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Abhishu sharma

Comedy Drama

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Abhishu sharma

Comedy Drama

एक मौखिक इम्तिहान

एक मौखिक इम्तिहान

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हिंदी साहित्य तृतीय वर्ष के वार्षिक परीक्षाओं का हसीन मंज़र था। 

सामने की सफ़ेद दीवार पर श्यामपट्ट पुता हुआ था जिस पर गुलाबी रंग की चॉक से लिखा था  ' निम्न शब्दों के पर्यायवाची बताएं और परीक्षा में पास हो जाएं'। 

 अंदर से इम्तिहान देकर बाहर निकल रहे छात्रों से बाहर भेड़-बकरियों की तरह भीड़ लगाकर खड़े विद्यार्थी 'मे,, में,, में,, में,,' रहे थे की किसी तरह पूछे गए प्रश्नों का जवाब मिल सके। इम्तिहान लेने एक गोरा आया हुआ था जिसने हिंदी साहित्य में पी.एच.डी कर रखी थी । इन्हीं विद्यार्थियों की भीड़ में एक नमूना था 'संता ', जिसे आज सुबह परीक्षा हॉल में जाकर ज्ञात हुआ था की आज हिंदी विषय की परीक्षा है जबकि वह सामाजिक-विज्ञान कंठस्थ कर आया था। यूं तो संता मूर्खों की टोली का सरदार माना जाता था पर एक बात और थी जो उसे दूसरों से अलग करती थी और वह था उसका आत्मविश्वास या यूं कहे अति-आत्मविश्वास। उसे किसी के बारे में कुछ पता हो ,ना पता हो, कहता इतनी दृढ़ता और आत्मविश्वास से की सामने वाला यह तक मान जाये की सूर्य पूरब से नहीं बल्कि पश्चिम से उदय होता है और हमारे गृह का नाम पृथ्वी से हटाकर अब 'कुशल मंगल' कर दिया गया है।

 इसी एक बानगी में एक बारी संता सड़क पर मटर गश्ती कर रहा था की एक हैरान परेशां व्यक्ति अपनी दोपहिया फटफटिया पर लगभग हाँफते हुए उसके पास आया और उससे नज़दीक किसी अस्पताल का पता पूछने लगा , यध्यपि संता इस जगह के लिए नया था पर आदत तो उसकी पुरानी थी सो उसने ऐसे ही, एक गली दो गली छोड़कर कुछ बाएं दाएं घुमवाकर उसे अस्पताल की वास्तविकता से बेहद दूर एक आभासी इमारत जिसका ढांचा और इंफ्रास्ट्रक्चर बाहर से देखने पर अस्पताल जैसा मालूम पड़ता था ,उस बेचारे फटफटिया सवार को बता दिया जिसकी शकल पर लिखा था की वह किसी आपातकालीन स्थिति का शिकार है उस वक़्त।

बेचारा मरता क्या न करता और उसे सच झूठ से परे अभी इमरजेंसी की धुंध में मिथ्या और सत्य की सुध-बुध नहीं थी. वो बस फटाफट फटफटिया पर धुआँ छोड़ते हुए संता के बताए मार्ग पर निकल गया और यहां संता अपना सीना गर्व से चौड़ा करता हुआ चला जा रहा था की सम्भवतः उसने आज एक इंसान की जान बचा ली है । संता मन का या नीयत से खराब इंसान नहीं था पर 'मुझे पता नहीं ' कहना उसे अच्छा नहीं लगता था जिसका कारण एक अलग मार्मिक कहानी है पर वो कभी किसी और दिन सुनेंगे। अभी के लिए आपको बता दूँ की वो फटफटी सवार तीन चार दिन बाद संता को गुस्से से लाल पीला चेहरा लिए , हाथ में लोहे की रोड लेकर ढूंढता हुआ सड़कों पर देखा गया पर संताजी तो कबके वहां से चले गए थे अपने मन में किसी की जान बचाने का गर्व से सना सीना ताने।

हाँ तो वापस परीक्षा केंद्र पर लोट आते हैं जहाँ बिना कोई तैयारी के भी श्रीमान संता अपनी बारी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। कुछ वक़्त बाद उनकी बारी आई।

नाम सुनते ही बत्तीसी दिखाते हुए कमरे के अंदर दाखिल हुए संताजी और ब्लैकबोर्ड पर चस्पा ' निम्न शब्दों के पर्यायवाची बताएं और पास हो जाएं' पढ़कर प्रफुल्लित हो गए .

संताजी ने मुस्कुराते हुए अध्यापक को प्रणाम किया और आज्ञा लेते हुए कुर्सी पर बैठ गए .

अध्यापक : हां तो संता जी ,पर्यायवाची शब्दों से आप क्या समझते हैं , इसकी क्या परिभाषा होती है ?

 अध्यापक का प्रश्न संता के , सिर के ऊपर से निकल गया।

संता : जी मतलब ?

अध्यापक : बिलकुल सही। पर्यायवाची का एक अभिप्राय 'मतलब ' भी होता है। ज़रा खुलकर बताएं।

अब संता तो रायता है , जगह दोगे तो वह तो फैल जाएगा।

संता : जी शब्दों को सुनकर जो भी याद आए उसे पर्यायवाची शब्द कहते हैं।

वैसे संता ने बेहद साधारण और बहुत सामान्य बात कही थी जो किसी भी संदर्भ में , किसी भी वस्तु विशेष पर सटीक बैठती पर अध्यापक जी ठहरे पी.एच.डी. . अपनी अति बुद्धिमानी लगा दी संता के इस बेवकूफाना कथन में और काफी इंटेलेक्चुअल मानने लगे संता के जवाब को।

अध्यापक : क्या खूब कहा है संताजी आपने , मैंने ऐसी सोच पहले कभी नहीं देखी, ना ही  सुनी किसी की। आपका यह बौद्धिक जवाब सुनकर अब वैसे तो मुझे आपसे कोई भी प्रश्न पूछने की आवश्यकता ही नहीं है पर औपचारिकता के लिए पूछे लिए लेते हैं ।

संता का तो वैसे ही सामान्य स्थितियों में ही आत्मविश्वास आसमान फाड़े रहता है यह सुनकर तो वह क्षितिज पर बनी कल्पनाओं की सभी अजी,पराकाष्ठाओं  को ही तोड़ निकला।

संता : पूछिए जनाब जो पूछना है।

अध्यापक : आपका पहला शब्द है अनिल , अनिल शब्द से आपको क्या याद आता है ?

संता : जी 'अनिल कुंबले ', एक मैच में दस विकेट लिए थे। क्या दिन था वो भी .

अध्यापक ने यह सुना और उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ ,वह बहुत कुछ कहना चाहता था पर उसके मुँह से सिर्फ एक प्रश्नवाचक संज्ञा में ' हुंह ' ही निकल पाया

संता : जी आप क्रिकेट नहीं देखते ,अजी, बेहद मजे और रोमांच से भरपूर खेल है................. 

संता तो अध्यापक को और ज्ञान देना चाहता था पर उन्होंने उसे बीच में टोका और अगला सवाल पूछा

अध्यापक : अगला आपका शब्द है राहुल, 'राहुल ' शब्द से क्या याद आता है आपको ?

संता : राहुल ! ,नाम तो सुना ही होगा !

अध्यापक : जी ? क्या फ़रमाया आपने अभी , कृपया एक बारी फिर दोहरा देंगे ?

संता : जी बिलकुल। श्री श्री शाहरुख़ खान जी ने अपनी सुपरहिट फिल्म 'कुछ कुछ होता है ' में राहुल नाम का ही किरदार निभाया था और 'राहुल ! नाम तो सुना ही होगा' यही कहकर फिल्म में वे सभी अन्य किरदारों से अपना परिचय करवाते थे।

अब तो अध्यापक जी के 'कांटों तो खून नहीं' वाली हालत थी। उन्होंने अपने गुस्से और फ्रस्ट्रेशन को समेटा और झुंझलाहट में अगला सवाल पूछा

अध्यापक : अरे यार ! चलो आगे बढ़ते हैं , अगला शब्द है 'कमल '

संता : ओह ! अच्छा तो आगे बढ़ने के नाम पर सियासी बिसात बिछा रहे हो , सियासी-खेल खेला जा रहा है हम मासूम विद्यार्थियों के साथ यहाँ।

अध्यापक : सियासी-खेल ,बिसात ? क्या बक रहे हो संता। मैंने तो सिर्फ तुमसे 'कमल ' शब्द के बारे में पूछा है। अगर पास होना है तो उत्तर दो वरना चुपचाप यहाँ से चलते बनो । मुझे और भी बहुत से काम है. तुम्हारी बकवास सुनने को एक पल और भेजे का एक कतरा भी नहीं हैं मेरे पास।

संता : समझ गया ,सब समझ गया हूँ मैं !

अध्यापक : अच्छा जी ! भला क्या समझ गए हैं आप हम भी तो जाने।

संता : अजी ठीक है ! उठा लीजिये इन पाखंडी राजनेताओं की तरह आप भी गरीब की मजबूरी का फायदा ,उठा लीजिये! अपने सवाल का जवाब ही जानना चाहते हैं ना आप - कमल ,,,,,,, कमल पर ही बटन दबाएं और अपने कदम विकास की ओर बढ़ाएं , और कण कण में कमल की खुशबू फैलाएं '

अध्यापक : यार तुम किस मिट्टी के बने हो संता ?

संता : सच कहा जनाब ! हम मासूम विद्यार्थी तो कच्ची मिट्टी के ही बने होते हैं ओर विद्यालय में दाखिला लेने के बाद ,आप जैसे गुरुओं की शरण में आने के बाद ही आप शिक्षक ही हमें पकाकर अपने मन-मुताबिक़ सा आकार देते हो जिनमें आपके घमंड ओर ईगो की गंध होती है।

अध्यापक : अच्छा जी ! इतनी बड़ी -बड़ी बातें भी कर लेते हैं आप ?

संता : मास्टर जी ! मैं तो जी बस सच बोलता हूँ, बड़ी -छोटी ,अच्छी -बुरी, लोगों को अपने आप लग जाती हैं।

अध्यापक : यार भैया ! इससे पहले की तुम्हारी बक -बक से मेरा सिर फट जाए तुम जाओ यहां से, तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता।

संता कमरे से बाहर आ गया ओर भेड़-बकरियों की तरह जमा विद्यार्थियों से घिर गया।


        


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