मेरी पहली कविता की आत्मकथा
मेरी पहली कविता की आत्मकथा
नीचे नदी बह रही थी . ठंडी हवा के थपेड़े उन पर लगातार पड़ रहे थे । वो सातों दोस्त ऊपर ब्रिज के बीचोंबीच ,कॉलेज के लेक्चर से बंक मार के यहां आये थे। रितेश ,गैरी और मनसुख किनारे पर लगी रेलिंग से झूलते हुए खड़े थे। दर्शना नूरी और सहरी आगे पीछे के ट्रैफिक पर नज़र टिकाये थी। हमेशा की तरह सबसे अलग थलग महकी , नदी में दूर आती एक नाव पर अपनी दृष्टि गड़ाए थी। हवा तेज़ होने के कारण सभी को आपस में चिल्लाकर बातें करने का बहाना मिल गया था ।
रितेश : यारों ! जानते हो आजकल उपले भी ऑनलाइन मिलते हैं !
गैरी: क्या बात कर रहा है ब्रो ! तुझे कैसे पता ?
मनसुख : अबे ! यही तो डिलीवरी करता है उनकी ,
सभी ठहाका मारकर हंसते हैं।
नूरी : वैसे ये उपले क्या होते हैं ?
मनसुख: तुम्हें उपले का मतलब नहीं पता तो तुम हंसी कौन सी बात पर थी
रितेश : यार तू जानता नहीं क्या अपनी ट्यूबलाईट को , तूने जो आधा घंटा पहले जोक सुनाया था ना उसी पर हंसी होगी अभी
यह सुनकर सभी फिर से ठहाका मार कर हँसे। नूरी का चेहरा उतर गया
दर्शना ने उसके कंधे पर दिलासे का हाथ रखा और बोली
दर्शना : उपले मतलब गाय या भैंस के गोबर के गोले ,उन्हें सुखाकर जलाने के काम में लिया जाता है
महकी : ओह अच्छा ! दशहरे और नवरात्रि की पूजा में जो धूप करने के काम आते हैं।
नूरी : समझी , पर रितेश गोबर डिलीवर क्यों करता है?
नूरी ने यह सवाल अपनी मासूमियत में पूछा था पर उसका सही अर्थ रितेश की बेइज़्ज़ती कर गया था और अभी अपनी हंसी नहीं रोक पाए।
नूरी को लगा उसने कुछ गलत पूछ लिया पर isi मज़ाक को आगे बढ़ाते हुए दर्शना बोली
दर्शना: अरे यार इसमें हंसने की क्या बात है , सही तो बोल रही है नूरी , बताओ भाई रितेश क्यों करते हो तुम गोबर की डिलीवरी, बोलो क्यों करते हो ऐसा काम तुम रितेश मियाँ !
रितेश : अबे! यार खरीदी तो मैंने क्रिकेट लीग की टीम भी नहीं है ,पर कोनसी टीम कितने में बिकी । सबकी जानकारी है ना मुझे।
गैरी : अच्छा छोडो यह सब फ़ालतू की बातें , यह बताओ यह पुल कितना ऊँचा होगा , नीचे नदी का पानी कितना गहरा होगा ?
नूरी : बहुत बहुत ज़्यादा ! मैं तो यहां से कभी कूदने का सोचूँ भी नहीं रे बाबा !
गैरी : तुम्हे तो यहां से कूदने और बच्चों की नेपी पहनने में एक चुनना हो तो तुम अपनी पेंट गीली होने से बचने को चूस करोगी।
नूरी : बिलकुल सही पकड़े हैं।
मनसुख : ऐसे हालaत में तो मैं भी नूरी के नेपी के पैकेट से एक नैपी बोर्रो करना चाहूंगा।
रितेश : यार ! ,वैसे सीरियसली ,कितना ही ऊंचाई होगी इस ब्रिज की नदी से ?
महकी : तकरीबन पंद्रह से बीस मीटर।
सहरी : कम बोल रही है यार ! कम से कम बीस मीटर तो होगी
नूरी : और खतरनाक भी !
रितेश : नीचे पानी ही तो है यार ,इसमें खतरनाक जैसा क्या ही है।
गैरी : सही बोल रहे हो दोस्त ! ज़रा अपना रिसर्च एनालिस्ट वाला दिमाग दौड़ाओ और ज़रा गणना करके बताओ की कितनी हाइट होगी इस ब्रिज की
मनसुख : शायद २५ मीटर होगी।
नूरी : या अल्लाह ! हम इस बारे में बात भी क्यों कर रहे हैं। साहिल के साथ यहां क्या हुआ था , क्या तुम उस खौफनाक मंज़र से वाकिफ नहीं हो जो एसी बातों को ज़ेहन में आने दे रहे हो ? भूल गए क्या की हर अखबार ,हर न्यूज़ चैनल की सुर्ख़ियों में थी उस दर्दनाक हादसे की दिल दहला देने वाली तसवीरें।
मनसुख : पर वो हादसा तो डिस्टेंस की मिसकैलकुलेशन का परिणाम था ,हाइट का उससे क्या ही लेना देना है
दर्शना : दैट्स नॉट द पॉइंट हियर , यू मोरोन !
गैरी : एक्साक्ट्ली दर्शना ! टेल में व्हाट्स द पॉइंट दर्शना!
गैरी अपनी टीशर्ट , पैंट और जूते उतारकर रेलिंग पर चढ़ गया।
मनसुख : मैं तुम्हारी जगह होता तो जूते पहनकर कूदी मारता , पानी में लेंडिंग के वक़्त ज़रा भी कुछ ऊपर नीचे हुआ तो पैरों के परखच्चे उड़ जाएंगे।
गैरी: यार रितेश , अपने जूते दे। मैं अपने जूते गंदे नहीं करना चाहता।
रितेश ने अपने जूते उतारकर गैरी को दे दिए और उसके जूते खुद पहन लिए।
सहरी : वैसे ये साहिल बंदे की क्या कहानी है यार !
तभी गैरी चिल्लाता हुआ रेलिंग पर चढ़ गया
गैरी : मेरे बाद कौन आ रहा है मेरे पीछे यारों ! चलो जीते हैं, यू..... हू...... !
नारी : इस जनम में तो कभी भी नहीं आने वाली मैं
गैरी कूदने ही वाला था की महकी चीखी
महकी : रुको ! देखो थोड़ी दूर पर एक नाव आ रही है नदी में ।
रितेश : हाँ यार गैरी ! सच में एक बोट आ तो रही है , पांच दस मिनट रुक जा, फिर भले कूद जाना।
गैरी ने रितेश की बात मान ली और अपने पीछे की और कूदकर वापस ब्रिज पर आ गया।
थोड़ी देर बाद एम्बुलेंस की आवाज़ जैसा हॉर्न बजाती हुई नाव वहाँ से निकली और गैरी अपना एडेरनलिन रश से लबालब अपना जोश ओर जुनूनीयत से भरा जिगर लेकर वापस रेलिंग पर चढ़ गया। रेलिंग को पीछे से अपने हाथों की मजबूत ग्रिप से पकड़ कर वह नदी की तरफ मुँह करके खड़ा हो गया।
दर्शना : यह इस नदी का मैन-चैनल हैं ना !
मनसुख : पता नहीं !
गैरी : क्या ही फ़र्क़ पड़ता है यार !
गैरी ने अपना हाथ दर्शना की ओर बढ़ाया ओर बोला गैरी : आओ मेरे साथ ! , मिलकर तुम्हारे मानसपाटल पर तुम्हारे पसंदीदा चैनल की फ्रीक्वेन्सी ढूंढते हैं ।
नूरी: पानी की धारा किस दिशा में होगी ?
गैरी : अभी बताता हूँ कुछ सेकण्ड्स में ।
गैरी ने नदी में कूदने को अपने पैर मोडे ही थे की वहां पुलिस की बाइक पर एक हवलदार हाथों में लकड़ी का डंडा लहराता हुआ आता हुआ दिखाई दिया उन्हें
हवलदार : ठहरो ! यह क्या पागलपन करने जा रहे हो तुम बच्चे लोग !?
गैरी : क्यों ? क्या हुआ सर ?
हवलदार : सब बताता हूँ ,पहले तुम रेलिंग से वापस पुल पर आओ। जानते नहीं कितने ही लोग अपनी जान गंवा चुके हैं इस तरह की बेवकूफी में।
गैरी : यहां ? क्या आपको यकीन हैं , यहां जान गंवा चुके हैं ?
गैरी के कहे एक एक शब्द में आश्चर्य ओर कटाक्ष का मिलाजुला भाव था .
हवलदार ने गैरी के कहे शब्दों में छिपे हर एक भाव में उसके मज़ाक उड़ाने वाले लहजे का आशय समझकर नज़रअंदाज़ कर , उसे प्यार से समझाते हुए बोला -
हवलदार: पिछले साल ही एक तुम्हारी ही उम्र के लड़के की जान चली गई थी यहां पर बेटा ! हमारे डिपार्टमेंट के मेरे ही एक साथी ने तीन दिन बाद उसकी लाश निकाली थी नदी में से।
दर्शना : सुना न तुमने गैरी ! चलो अब यह बचपना छोड़ो ओर वापस आ जाओ !
गैरी ,दर्शना की डांट सुनकर वापस पुल पर आ गया।
सहरी : सर ! क्या यह सचमुच इतना खतरनाक है !
हवलदार : ओर नहीं तो क्या ? चालीस मीटर की ऊंचाई को तुम लोग मज़ाक समझते हो क्या ? फिर नदी में चलती नावों को भी तो क्लीयरेंस चाहिए होती है ,। तुम जवान खून ओर ये जवानी का जोश ,पता नहीं कब समझोगे तुम लोग इस ज़िन्दगी का महत्व !
नूरी : जी सर , आप बिलकुल सही कह रहे हैं , हम ऐसा दोबारा कभी भी नहीं करेंगे।
हवलदार : तुम सभी मेरे बच्चों की उम्र के हो इसलिए समझा रहा हूँ बेटा ! ठीक है , अब तुम सब जाओ अपने अपने घर वापस। वैसे भी अँधेरा होने वाला है।
यह समझाकर हवलदार अपनी फटफटी चालू कर वहाँ से चला गया।
गैरी : क्या बकवास है यार ! यहां से गिरकर कोई कैसे मर सकता है ?
रितेश : मुझे नहीं पता यार! मैं तो खुद यहाँ पहली बार आया हूँ।
सहरी : वह पुलिस वाला यहां का लोकल लग रहा था यार ओर काफी उम्रदराज़ भी , वह थोड़ी ना हमसे झूठ बोलेगा
नूरी : सही बात है ! चलो चलते हैं यहां से
दर्शना : नूरी बिलकुल सही कह रही है, तुम सभी अपना बचपना छोड़ो ओर चलो अब यहाँ से !
सभी गैरी को वापस चलने के लिए घूरने लगे।
गैरी : अरे यार ,तुम लोग तो मुझे ऐसे घूर रहे हो जैसे मेरे कारण जान गयी थी उस लड़के की
.
मामला बिगड़ता देख , मनसुख वहाँ से चलने लगा , उसके पीछे पीछे नूरी ,सहरी ,महकी भी चलने लगे।
दर्शना गैरी का हाथ पकड़ कर उसे वापस चलने के लिए समझाने लगी । गैरी ने उसका हाथ छिटक दिया पर अगले ही पल अपने गुस्से पर काबू कर बोला
" तुम आगे चलो दर्शना , मैं रितेश संग आता हूँ , वैसे भी पुल से उतरकर , बस में तो सब साथ ही चलेंगे ना !
दर्शना उसका कहा मान ,वह आगे बाकी दोस्तों संग चलने लगी . रितेश ओर गैरी उनके थोड़ा ही पीछे साथ-साथ चल रहे थे। पुल लम्बा था तो सभी रेलिंग से दूर , एक तरफ चल रहे थे।
गैरी : क्या घटिया मज़ाक है यार !
रितेश : सही बात है ! नाच ना जाने आँगन टेढ़ा !
गैरी : क्या मतलब? आखिर कहना किया चाहते हो तुम रितेश ?
रितेश : यही की जब उस ठुल्ले ने लड़के की मौत के बारे में बताया तब एक बार को तो तेरी फट गई थी गैरी , मान ले यार !
गैरी : वह बस एक नॉर्मल ह्यूमन रिएक्शन था जिस पर कोई भी वैसे ही रियेक्ट करता जैसे मैंने किया था।
रितेश : वही तो मैं कह रहा हूँ यार ! डर लगना ,उस कारण फट कर चार होना ,नॉर्मल ह्यूमन रिएक्शन होता है मेरे दोस्त !
ओर ठहाका मारकर हंस दिया।
गैरी : होता होगा ,पर मैं डरा नहीं था , वो तो सबने जोर देकर कहा था इसलिए मैं रेलिंग से उतर गया था। डर वाली तो कोई बात नहीं थी उसमे।
रितेश : यार बाकी सभी फ्रेंड्स तो आगे हैं , मैं ही तो हूँ यहां पर,मुझसे क्या शर्म ! तू मान क्यों नहीं लेता की तू डर गया था
गैरी : जब डरा ही नहीं था तो क्यों मान लूँ भला !
रितेश : यार तुम अभी तक डरे हुए दिख रहे हो , तुम्हारी आवाज़ तक काँप रही है।
गैरी : सोच कर देख , अगर कोई तुझसे आकर कहे की जहां तू खड़ा है वहाँ कुछ वक़्त पहले किसी की जान गई थी तो तुम कैसे रियेक्ट करोगे ?
रितेश :मैं उसके लिए सहानुभूति महसूस करूँगा , तुम्हारी तरह डर से वाइब्रेट मोड़ पर नहीं चला जाऊंगा
गैरी को यह सुनकर बेहद गुस्सा आ गया ओर वो आसमान की ओर चिल्लाकर बोला " मैं डरा नहीं था , समझे ?
उसकी चीख सुनकर आगे चल रहे पाँचों दोस्त ठिठक गए।
दर्शना ओर मनसुख दौड़कर वापस आए।
दर्शना गैरी को गले लगाकर बोली " अब छोड़ो भी गैरी उस बात को । भूल जाओ "!
रितेश : हाँ हाँ भूल जाओ यार ! ओर हम भी भूल जाएंगे की तुम एक नंबर के फट्टू हो।
मनसुख ने गुस्से में रितेश को घूरा ओर गैरी को वापस कॉलेज चलने के लिए मनाने लगा।
पीछे पीछे सहरी ओर महकी भी आ गई।
महकी : क्या गैरी बाबू ! फिर से छलांग मारने की सोच रहे हो क्या ?
नूरी डर गई थी ओर सबका हाथ पकड़कर वापस चलने की लगभग भीख सी मांग रही थी।
रितेश : क्या ड्रामा कर रहा है यार गैरी! , अगर तू डरा नहीं था तो कूदा क्यों नहीं , बता ज़रा !
गैरी: क्योंकि सबका इंट्रेस्ट खत्म हो गया था उस बात में।
रितेश : तो अगर एक भी बंदा "इंट्रेस्टेड " होता तो तुम कूद जाते ?
गैरी : हाँ बेशक़ कूद जाता !
रितेश : ठीक है , अगर यही बात है गैरी ! तो मैं इंटरेस्टेड हूँ।
गैरी : अगर यह बात है तो मैं कूद जाऊंगा।
रितेश :देख लो ! इस बार भी झूठ तो नहीं बोल रहे हो ना पहले की तरह !
गैरी : पहले की तरह से क्या मतलब है तुम्हारा ?
रितेश : अरे मतलब की पहले कॉलेज में भी तो तुमने,,,,,,,,, आई मीन टू से तूने अपने पापा के बारे में जो ....
दर्शना : शट अप रितेश ! , जस्ट शट अप !
दर्शना समझ गई थी की इसका क्या परिणाम होने वाला है पर वो गैरी को समझाने उसकी तरफ बढ़ी ही थी की गैरी आसमान की ओर देखकर चीखा
गैरी : मैं झूठा नहीं हूँ ! मैं झूठ नहीं बोला था पापा। आई एम सो सो सॉरी डैड ! ।।। मैं अभी कूद कर दिखाता हूँ।
गैरी दौड़कर दूसरी तरफ गया ओर रेलिंग पर चढ़ गया।
थोड़ी ही आगे इत्मीनान से चल रहे सभी राहगीरों में यह देखकर एकदम से खलबली मच गई।
सभी गैरी की ओर दौड़ने लगे।
नूरी : व......वापस आओ गैरी !
मनसुख : क्या कर रहे हो गैरी !
दर्शना : वहां से उतरो गैरी !वरना मैं तुमसे कभी भी बात नहीं करुँगी। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ , यूं इडियट !
गैरी : मैं भी !
वैसे तो उनके बीच के इस प्रेम का अंदाजा पूरे कॉलेज को था पर अभी यह पहली बार था जब दोनों ने अपने प्रेम का इज़हार एक दूसरे से किया था ।
दर्शना की तरह देखकर मुस्कुराते हुए गैरी नदी में कूद गया।
सभी अफरातफरी में इधर उधर दौड़ने लगे। दस बारह मिनट बाद महकी ज़ोर से चिल्लाई
" वो देखो नदी के साहिल पर !, देखो वहां हमारा गैरी खड़ा है ,
"उसने कर दिखाया , उसने कर दिखाया "।
सभी ने देखा की गैरी किनारे पर खड़ा उनकी और हाथ हिला रहा था। उसके चेहरे ओर दिल में शान्ति और सुकून की लकीरें बिछी थी। शायद कभी कभी मन के समंदर में उठे तूफ़ान को शांत करने के लिए उसकी अनंत गहराई में विश्वास की छलांग लगानी पड़ती है।
ये क्षितिज-सा समां है या
यहां ना ज़मीन है ,ना ही आसमान है
इन गहराइयों में मेरा तन्हापन है या
तन्हाई में छिपी हैं ये अनंत गहराइयाँ हैं
मेरे मन के रेगिस्तान में ये नए पत्तों की सरसराहट है या
मेरी साँसों में थरथराते तूफ़ान को थामती मेरी ये धड़कनें हैं।
