बोलो !, झूठ बोलो !
बोलो !, झूठ बोलो !
वो सुन्दर और अविश्वसनीय झूठ बोलते रहना चाहिए ,उसे इतनी बार ,और तब तक बोलते रहना चाहिए ,जब तक उसे सच में बदलने के लिए तुम्हारी आत्मा तक विवश ना हो जाए।
एक गाँव में एक निर्दयी राक्षस की अघोर प्रताड़ना के फलस्वरूप अकाल पड़ा, कोई भी नहीं बचा। जीव-जंतु तो छोडो, फसल में बीज तो बहुत दूर की बात ,एक बिजूखा ((काक -डरावा ) तक नहीं बचा। खाने -पीने का तो नामो -निशान तक नहीं था। पडोसी गाँव में एक कौवा रहता था। गाँव की और जा रहा था। कौवा ऐसे तो दिमाग से ,शरीर से बहुत तेज़ और फुर्तीला था पर बड़बोला था। इतना बड़ा 'फेंकू' था की एक बार तो मियाँ -शेखचिल्ली भी उसके गप्प सुनकर शरमा जाएं जाएं। बड़े -बड़े नदी -नाले ,पहाड़,समुन्दर जैसे हिमालय पर्वत, एवरेस्ट,प्रशांत महासागर सबको ये बातूनी ,अपनी बातों ,अपने गप्पों में तो पार कर चुका था। गाँव वालों ने भी उस गप्पबाज को चने के झाड़ पर चढ़ा दिया की एक वही है जो अब उस गाँव को बचा सकता है।कौवा भी गाँव वालों की बातों में आ गया और चल पड़ा गाँव बचाने। जबकि असल में आज पहली बार इस गाँव को छोड़ कर ,कहीं बहार निकला था ये गप्पबाज।उसकी उड़ान की राह में अनेकों जानवरों ने उसे टोका की उसे अकाल वाले गाँव नहीं जाना चाहिए , वहां खाने को दाना और पीने को पानी की एक बूँद तक नहीं हैं।
गप्पबाज उनकी बातों को सुनकर अपनी गप्पबाजी का सबूत देते हुए यह तकियाकलाम दोहरा देता " मियाँ आप सूखी ज़मीन की बात करते हो ,हम तो वो हैं जो पत्थर तक से पानी निकलवा लें"।
रास्ते भर अनेकों जानवरों के समझाने पर भी कौवा पर कोई असर नहीं हुआ और आखिरकार एक लम्बी यात्रा तय करने के बाद वह उस राक्षस-पीड़ित गाँव में पहुँच ही गया।लम्बी यात्रा की थकान के कारण अभी वह प्यास से निढाल होने ही वाला था की उसे एक भारी भरकम आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ उसी निर्मम राक्षस की थी।
राक्षस कौवे को खाने ही वाला था की, कौवे ने अपनी सारी बची-कुची ऊर्जा और जोश संभालते हुए राक्षस से कहा " हे दानव महाराज, आप बेशक मुझे खा लीजियेगा ,पर उससे पहले मेरी बस एक बात मान लीजिये, और वैसे भी मरने वाले की आखरी इच्छा तो यमराज भी पूरा करते ह और मेरी तो खुशकिस्मती होगी की आप के जैसा विराट -विशाल दानव के मुझ जैसा पिद्दी सा जानवर कुछ काम आ सका ", राक्षस को पहले तो कौवे की बात पर गुस्सा आया पर साथ ही साथ उसकी हिम्मत और करुणा भरी आवाज़ सुनकर वो पिघल भी गया। उसने कौवे से कहा "मांगो ,जो माँगना है, तुम्हे मिल जाएगा "। कौवे ने यह सुनकर झट से अपनी बात कह दी की एक राक्षस की बात का क्या भरोसा ,इस पल कुछ कह रहा है, अगले ही पल पलट जाये अपनी ही कही बात से बात से ,वो फटाक से बोला " हे दानवराज!आप बड़े कृपालु है, कृपा करकर मुझे एक घड़े में पानी दे दीजिये, मुझे बहुत जोर की प्यास लगी है और मैं प्यासा नहीं मरना चाहता। "
राक्षस ने कौवे का मखौल उड़ाने वास्ते एक घड़े में पानी तो दिया पर उसमें पानी का स्तर ,घड़े की सतह तक ही रखा। उसने जानबूझ कर ऐसा किया की कौवा अपने चोंच के आकार , और वजन के कारण पानी को देख तो सके पर पीने को एक बूँद तक उसे नसीब ना हो सके।राक्षस ने घड़ा कौवे को देते हुए कटाक्ष के स्वर में कहा "तुमने घड़े में पानी माँगा था , कितना पानी इसके बारे में कुछ नहीं कहा था" 'घड़े में पानी देखकर कौवे को गुस्सा तो बहुत आया पर वह बेचारा कर भी क्या सकता था। उसने झूठे ही सही पर राक्षस को धन्यवाद कहा और दस मिनट का वक़्त माँगा पानी को पीने के लिए। राक्षस तो वैसे भी उसकी दीनता,उसकी मजबूरी का मज़ाक उड़ाना चाहता था। यह सब देखने के लिए उसने वक़्त दे दया कौवे को।
कौवे को अपनी मौत सामने नज़र आ रही थी और ज़िन्दगी भर का कहा सुना उसे अभी याद रहा था . जो बात उसे बार बार याद आ रही थी ,वो वही बात थी जो उसने अपने बड़बोले स्वभाव के कारण अनगिनत बार अपने जीवन में कही थी। यह बात उसका वही तकिया कालाम थी " सूखी ज़मीन तो छोड़ो ,मैं तो पत्थर से पानी निकलवा लूँ ,लोग तो हवा पानी पर ज़िंदा रहते हैं ,मैं तो पत्थरों पर ज़िंदा रह लूँ " यह सब कुछ इतनी शोर के साथ उसके दिमाग में बज रहा था की उसने डर और गुस्से में पास पड़े पत्थर ,उस घड़े में बिना कुछ सोचे -समझे डालने शुरू कर दिए । कुछ ही देर के बाद उसकी आँखें आश्चर्य में बहुत बड़ी हो गई. पानी ऊपर आया ,कौवे ने अपनी प्यास को बुझाया।राक्षस भी यह करामात देखकर बहुत खुश हुआ और उसने कौवे की जान बक्श दी और सोने पर सुहागा ,गाँव पर से अपनी प्रतड़ना को भी हटा लिया।
शिक्षा : वो सुन्दर और अविश्वसनीय झूठ बोलते रहना चाहिए ,उसे इतनी बार दोहराना चाहिए ,और तब तक उसे बोलते रहना चाहिए ,जब तक उसे सच में बदलने के लिए तुम्हारी आत्मा तक विवश ना हो जाए।
