उफ़ ये सर्दी
उफ़ ये सर्दी


उत्तर भारत में रहने वाले सभी मौसम का लुत्फ उठाया करते हैं। उनके पास हर मौसम के कपड़े होते हैं। विविधता में जीना उनको अच्छी तरह से आता है।
शारदा की पोस्टिंग जब बनारस से पिथौरागढ़ हुई तो मन में बहुत उत्साहित थी। कहाँ मई, जून की भयंकर गर्मी और कहाँ बर्फीली वादियों में रहने को मिलेगा। यूँ तो बाबा की नगरी का आकर्षण भी कम नहीं है क्योंकि पहाड़ों पर बाबा भोलेनाथ का बड़ा महत्व है, वे स्वयं और गौरा जी भी पर्वतीय क्षेत्रों के निवासी हैं, पर बाबा को काशी पसंद है, इसीलिए पर्वत वासी गुनगुनाते हैं कि "जो हैं पर्वतवासी, शिव के मन माहि बसे काशी"
शारदा को आए हुए यहाँ अभी आठ महीने ही हुए थे। सूती कपड़े तो अब बाक्स में बंद हो गये थे। हर वक्त ऊनी कपड़े ही पहनने पड़ते थे। मच्छर ,मक्खी भी यहाँ नहीं थे, जून में भी शाल ओढ़ कर रहना पड़ता था। वह अपने घर पर फोन पर बताती कि उसने गर्म कपड़े पहन रखे हैं और कमरे में सिग्गड़ रख लिया है तो सब बड़ा आश्चर्य करते। यद्यपि यहाँ का मौसम खुशनुमा रहा करता था, क्योंकि दिन में धूप अच्छी निकलती थी, और शाम होते ही ठंडक बढ़ जाती थी। ठंडे पानी से नहाना तो अब भूल ही गयी थी वह।
दिसंबर आते-आते सर्दी इतनी बढ़ गयी कि बिस्तर गीला-गीला लगता और व्लोअर चला कर दो-दो रजाइयों के अंदर रखकर गर्म करना पड़ता और एक बार अगर बिस्तर में घुस गये तो बाहर निकलने में नानी याद आने लगती। नलों में पानी आना बंद हो जाता, क्योंकि पाइप लाइन के अंदर पानी जम जाता है, तब बहते स्त्रोतों से ही पानी भर कर लाना होता है या फिर घर में इकट्ठा कर रखा पानी ही काम लेना पड़ता है।
एक बार उसने अपनी सहेली शालू से कहा ,आ जा यार देख ले यहाँ की ठंडक मेरे रहते ...
शालू तो जैसे तैयार ही थी,वह दूसरे दिन ही चल दी शारदा से मिलने। लोहाघाट पहुँचते ही ठंडी हवाओं ने उसे अपने कान, हाथ ढंकने को मजबूर कर दिया। वैसे वह घर से भी ऊनी कपड़े पहन कर आई थी, लेकिन यहाँ पर तो दोहरे वस्त्र पहनने पड़े। एक ढाबे पर चाय ली तो चाय के साथ मुंह से भी भाप निकल रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे भाप की बर्फ जम रही है। वह बहुत रोमांचित थी।
जब वह शारदा के पास पहुँची तो पहुँचते ही उसने कहा, सबसे पहले गर्म पानी और एक कप चाय पिला तभी कुछ बात करूँगी। शारदा ने सब तैयारी पहले ही कर रखी थी। कमरे में अंगीठी जल रही थी। हर जगह ऊनी कारपेट बिछे हुए थे। अंगीठी से बिल्कुल सट कर बिल्ली बैठी हुई थी।
शालू ने पूछा, "पालतू है?"
"नहीं यह ,सबकी साझी बिल्ली है, जब चाहे, जहाँ चाहे आती -जाती रहती है।
शारदा ने उसे अदरक वाली चाय दी और पूछा, शालू !और बता यात्रा में कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई?"
"नहीं शारदा सब ठीक रहा लेकिन बड़ा डर लग रहा था रास्ते में। एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ खाई। एक बात तो है शारदा! कुदरत के यहाँ किसी चीज की सीमा नहीं है।
कितनी वैभवशाली है हमारी पृथ्वी!"
"इसीलिए तो बुलाया है तुझे कि खुले आसमान और धरती को निहार ले यहाँ, वरना ढूंढ़ते रहो फ्लैट्स में अपनी जमीन, आसमान और चाँद।"
"अच्छा लग रहा है तुझे यहाँ नीरव शांति में?"
"हाँ बिल्कुल ! सुबह देखना सामने ही बर्फ से ढंकी चोटियां और सूरज की उनके साथ अठखेलियां। अभी सात बजने दे ,पूरी घाटी और पहाड़ियां बिजली की रोशनी से जगमगा उठेंगी। एक अलग ही नजारा होता है यहाँ रात में, जैसे कि किसी दूसरे लोक में हैं।"
"रात में बाहर टहलती हो क्या तुम?"
नहीं शालू! भूल कर भी मत निकलना तुम ,यहाँ अंधेरा होते ही बाघ आते रहते हैं, इसलिए खिड़की, दरवाजे सब बंद करके रखने पड़ते हैं। चल थोड़ा सूप पी लेते हैं, टमाटर और खूब सारा लहसुन डालकर बनाया है....यहां की भट दाल ,खीरे का रायता और मडुए की रोटी बनवाई है मैंने।"
"रायता ! इतनी ठंड में ?"
"खाकर देखना ,कोई ठंड नहीं है ,यहाँ पर सब खाते हैं, कुछ अलग हटकर होता है ये।"
अभी अपनी प्लेट रखकर हाथ धो ही रही थी शारदा कि शीशे के बाहर कुछ आसमान से झरता हुआ दिखा। उसने ध्यान से देखा और शालू को आवाज दी ...शालू!! कितनी भाग्य शाली है री तू...देख ! बाहर क्या गिर रहा है ?"
"ओ ! माई गॉड ! अविश्वसनीय !स्नो ! अरे देख न गोभी के फूल पर ,आड़ू के पेड़ पर,अरे ! बाउंड्री बाल पर,,,"उसने शारदा के दोनों हाथ अपने हाथ में लिए और गोल गोल घुमा दिया उसे। मेरी अच्छी दोस्त अगर तुम न होती तो मैं कभी नहीं देख पाती अपनी आँखों से यह दृश्य। थैंक्यू डियर..थैंक्यू...क्या बाहर चलें ?"
"नहीं यार , यहीं खिड़की से देखते हैं। सुबह देखेंगे बाहर जाकर।"
घंटों दोनों सहेलियाँ यह दृश्य देखती रहीं और हल्दी ,सोंठ वाला गर्म दूध खजूर के साथ पिया, लेकिन बिस्तर इतना ठंडा था , जैसे पानी में भिगो दिया है। दोनों ने पैरों में डबल मोजे पहने, हाथों में ग्लब्स और सिर को स्कार्फ से अच्छी तरह ढंक लिया और ऊपर से मंकी कैप लगा ली और कहा, हेलो सर्दी!! ब्लोअर को पलंग पर रखकर रजाईयां गर्म कीं और भेड़ के बालों से बना मोटा चुटका भी रजाइयों के ऊपर से डाल दिया। अब कुछ राहत मिली तो बातें करते- करते दोनों सो गयीं। सुबह के आठ कब बज गये पता ही नहीं चला।
शारदा सबसे पहले उठी ,उसने बाहर झांका ,देखा दो घोड़े उसके गार्डन में कहीं से घुस आए हैं और पत्ता गोभी पर जमी हुई बर्फ हटा कर उन्हें खा रहे हैं। उसने जोर से आवाज दी शालू! देख तो मेरी सारी मेहनत एक रात में ये घोड़े चट कर गये। अरे ! उठ न अब! देख बाहर स्नो ही स्नो रुई के फायों की तरह सब जगह बिछ गयी है। घरों की छतों , मुंडेरों पर ,आंगन में और पूरी घाटी में सफेदी छायी है शालू ! अगर पिघल गयी तो देखने को नहीं मिलेगी। चल कैमरा उठा और बाहर चलते हैं।"
"हे शारदे ! थोड़ा और सोने दे न। क्या कहा ...बर्फ है सब जगह" शालू ने रजाई के अंदर से ही कमरे को देखा सुबह हो गयी थी, हल्की-हल्की रोशनी कमरे में आ गयी थी। उसने भारी मन से रजाई हटाई और शारदा से कहा, यार गर्म पानी है क्या?
"हाँ शालू ! पानी और चाय थर्मस में भर कर रखी है। उठ अब जरा ब्रश करके आ और दोनों मिलकर चाय पीते हैं, आज मैंने तुलसी ,लौंग, काली मिर्च की चाय बनायी है।"
"अरे सीधे-सीधे बोल न मसाला चाय है, इसमें तो थोड़ा मक्खन डालेंगे, अच्छा लगता है, मेरे पास है। मैं लेकर आयी हूँ..."
मम्मा ने गोंद ,मेवे के लड्डू और मठ्ठी भी रक्खी हैं। इनके साथ ही पीते हैं चाय।"
शालू ने बेमन से रजाई हटाई और खिड़की पर आकर देखा तो देखती रह गयी, उसने शारदा को गले लगा लिया।
"चल अब इस स्नो का आनंद लेते हैं। अभी मेरे डिपार्टमेंट के साथियों का फोन आया था कि सब इकट्ठे होकर घाटी तक जाएंगे और फिर गाड़ी से चंडाक मुस्टमानु तक, वहाँ से पूरा पिथौरागढ़ देखने को मिलता है। पर वहाँ अभी बहुत बर्फ है , ऊंँचाई पर है न...।"
"जींस चलेगी न ? दस्ताने और स्पोर्ट्स शूज भी ?"
"बिल्कुल चलेगी , समुद्र के किनारे थोड़े ही जा रहे हैं।नाश्ते में राजमा चलेगा या ब्रेड,बटर..?
"दोनों....और बढ़िया मसाला चाय मक्खन मार के..."नहाना भी पड़ेगा क्या ?"शारदा ?
"लौट कर "....आ मेरे साथ किचिन में...."
"इतनी बर्फ में भी यहाँ बर्कर काम करने आ जाते हैं ?आते ही अंगीठी सुलगा दी ,अगर नहीं "आते तो क्या करती तुम ?"
"शालू! ये सब तो यहाँ चलता ही रहता है, बारिश, सर्दी बर्फ...पर यहाँ स्कूल भी चलते हैं और अन्य काम भी।
"गैस पर काम करती हूँ ,अगर बर्कर नहीं आते हैं तो खुद भी अंगीठी जलाना आता है मुझे...यहाँ सिग्गड़ में लकड़ी भी जलानी पड़ती है, उससे तापते रहते हैं और घर भी गर्म रहता है, बिजली आती रहती है तो हीटर भी चलता है...पर अब बर्फ जम गयी है तारों पर ... इसलिए विद्युत सप्लाई बंद है। ऐसे ही काम चलाना पड़ता है यहाँ।"
"वैसे बड़ी कठिन जिंदगी है न यहाँ की."
"मैडम अंगीठी तैयार है, पानी रख दिया है गरम होने । "जगवती ने बाहर से आवाज लगाई...
"अरी,जगवती! मेरी सहेली के लिए दो अखरोट और चूक तो तोड़ दे..."
"मेडम! बर्फ जमी है, सब पर ...कल तोड़ दूंगी।"
"ठीक है, कुछ तैयारी कर देना , खाना बनाने की ,लौट कर बना लूंगी कुछ...आ चाय पी ले ,सिग्गड़ के पास बैठ कर।"
"शारदा! मैं तो तैयार हूँ, कुछ खा लेते हैं फिर जल्दी चलते हैं...आय एम वेरी एक्सायटैड।"
"आय आल्सो डियर! रेडी नाउ"जल्दी चाय पी और कुछ पेट में डालो और चलो बाहर.... बाहर देखो! बहुत लोग आ गये हैं।"वह काली टोपी वाले भट्ट साहब, लम्बे वाले मैथानी और वे गोरे-गोरे ,देवराडी़ जी और वह छोटे वाले हमारे अपने सक्सेना साहब हैं,बाल बच्चों को देखो कैसे गोले उठाए घूम रहे हैं। चलो जल्दी निकलो बाहर......।"
'नीचे उतरते समय मेरा हाथ पकड़ लेना शारदा! बड़ा डर लगता है मुझे"
"डरने की कोई बात नहीं है ,दूर से देखने में ही लगता है, पास जाने पर बहुत समतल होती है जमीन..."
"बना ले एक गोला रुई के फाहों का और जी ले अपना बचपन यहाँ पर ....."
"क्या मैं इसे खा भी सकती हूँ..?" जोर से बोलूँ ...लव यू जिंदगी ?...