सच की अफवाह
सच की अफवाह
पुराने मंदिरों और गुफाओं की गहनता में जाने पर एक धूल के गुबार के साथ ये अफवाह उड़ी थी की इस दुनिया के निर्माण के वक़्त तीन तरह के लोग पाए जाते थे।
उस वक़्त की दुनिया सिर्फ दो ही समुदायों 'मर्द और औरत' में ही विभाजित नहीं थी बल्कि यहां तीन तरह के प्राणी थे।
मर्द/मर्द
मर्द /औरत
औरत/औरत
सरल या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हर एक इंसान, दो लोगों के मिश्रण से निर्मित था। सभी इस तरीके की संयोजन की व्यवस्था से संतुष्ट थे या ये भी मुमकिन है की किसी ने ज्यादा सोचा नहीं इस बारे में कभी ,इसलिए सभी बेहद खुश रहा करते थे। पर फिर एक दिन ,,,,
पर फिर एक दिन भगवान जाने भगवान को ना जाने क्या सूझा की उन्होंने चाक़ू लिया और सभी के बीचोंबीच से चीरा लगाकर उन्हें आधा-अधूरा कर दिया। वो कहते है ना 'कुछ चीज़ों के अधूरेपन में ही उनकी खूबसूरती रचती -बसती है'।
बहरहाल जैसे की कहावत है 'जितने मुँह उतनी बातें' और अब तो मुहों की संख्या भी दोगुनी हो गयी थी। कुछ लोगों का मानना था कि जब इंसान खुद को भगवान समझने लगा ,अपने-आप में ही सम्पूर्णता का परम सुख का अनुभव उसे स्वार्थपन की पराकाष्ठा की ओर धकेलने लगा तब धर्म की पुनः स्थापना के लिए ईश्वर को ये कठिन कदम उठाना पड़ा।
जिस तरह श्री कृष्णा ने भी चेदि नरेश शिशुपाल के पाप का घड़ा भरने पर मजबूरी में अपना सुदर्शन चक्र चलाया था ,उसी तरह भगवान ने भी मानवजाति की अनेकों गलतियों को माफ़ करने के बावजूद उसके चिकने घड़े सा रहने पर उसे यह सज़ा दी होगी।
वो कहते हैं ना 'भगवान का दूसरा नाम निराला है '।
बहरहाल कुछ शातिरता के मानसिक रोग से ग्रस्त लोगों ने तो भगवान की इस कथित करनी के लिए उन पर 'फूट डालो ओर राज करो' का संगीन इल्ज़ाम तक लगा दिया था।
वैसे लिखा तो यह भी गया है की 'सम्पूर्णता की पिलाई से बना मखमल का बिस्तर अकेले नहीं आता ,वह अपने साथ घमंड ओर ईर्षा का मसनद भी साथ लेकर आता है जिसका टेका लगाने पर रीढ़ की हड्डी में झुकाव निश्चित है '।
इसी घमंड ओर ईर्षा के दर्द को मिटाने उस परवरदिगार ने सम्पूर्णता के अनुभव को जीने के लिए उसमें मेहनत ओर जूनून का तड़का लगाने की शर्त रखी थी और जिसकी ऊष्णता में घमंड और ईर्षा एक कच्चे घड़े सा पिघलकर कृतज्ञता और विनम्रता का आकार ले लेते हैं।
बहरहाल मुद्दे की बात यहाँ यह है की इस विभाजन के बाद से ही लोग अपना खोया हुआ आधा टुकड़ा ढूंढने की कोशिश में लगे रहते हैं।
शायद भगवान भी यही चाहते थे। वो कहते हैं ना 'भगवान की लीला भगवान ही जाने '। या हो सकता है यह भी महज एक अफवाह ही हो।
