संभ्रांत भारतीयों की तरह मुँह से मुँह मिला मुस्करा कर आगे बढ़ती जाती थीं। कबीर दास जी का दोहा उन्हें कंठस्थ था। "चींटी चावल लै चली बिच में पड़ गयी दार ,कह कबीर दोऊ ना चलें ,एक ले दूजी डार।।" अतः वे किसी योगी की तरह महज चावलों पर ही अपना ध्यान केंद्रित किए थीं। हंसी ठिठोली के बीच कब सांझ होने को आ गयी , पता ही नहीं चला। सूर्य भगवान भी पेड़ों के पीछे से मुस्कुराते हुए सबको आशीष दे रहे थे । मानो कह रहे हों, देखो जीवधारियो ! मैं तो चला अस्ताचल होकर और कल फिर भोर में प्रकाश लेकर आऊंगा। " चल सको तो साथ चल दो ,दे सको तो अपने पल दो "। 

   

  उपस्थित सम्मानित सभी ने जो जैसा जहाँ था ,वैसा ही छोड़ा और चल पड़े अपने अपने घरौदों में। कौए ने चलते चलते एक प्रस्ताव रखा। पार्टी में यदि ड्रिंक न हो तो पार्टी, पार्टी सी तो लगती ही नहीं। अब तो मौका भी है और दस्तूर भी। आखिर हमारे एक साथी को गिद्ध ने अपना शिकार बनाया है तो ग़म गलत करने के लिए कोई सहारा तो चाहिए ही कि नहीं?"


.......आसमान में दो हंसों का जोड़ा उड़ कर अपने घर वापस जा रहा था। परिचर्चा का सार तत्व उनके कानों में सुनाई दिया। वे भी उतर लिए छत पर और अपना मंतव्य बताया। "भैये ! किसी को उठा ले जाने का मतलब शिकार करना ही नहीं रहा आजकल, ये अपने खेमे में मिलाने की कोशिश हो सकती है। अब इस काम में बड़ी कमाई है, अच्छा खाना, विदेशी सोमरस सभी कुछ मिलता है। इसलिए गम की नहीं खुशी की शेम्पेन छलकाइए। दादा ! आप तो भगवान के दरवार के कथा श्रोता हैं। अब आपकी बुद्धिमत्ता का कोई सानी तो नहीं है। फिर भी एक छोटी सी बात कही है आपसे। हम तो अपनी अनुभूत बातें बता रहे हैं आपको। अब नीर से क्षीर अलग करने की जरूरत नहीं पड़ती हमें। सोने के कलश में जल और चांदी की परांत में फल घर बैठे कार्यकर्ता सेवा में दे रहे हैं अपनी- अपनी।"


....." हमें सीख मत दीजिए, आखिर जमीर भी तो कुछ होता है कि नहीं? सिर्फ़ अमीर होना ही फितरत नहीं है हमारी। हंस के कपड़े पहन कर हंस नहीं बनते बाबू मोशाय ! बगुला - बगुला ही रहेगा। " कौवे ने बड़े अदब से कर्कश स्वर में कहा। अपनी असलियत खुलते देख बगुलों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और सीधे अपनी साधना स्थली को प्रस्थान कर गए। 


....इधर कौवे अपनी मंशा पर अडिग रहे और रात को उन्होंने हेलोवीन नाइट क्लब का गठन करने के उपलक्ष्य में सभी को सूचित किया और सभा समाप्त कर दी।


....."

   गुलाबी प्रकाश को देखने का लोभ संवरण न कर पाने के कारण चाची जी चढ़ गयीं अपने जीने की सत्रह सीढ़ियां अपने पुराने घुटनों को पकड़ कर । अरे ठाकुर जी जरा बाहर आकर देखिए.. "क्या गजब नजारे हैं। पेड़ों के पीछे चंदा भैया जैसे वैवस्वत छुपा -छिपाई भी खेलते हैं उनके साथ।"


.... अपने कमरे में बैठे -बैठे वे भी क्या करते। अतः चले गये सीढ़ियां चढ़ते हुए डूबते सूरज को देखने ठाकुर साहब भी। चाची की चंदा -सूरज के साथ इतनी आत्मीयता और घनिष्ठता देख जलने लगते । मानो आफताब उनके चेहरे पर चिपक कर छिप गया हो।    


  ...." गुड़िया की माँ ! यदि आपने हमारे दीदार को इतनी आतुरता दिखाई होती तो जीवन सफल हो जाता हमारा। अब देखिए न ! " हमारी जिंदगी तो चिपक गई है जोंक के मानिंद आपके साथ। न तो हटाते बनता है और न ही साथ रहकर लुत्फ ही मिलता है।"


...." अब हम जोंक नजर आने लगे हैं आपको, अहसान भी नहीं मानते हैं आप तो। चिपके तो आप हैं ततैया की तरह। हीरा की पहचान जौहरी ही कर सकता है। लोह पीटे तो आंच में तपा-तपा के मार ही डालते हैं। " 


...." ख़ामोश हो जाइए श्रीमती जी ! अब इससे आगे और कोई विवाद वाद नहीं।" ठाकुर साहब अपनी ठकुराहत की हेठी के अभ्यस्त जो नहीं थे।


...." अब क्या फायदा आने का ? अब तो डूब ही रहे हैं परमेश्वर।" ठकुराइन चाची ने हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए कहा।


....." ठाकुर साहब को अपने ज्ञान को बांटने में जो सुख मिलता था वह छप्पन भोग में भी नहीं था। वे तत्परता से बोले..." मालूम है जिसे आप डूब जाएंगे कहकर मामूली समझ रही हैं, उसमें तेरह लाख धरती समा जाएंगी।"


"..क्या...? " आश्चर्य से वे ठाकुर साहब को देखती रह गयीं और अवसर की नजाकत देखते हुए हाथ पकड़ कर एक फिरकी देते हुए कहा ,कुछ ऐसा ही तालमेल है धरती मैया और सूरज दादा जी का। " 


."...अगर तुम मोटी न हुई होतीं न.. तो एक हाथ से ऊपर उठा कर घुमा दिया होता। "


...." अब उम्र के हिसाब से बदन तो भरेगा ही । बिना वजह नजर लगाने से बाज नहीं आते हैं आप।" ठकुराइन चाची मुंह फुलाए हुए बोलीं। ..." बात सूरज देवता की हो रही थी और आपको रंगरलियां सूझने लगती हैं। सूर्य महाराज के विषय में कुछ बताएं तो जानें।"


  .".. सूर्य पौराणिक कथाओं में एक मुख्य देवता रहे हैं, वेदो में तो कई मंत्र सूर्य के लिये ही है। यूनानियों ने इसे हेलियोस कहा है। पौराणिक सन्दर्भ में सूर्य प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। वे महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। अदिति के पुत्र होने के कारण ही उनका एक नाम आदित्य हुआ। जिस प्रकार पृथ्वी और अन्य ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं उसी प्रकार सूरज भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। अब सूरज भगवान कोई आम इंसान तो नहीं ही हैं कि मैं उनके बारे में विस्तार से वर्णन करूँ। अपने नाती की किताब पढ़ कर देख लेना, बहुत जानकारी दी है उसमें। "


....." ठीक है जी ,गूगल बाबा की शरण में जाकर सब मालूम कर लूंगी। मेरी समझ में यह नहीं आता कि सूर्य जब एक विशाल तारा है तो ऋषि कश्यप इनके पिता और माता अदिति कैसे हो गयीं ? हम भारतीय हर चीज का मानवीकरण क्यों कर देते हैं। नाती को बताएंगे तो कन्फ्यूज हो जाएगा वह।" ठकुराइन चाची किसी ज्ञानी की तरह अपने पति का मुंह ताकने लगीं।


....." वैसे स्त्रियां बड़ी तेज दिमाग की होती हैं। शक करना इनकी फितरत है... फिर भी अबकी भागवत में इस विषय पर भी चर्चा करेंगे हम। ध्यान रखना..."! 


...."अब नीचे चलना चाहिए। दीया बाती का समय होने को है।" ठकुराइन चाची अपने पतिदेव का हाथ अपने हाथ में लेकर बोलीं। 


....." आप चलिए हम आते हैं।"


..... "देखिए हम सब जानते हैं, सामने वाली बहू बेटियां सूखे कपड़े उतार रही हैं। आप नयन सुख लेंगे और हालचाल भी पूछने लगेंगे। कैसी पढ़ाई चल रही है ? मम्मी-पापा ठीक हैं? बिना वजह बतंगड़ बनता है, अपनी इज्जत अपने हाथ होती है। आजकल तो मोबाइल में सारी हरकतें कैद हो जाती हैं। ज़रूरत पड़ने पर सबूत के साथ पेश की जाती हैं। पहले आप सीढ़ियां उतरिए ....,हम आ रहे हैं आपके पीछे -पीछे.... पौधों को पानी देकर। आपकी मानें तो शाम को पानी देने की जरूरत ही नहीं है जी। "


.... " सब मालूम है हमें,आपकी भी छत चर्चा होगी ,तब ही आज का कोटा पूरा होगा। भाई साहब हुए तो ये तारीफ होगी कि सुबह ही दलभरी सजा कर भेजेंगी। सब जानते हैं हम भी , कहेंगे तो आसमान ढहते देर न लगेगी।" 


....." चाय का पानी चढ़ा दीजिएगा, प्लीज़ " ठकुराइन चाची मनुहार के लहजे में बोलीं।


....." छत पर खड़े होकर सबको सुना रही हैं कि हम चाय बना कर पिलाते हैं...ये स्त्रियां भी दूसरों को दहकाने का जन्मजात हुनर लेकर आती हैं। देखते हैं किस- किस की चाय उफनेगी आज.... ठाकुर साहब बुदबुदाते हुए सीढ़ियां उतरने लगे।

*************


....... इधर चौदहवीं का चाँद अपनी चौदह कलाओं के साथ प्रेमियों के दिलों में ज्वार,भाटे ला रहा था। वहीं ठाकुर साहब की छत पर वायदे के मुताबिक कबूतर,गलगलियां,

कौवे इकठ्ठा हो गये ,मगर गिलहरियां नहीं पहुँचीं । एक ओर अपने साथी को खोने का ग़म तो दूसरे मकान मालिक का डर ...यदि पता चल गया कि उन्होंने दारू पार्टी की है तो सभी को चूहेदान में पकड़ कर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। जमावाड़ा देख निशाचर भी भेद लेने शामिल हो गए। चमगादड़ों ने एक दूसरे के घरों का हाल बता कर वाहवाही लूटी। उलूक किसी खोजी पत्रकार की तरह छत पर उतरे और आसपास के बाजार की खबरें सुनाने लगे। किस बालिका के साथ गेंगरेप हुआ ,किसने किसको झूठा फंसाया, किसके घर में खून के रिश्ते ने ही खून कर दिया। खबर कौवे की भी थी ....कौवा पूरे दिन लाइन में लगा रहा तब उसने विलायती बोतल खरीदी । मगर शान में किसी मर्सिडीज गाड़ी के ऊपर बैठ कर बोतल पांव में दवा कर‌ ला रहा था। गाड़ी डिवाइडर से टकराईं और उसके परखच्चे उड़ गए। कौवे के पैर से बोतल छूट कर नीचे गिर गयी और वह उड़ कर फिर से ठेके की लाइन में जाकर लगा है। 

.....कार के पास देखने वालों का जमघट लगा हुआ है। पुलिस आश्चर्य से देख रही है...आदमी तो आदमी अब गाड़ी भी दारूबाज हो गयी हैं। बोतल बाहर सड़क पर कैसे आ गयी ? जरूर गाड़ी पियक्कड़ रही होगी , इसीलिए नशे में डिवाइडर से टकराई है। खोजबीन चल रही है...उल्लू महाशय की बातें सुनकर सभी सकते में आ गये और सभा अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गयी। जनाने खेमें में मायूसी छा गयी। आखिर उन्होंने अमेजन से आज की पार्टी के लिए पोशाकें खरीदी थीं जिनका शुभ मुहूर्त ही नहीं हो सका।


क्रमशः 



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