सच्चे मित्र
सच्चे मित्र


'साक्षी! दो दिन बाद मेरा पेपर है, दो दिन के लिए एक रूम मिल जाए तो बताना।'
' 'फिक्र न कर सखी ! मैं हूँ न'। साधना से बात करती हूँ अभी , अभी फोन रख...अरे सुन....तेरी तैयारी कैसी है इस बार ? एक्जाम क्लियर करके दिखाना है तुझे हर हाल में।'
....' ठीक है साक्षी ! मेरे हाथ में होता तो पिछली बार ही निकाल लेती। तेरा ठीक है पैसे खर्च करके सीट ले ली।'
......'क्या खाक ठीक है...चुकाऊंगी भी तो मैं ही और बाउंड भी हो गयी हूँ ,पाँच साल के लिए, गधे जैसी जिंदगी हो गयी है। खैर छोड़ तू अपनी तैयारी पूरी रखना। मेरी बुई की बेटियों के हास्टल में पता करती हूँ।'
...शाम को साक्षी का फोन आता है और वह बताती है कि रूम मिल जाएगा, बुकिंग हो गयी तेरी पक्की और खाने -पीनेकी चिंता से बेफिक्र रहना। बहुत अच्छा खाना बनाती है वहाँ की कुक।'
.... 'थैंक्यू डियर ! तूने मेरी सारी चिंता दूर कर दी ।दोस्त हो तो साक्षी जैसी।"'
'शर्मिंदा न कर ,बैग उठा और चली आ। वापस ले अपना थैंक्यू.....अभी...।
एक्जाम से दो दिन पहले सखी हास्टल पहुँच गयी और अपने कमरे में अपना बैग पटक कर सीधे साक्षी की बुई की बेटियों साधना, आराधना के रूम पर मिलने पहुँची। दोनों अपना लंच ले रही थीं। अतः उन्होंने सखी को भी लंच के लिए बोला,पर सखी ने बताया कि वह डिनर लेगी ,लंच ले चुकी है तब आराधना ने एक खूबसूरत चाकलेट के डिब्बे से चाकलेट लड्डू खाने के लिए दिया और बताया कि ये 'उसके पापा ने शिकागो से भेजे हैं।'
...वाओ .. कितनी लकी हो तुम शिकागो की चाकलेट.. किसलिए गये हैं अंकल वहाँ ? सखी ने उनके रूम की सज्जा पर एक नजर दौड़ाई। छोटे से कमरे में एसी,फ्रिज, म्यूजिक सिस्टम,ढेर सारे कैसेट और किताबें बड़े करीने से सजा रखी थीं।
... 'आराधना तुमने तो एकदम घर जैसा सामान रख रखा है । लगता है इसी कमरे में ही रहोगे हमेशा।'
....'सही पकड़ी हो सखी ! ये हमारा घर ही है जब से होश सम्भाला है ,यह कमरा और हाॅस्टल वाले भैया ही हमें सम्भाल रहे हैं। हाई स्कूल के बाद ही हम दोनों बहनें इस कमरे में आ गये थे। साधना तो नाइंथ क्लास में थी तब ...अब ये एम बी ए कर रही है और मैं दंत चिकित्सक हो गयी हूँ।'
....' घर पर क्यों नहीं रहे तुम लोग ?'
....चल छोड़ भी ... पर थोड़ा बताती हूंँ , नहीं तो तू अपनी स्टडी पर ध्यान नहीं दे पाएगी। यह एक लम्बी कहानी है। शादी करने के तीन साल बाद पापा शिकागो शिफ्ट कर गए और मम्मी को बोला कि वे सैटल होने के बाद उन्हें बुला लेंगे ,पर पांच-छह साल तक मम्मी इंतजार करती रहीं। मैं और साधना उस समय छः और आठ साल के हो गये थे। हम सभी लोग अपनी दादी के घर में रहते थे , मम्मी ने इंतजार किया पर पापा नहीं लौटे और न ही मम्मी को बुलाया, पर ख़र्च के लिए पैसे भेजते रहते थे। मम्मी ने भी लेक्चरर की नौकरी कर ली और अपनी पसंद से शादी कर ली और हम लोग अपनी दादी और बूआ के आश्रय में पल कर बड़े हो गये । बूआ की शादी हो गयी, दादी हमें छोड़कर ऊपर चली गयीं तो हास्टल ही हमारा आशियाना बन गया। अब हम बड़े हो गये हैं और खुद को सम्भालना आ गया है। पापा जरूरत के पैसे भेजते रहते हैं, पर किसी अन्य से शादी करके वहीं के हो गये हैं।
.....सखी आराधना को विस्मय से देखती रह गयी और चाकलेट का गोला खाकर अपने रूम पर लौटने लगी तो उसने दोनों बहनों को शुक्रिया कहा ।
.... आराधना ने उसे आश्वस्त किया कि उसे जो भी जरूरत हो , निःसंकोच कहे। यहाँ कोई परेशानी नहीं होगी। शाम का खाना हमारे साथ ही खाना, ठीक आठ बजे....आ जाना।
'...तुम दोनों मेरी प्रेरणा हो आराधना-साधना ! तुम्हें भुला पाना बहुत ही मुश्किल होगा मेरे लिए। शाम को मिलते हैं डियर!