दोस्ती
दोस्ती


रानू खरगोश और गीतू कोयल बचपन से पक्के दोस्त थे। दोनों जंगल में मिलजुल कर रहते थे। पूरे दिन खूब धमा चौकड़ी करते थे। जंगल के पास जो खेत थे वहां से रानू, गाजर तोड़कर लाता था ,और गीतू के साथ मिल बांट कर खूब मजे से दोनों उन लाल -लाल रसीले गाजरों का आनंद लेते थे। उन दोनों के जंगल में दूसरे मित्र भी थे पर वे दोनों एक दुसरे के घनिष्ठ मित्र थे। उनका याराना ऐसा था की उन्हें एकदूसरे के सिवा और कोई दिखाई ही नहीं देता था। दिन,महीने,मौसम,साल बदलते, पर उनकी दोस्ती पर मजाल कोई काली धूप का साया तक पड़ा हो।
दिन ऐसे ही खुशहाली में बीत रहे थे।
एक दिन की बात है जब रानू पास के खेतों से गाजर लेने गया हुआ था और गीतू अपनी मीठी-मधुर आवाज़ में आँखें बंद कर गीत गुनगुना रही थी। तभी पास से जंगल के राजा शेरू, शेर जंगल में भ्रमण करते हुए अपने परिवार समेत वहां से गुजर रहा था। शेर ,उसकी पत्नी,और उसके दो नन्हे शावक गीतू की मिश्री से मीठी आवाज सुनकर, उनके कदम वहीं थम गए और सभी मंत्रमुग्ध हो उसकी मधुरता के रस में खो गए। कुछ देर बाद जब गीतू ने गाना बंद किया तो उन सभी को ऐसा लगा जैसे वे स्वर्ग से वापस पृथ्वी पर लौट आये हो । शेरू ने गीतू की ओर मुखातिब होकर ,उसकी तारीफों के पुल बाँधते हुए कहा "हे खगरानी ,आपकी आवाज का माधुर्य बहुत ही उच्च कोटि का है ,मैंने आज तक इतनी मिठास भरी, मन को मोहने वाले बोल नहीं सुने ", शेरू की पत्नी ने भी अपने पति की बात को जारी रखते हुए गीतू की आवाज की बहुत सराहना की और उपहार में उसे उसकी मनपसंद चीज़ मांगने को कहा। इस पर गीतू बोली " मेरी आवाज से आपके मन को सुकून मिला, ख़ुशी मिली , वही मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार है , मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए महारानी । शेरू उसकी यह बात सुनकर गीतू का और भी अधिक कायल हो गया और उसे भेंट में मोतियों की बहुत सुन्दर माला दे दी और फिर शेरनी और अपने दोनों पुत्रों के साथ वापस राजमहल आ गए।
शाम को जब रानू गाजर लेकर वापस आया तब गीतू ने पूरा वाक्य उसे सुनाया और मोतियों की माला भी दिखाई। यह सुनकर रानू बहुत खुश हुआ और बोला " तुम गाती ही इतना प्यारा हो की महाराज क्या, स्वयं भगवान् भी तुम्हारी आवाज सुन ले ना तो उन्हें भी अपनी कृति पर यकीन न हो ,वे भी कायल हुए भी ना ,ना रह पाए और इस बात पर मैं भी तुम्हे कुछ देना चाहता हूँ। "
ऐसा कहकर उसने गाजर के रूपरंग का,प्लास्टिक का एक यन्त्र अपनी जेब से निकाला और उसकी ओर बढ़ा दिया। पहले -पहले तो गीतू ने उसे गाजर ही समझा ओर जैसे ही उसे खाने को हुई , रानू ने उसे टोक दिया ओर कहा " अरे पगली यह कोई खाने वाला गाजर नहीं है बल्कि अपनी आवाज को रिकॉर्ड करने का यन्त्र है जो मुझे आज वापस जंगल लौटते हुए शहर में ज़मीन पर पड़ा मिला। इस पर यह जो बटन है इसे दबाने से हम अपनी आवाज को रिकॉर्ड कर बाद में कितनी ही बार सुन सकते हैं। " ओर फिर उसे कुछ गाने को कहा " गीतू ने अपना सबसे पसंदीदा दोस्ती का गाना गया ,जिसे रानू ने रिकॉर्ड कर लिया ओर फिर उसे बार बार सुनते हुए दोनों ने खूब मजे से गाजर खाये।
इधर जब से रानी गीतू का गाना सुनकर राजमहल लौटी थी , उनका मन उसकी आवाज में अटका रह गया था। रानी को धुन सवार हो गयी थी, गीतू का गाना फिर एक बार सुनने की ओर उन्होंने यह फरमाइश महाराजा शेरू को बताई। शेरू ने आजतक रानी की हर मांग पूरी की थी ओर इसे भी वे मना नहीं कर पाए। शेरू ने भी सोचा की क्यों न गीतू को इस राजमहल में ले आएं, इससे राजमहल की शोभी बढ़ेगी ओर गीतू की आवाज को सुनने का सुख भी वे सभी रोज ले पाएंगे। शेरू ने अपना यह प्रस्ताव लेकर भोलू बन्दर को तुरंत गीतू के पास भेज दिया।
रानू ओर गीतू यह प्रस्ताव सुनकर बेहद प्रसन्न हुए और जल्दी -जल्दी अपना सामान बांधने लगे। उन्हें ऐसा करते देख भोलू ने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा की महाराज ने सिर्फ गीतू को लाने का आदेश दिया है। यह सुनकर वे दोनों एक दुसरे को स्तब्ध खड़े देखने लगे।
रानू ने गीतू की आँखों में चर्चित होने की ललक, लोकप्रिय होने का उन्माद, को भांप लिया और अपनी कातर निगाहों की एक दोस्त की बेचारगी को छुपाते हुए गीतू से बोला " मैं तो हमेशा से तुम्हारी कला की गहराई को जानता था, अब देखना पूरी दुनिया उसका लोहा मानेगी ,संसार को भी पता लगने दो मेरी गीतू की महत्वाकांक्षा को कोई
नहीं नाप-तोल सकता , तुम्हे जाना चाहिए ।
यह सुनकर गीतू ने उसे गले लगा लिया और खुश मन से उससे विदा ली। रानू ने एक आंसू भी उसके समक्ष नहीं बहाया था और उससे विदा लेने के बाद फूट -फूट कर दिन भर रोया था।
उम्मीद और लालच की जंग में लालच जीत गया था।
भोलू बन्दर के साथ राजमहल पहुँचते ही गीतू का स्वागत बहुत जोर - शोर के साथ हुआ था। अनेकों तोहफों से उसका सत्कार किया गया। महाराज शेरू और महारानी शेरनी स्वयं उसका स्वागत करने मुख्य दरवाजे तक पधारे थे। पूरे राजमहल में हर्षोउल्लास का माहौल था। गीतू का अपना एक बहुत बड़ा कक्ष था। जहाँ हर प्रकार की विलास का सामान उपलब्ध रहता था। अनेकों नौकर -चाकर उसके एक आदेश पर प्रकट हो जाते थे। हर शाम राजमहल के मुख्य सभागार में उसका प्रोग्राम होता था जिसे सुनने दूर दूर से जानवर आते थे। उसकी आवाज, उसकी कला की ख्याति पडोसी जंगल के राजा के कानो में भी पहुंची और वे भी उसका प्रोग्राम देखने पहुंचे। अब उसकी प्रसिद्धि की कोई सीमा नहीं थी। हर कोई उसे देखना, सुनना चाहता था, उसकी एक झलक के लिए लोग महीनो इंतज़ार करते थे। इतनी चकाचौंध में गीतू रानू को लगभग भूल सी गयी थी।
रानू ने कितनी ही बार उससे मिलने का प्रयत्न किया पर उसे मुख्य दरवाज़े से ही अपमानित कर निकाल दिया गया।
ऐसे ही ६ महीने कब निकल गए गीतू को पता ही नहीं चला। अब धीरे धीरे गीतू की आँखों पर से चकाचौंध का चश्मा उतरने लगा। वहां इतने बड़े राजमहल में , करोड़ो प्रशंसकों की भीड़ में अपना कहने वाला कोई भी नहीं था उसका, जो उसे उसकी कला के कारण नहीं , उस गीतू की तरह देखता ,जिससे अपने मन की हर बात कर सके। अब रानू की याद उसे सताने लगी। उसके साथ बिताया हर पल , वह आज़ाद स्वछंद जीवन का हर एक दिन उसे एक फोटो एल्बम सा उसके दिमाग में पन्ने पलटने के समान प्रतीत हुआ और उसकी आँखों से अश्रु धरा बह निकली। अब उसे यह लोकप्रियता , यह नौकर चाकर, यह धन दौलत कुछ नहीं चाहिए था। उसे बस रानू के पास जाना था।
उसने यह बात शेरू और शेरनी को बताई तो पहले तो उन्हें मज़ाक लगा पर फिर गीतू के मुख पर दृढ़ निश्चय के अटल भाव देखकर वे बोले "तुम यहाँ से नहीं जा सकती और अगर अगली बार ऐसा ख्याल भी तुम्हारे मन में आया तो यह सब खो दोगी । यह सब हमारा दिया हुआ है और हमें एक पल नहीं लगेगा तुमसे यह सब छीनने में ,तो यह ऐशो -आराम में रहो और बाकी सब भूल जाओ " वह रात को किसी को भी बिना कुछ कहे- बताये बस रानू से मिलने उड़ चली। उसने चार दिन का सफर डेढ़ दिन में पूरा कर लिया था। उसे भूख प्यास, दाने किसी की सुध नहीं थी। वह रानू के गले लग उससे माफ़ी माँगना चाहती थी।
अपने पुराने वृक्ष के झुरमुट में पहुँचते ही उसके प्रीत को तरसते प्यासे नयन अपने रानू को पुकारने लगे,तलाशने लगे पर वह वहां नहीं था। सोनू हिरन ने उसे जब रोते देखा तो उसे बताया की रानू को पिछले १५ दिनों से किसी नहीं देखा है ,शायद वो यहाँ से हमेशा के लिए चला गया है और कहाँ गया किसी को कुछ भी नहीं पता या फिर ऐसा भी हो सकता है की ,,,,गीतू ने उसे ऐसे गुस्से में लाल होकर घूरकर देखा की सोनू उसी पल डर के मारे वहां से चला गया।
गीतू की आँखों से आंसू अनवरत बह रहे थे। लगातार बहते आंसू में वह पेड़ के हर झुरमुट में "रानू रानू" की आवाज भरे गले से लगा रही थी
उसकी नज़र वहीँ एक कोने में पड़े ग़ाज़ारो के ढेर पर गयी। जहाँ वे दोनों खाना खाते थे, ठीक उसी जगह पर रानू ने हर दिन के हिसाब से गीतू के हिस्से की गाजर रखी हुई थी । गीतू ६ महीने पुरानी बासी गाजर रोते हुए खाने लगी। "वो सड़ी गली,बासी गाजर रहने दो , यह खाओ ,अभी ताज़ा ताज़ा लाया हूँ " रानू की आवाज सुनकर गीतू फूट -फूट कर रोने लगी और भागकर रानू के गले लग गयी। वह बस रोते हुए यही दोहरा रही थी " मुझे माफ़ कर दो रानू , मैं बस एक बुद्धू बेवकूफ गिलहरी हूँ। रानू ने उसके आंसू पोंछे और एक गाजर जेब से निकाला और कहीं से यह आवाज वातावरण में गूंजने लगी " मैं बस एक बुद्धू बेवकूफ गिलहरी हूँ","मैं बस एक बुद्धू बेवकूफ गिलहरी हूँ ", मैं बस एक बुद्धू बेवकूफ,,,,,। दरअसल यह वही यन्त्र था जिसमे आवाज रिकॉर्ड कर सकते थे। आंसुओं से भरी आँखों में मुस्कान की लहर तैर गई थी। दोनों खिलखिला कर हंस रहे थे।