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Abhishu sharma

Inspirational

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Abhishu sharma

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रतलू और मार्क

रतलू और मार्क

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 बाल जेल से सेट थे ,चेहरे पर एक टेढ़ी शरारत भरी मुस्कराहट थी। हॉफपैंट कमर को जकड़े थी या कमर को हॉफपैंट पकड़े थी यह अंदाजा लगाना वाकई मुश्किल था और उस पर एक झूलती नारंगी रंग की टीशर्ट पहने रतलू अपने दोस्त मार्क के पास दूध का गिलास लिए खड़ा था। दोनों अपनी किशोर उम्र में थे । 

रतलू और मार्क बचपन के दोस्त थे। मार्क ज़िन्दगी को लेकर प्रैक्टिकल रवैया रखता था ,संजीदा था काफी सीरियस किस्म का था अपने जीवन को लेकर। छोटी -छोटी बातों का ख्याल रखता था ,रतलू के माता पिता की माने तो समझदार बच्चा था मार्क और उनके बेटे की उससे दोस्ती ,आज तक के सारे नालायकी से भरे बेकार के कामों में से किया गया उसका एक अदद अच्छा काम था ।

रतलू जीवन में हर एक चीज़ को लेकर बिल्कुल बेपरवाह था । तनावमुक्त रहता था ,औपचारिकताएं नहीं करता था। चीज़ों को आसानी से नहीं समझ पाता था पर वो बात, जिस कारण मार्क उसका दोस्त बना था वह थी उसकी ज़िंदादिली और किसी भी सिचुएशन कैसे भी हालातों में उसका मुस्कुराते रहना । कुछ भी कैसी भी कितनी ही गड़बड़ क्यों ना हो जाती, रतलू मुस्कुराना नहीं छोड़ता था।

समझदार लोगों के शब्दों में पिरोकर कहूं तो ज़िन्दगी के उस पड़ाव पर जब लगता है सब कुछ खत्म हो गया है ,उठने को कुछ भी नहीं बचा है ,रोशनी का नामोनिशान नहीं हैं दूर -दूर तक बस अन्धेरा ही अन्धेरा है हर जगह ,तब सौ में से निन्यानवे लोग उम्मीद छोड़ देते हैं पर हमारा प्यारा रतलू इन हालातों में कहता " अब कोई बंदिश ,कोई समाज की बाँधी बेड़िया, हथकड़ियां नहीं है हम पर ,जैसे मर्ज़ी जहां मर्ज़ी हाथ पैर मार सकते हैं हम । खोने को कहीं गिरने को कुछ है ही नही अब तो बस उत्थान होगा,सब मन का होगा और जो भी होगा अच्छा ही होगा।


एक बार की बात है दोनों दोस्त क्रिकेट खेल रहे थे की खेल खेल में उनसे पड़ोस के खीरा मामा का विदेश से लाया एक बहुत कीमती कांच का बर्तन टूट गया। मार्क के तो मानो 'काटो तो खून नहीं' वाला हाल हो गया था पर रतलू ने अपनी सच्चाई और वाकपटुता से बात संभाल ली।रतलू ने खीरा मामा के घर जाकर उन्हें अपनी भोलीभाली तोतली आवाज़ में सारा वाकया कह सुनाया। मामाजी ने ना सिर्फ दोनों को माफ़ कर दिया पर साथ ही साथ एक -एक चॉकलेट भी दी। दोनों बहुत खुश हुए।


अभी कल की ही बात है , मार्क रात का खाना खाने के बाद अपना दूध का गिलास रतलू को यह कहकर पिला आया था की इससे उसकी बुद्धि तेज होगी और उन दोनों को मिलकर जो होमवर्क करना है ,जो कठिन सवाल हल करना है उसमे वो अच्छे से दिमाग लगा पाएगा। यह सुनकर दूध का गिलास एक सांस में गटक गया रतलू और पीते ही अपनी स्टडी टेबल पर किताब -कॉपी खोलकर बैठ गया। उसे पढ़ता देख मार्क भी पास पड़ी कुर्सी पर बैठकर अपनी किताब खोलकर पढ़ने लगा। करीब पैंतालीस मिनट तक बिना एक अक्षर भी बोले दोनों पढ़ते रहे। मार्क ने रतलू को आजतक इतने ध्यान से पढ़ते नहीं देखा था। आखिर मार्क ने ही लगभग एक घंटे बाद कमरे की चुप्पी तोड़ी और रतलू की तारीफों के पुल बांधते हुए उसकी कॉपी में झाँकने लगा, तभी उसे एक झटका लगा की कॉपी तो बिलकुल साफ़ थी ,एक अक्षर नहीं लिखा गया था उसमें।

उसी वक़्त रतलू ख़ुशी और उत्साह में अपनी कुर्सी से इतनी ज़ोर से कूदा की उसका सिर लगभग छत को छू गया ,वह उत्साहित होकर चीखते हुए बोला " मार्क मेरे दोस्त ! मुझे मिल गया ,मुझे मिल गया "। मार्क को लगा रतलू ने होमवर्क में टीचर के दिए कठिन सवाल को हल करने का तरीका खोज लिया है। मार्क खुश होते हुए उसके उत्साह में उसके साथ जुड़ गया। उसके संग कूदते हुए मार्क ने भी ख़ुशी में चिल्लाते हुए पूछा " मुझे भी बताओ दोस्त क्या मिल गया "?

रतलू : " मार्क मेरे दोस्त ! तुम्हारे लाए शक्तिशाली दूध की शक्तिशाली ताकत से मेरा दिमाग शक्तिमान बन गया है,मुझे अपने शक्तिशाली दिमाग की ताकत से याद आ गया है की आज स्कूल में टीचर ने हमें क्या होमवर्क दिया था' ।

मार्क ने यह सुना और अपना सिर पीट लिया। वो रतलू से बोला 'पिछले एक घंटे से तुम बस होमवर्क का टॉपिक याद कर रहे थे,मैं यहीं बैठा था ,मुझसे ही पूछ लिया होता '।

"हाँ पूछ सकता था पर फिर दूध की शक्ति को भी तो आजमाना था ना " रतलू मार्क के चेहरे पर चिढ और आवाज़ में निराशा से बेखबर अपनी मासूमियत में चहकते हुए बोला।


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