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Meera Parihar

Inspirational

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Meera Parihar

Inspirational

कटोरदान

कटोरदान

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एक नयी सुबह नये सफर पर चलने को तैयार थी, भोर चार बजे ही आधा चाँद आसमां में अपनी सम्पूर्ण आभा से चमक रहा था और साथ ही एक तारा कुछ दूरी पर उसके अकेलेपन को गरिमामय बनाने के लिए सहयात्री बना हुआ था। मेनेजर श्रीधर की माँ भी आज अपने बेटे को स्टार की तरह महसूस कर रहीं थीं। उन्होंने पूरी रात ख्वाब में आधे चंद्रमा को पूरा करने का संकल्प लिया और जल्दी ही अपना दिन शुरू कर दिया। रामचरितमानस मानस की " प्रविस नगर कीजे सब काजा, हृदय राखि कौशलपुर राजा " की चौपाई को गुनगुनाते हुए अपने सभी काम सम्पन्न किए। अपने पुत्र के शादी के प्रति सकारात्मक रुझान को देखते हुए नयी ऊर्जा से ओतप्रोत थीं वे। उनके पांव में जैसे पहिए लग गये थे और उनका मन मयूर नर्तन का ख्वाब पाले अपनी बंद अलमारी में अच्छी सी साड़ी तलाश करने लगा।

लाल,गुलाबी पहनना छोड़ ही चुकी थीं । आसमानी रंग की चंदेरी साड़ी पहनकर वे अपने पुत्र श्रीधर के साथ गाड़ी में बगल की सीट पर बैठ गयीं। 

.धनश्री के घर के निकट ही श्रीधर ने माँ को छोड़ दिया। 

सामने ही दादा जी अपने गमलों में पानी लगा रहे थे, उन्हें बताया कि मेरी मांँ हैं ये और कुछ बात करना चाहती हैं।

अपने आने की सूचना रात को दे ही दी थी धनश्री के घरवालों को,तो आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं थी। आदर सहित माँ को अंदर कमरे में ले जाकर दादी जी के पास बिठा दिया गया।

तभी धनश्री भी तैयार हो कर बैठक के रास्ते ही जाने के लिए वहाँ आयी तो दादी ने श्रीधर की मम्मी को बताया,ये हमारी नातिन है जो होटल में काम करती है और अब वहीं जा रही है। धनश्री ने उन्हें प्रणाम किया और कहा ,'दादी अभी जल्दी में हूँ ,आटो भी बाहर आ गया है तो अब चलना होगा। आप आपस में बातचीत कीजिए।'

..बात माँ ने ही शुरू की ,'बहन जी ! कल श्रीधर जब घर लेट पहुंचे तो उन्होंने सभी बातें मुझे बतायी थीं और यह भी बताया कि आप अपनी बेटी के लिए लड़का देख रहे हैं। मैं भी अपने बेटे के लिए लड़की देख रही हूँ पर श्रीधर की सहमति न मिलने से बात कहीं आगे ही नहीं बढ़ सकी है। इसलिए मैंने सोचा आपसे भी पता कर लूँ कि आप कैसा लड़का चाहते हैं।'

..' बहन जी ! घर में मर्द मानुष ही हमारे यहाँ फैसला करते हैं। हम तो बस हाँ में हाँ मिला देत हैं।'

.....'बहन जी ! हमारे वे होते तो वे ही सब बातें करते, मैं तो अकेली रह गयी हूँ। नाते रिश्तेदार तो सब छोड़ कर चले गए। श्रीधर ने आपको हमारी आपबीती सुनाई ही दी होगी ।'

..हाँ बहन जी सब बातें मालूम भयीं , सुनकर बहुत दुख हुआ ,पर बहन जी होनी को कोई नाय टाल सके है। राजा हरिश्चंद्र ने शमशान में ड्यूटी करी और उनकी ब्याहता ने पानी भरिवे को काम करो हतो। पांडवन को पूरो जीवन वनन में बीत गयो । सीता मैया वन वन भटकीं। और्न की का कहें,हम खुदहि अपईं जगह बेचि कै ,फलन की दुकान चलाय रहे।'

.सही बात बताऊँ धनश्री बिटिया की दादी ! मैं अपने लड़का के लिए आपकी लक्ष्मी का हाथ माँगने आयी हूँ। अगर आप राजी हो जाएं तो। अब एक सप्ताह में ही बंगलौर जाने वाले हैं हम दोनों माँ -बेटा। इस बीच में ही अगर बात बन जाती तो "सोने पर सुहागा हो जाएगा " लड़का अच्छा कमा रहा है। आगे-पीछे कोई है नहीं,घर तो मेरे नाम पर है ही।"

इसी बीच धनश्री की मम्मी भी आ गयीं एक ट्रे में चाय और बेसन की पकोड़ियां लेकर। आपस में दुआ सलाम के बाद वे भी वहीं पर बैठ गयीं और कहा, आप हमारे घर तक आयी हैं,यह हमारा सौभाग्य है। अब घर के सभी लोग आपस में मिलजुल कर बातचीत कर लेंगे तो ही पता चलेगी सबकी राय।'

देखिए बहन जी ! इतनी जल्दी सब तैयार हो भी जाएं तो शादी की तैयारी में तो समय लगेगा ही।' दादी ने बताया... वैसे हम सभी आर्य समाज को मानने वाले लोग हैं। जल्दी भी कर लेंगे।' 

.घर में मशविरा करने के बाद मंगलगान का दिन तय हुआ और अपने समाज में यह सूचना दे दी गयी कि बड़ी बिटिया धनश्री का रिश्ता श्रीधर के साथ तय हो गया है और आर्य समाज मंदिर में यह विवाह सम्पन्न होगा। दादा जी ने छोला -भटूरा के साथ ही सादा, नमकीन,मीठी रोटियां भी स्माइली की शेप में बनवायी थीं जो यह संदेश दे रही थीं।  "हर इंसान की जिंदगी का अहम हिस्सा होती हैं रोटियांँ ...कभी खुशी कभी ग़म में शामिल होती हैं रोटियाँ!

इन्हें देना होगा मान ,कहती हैं रोटियांँ.! कहीं स्वर्ण थाल , कहीं हथेली पर सजती हैं रोटियांँ ! राजा हो या रंक ,सभी के उदर में हलाल होती हैं रोटियांँ ! बेकद्रियों पर , मोहताज भी कर देती हैं रोटियाँ !

..दूसरे दिन श्रीधर और धनश्री दोनों ही ने अपने हाथों में रोटियों से भरा कटोरदान लिए शपथ ली " हम हमेशा अन्न का मान करेंगे और यथासंभव अपने प्रयासों से अन्न की बरवादी रोकने का जागरूकता अभियान चला कर अपने अन्नदाताओं का सम्मान बढ़ाने में सहभागी बनेंगे।"

 ..... यह यात्रा उनकी सूझबूझ और बुद्धि से कहाँ तक चल पाती है यह तो समय ही निर्धारित करेगा। ये सफर श्रीधर और धनश्री का है ...अब वे इसे जैसे चाहेंगे... अपने अनुरूप बना कर चलते रहेंगे। उनकी जिंदगी में भी वही सब होगा जो हर आम और खास की जिंदगी में उनकी हैसियत के हिसाब से होता है.....इत्र की खुशबुएं...गज़रों पर ग़ज़ल, बिस्तर पर सलवटें, चूड़ियों की चटकन ,शर्ट पर चिपकी बिंदियां.... लिपिस्टिक के निशान और हाथों में रोटियों का कटोरदान.....काम पर जाते समय। साथ ही एक संकल्प कि होटल में जूठन का कटोरदान भरने से रोकना है।


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