लापता-सा
लापता-सा
कॉलेज से लगभग आठ सौ मीटर दूर , ना जाने कितने ही छोटे-बड़े पत्थरों से होते हुए वो झील थी । शाम और रात के बीच का वो मोहब्बत के अमृत में घुला नाज़ुक वक़्त था। पास ही एक चाय-समोसे की टपरी-कम-दुकान थी जिसे हम सब विद्यार्थियों के प्यारे बबई और अम्मा चलाते थे। बबई उस जगह की क्षेत्रीय भाषा का सम्मान देने हेतु एक शब्द है जिसका मतलब हिंदी में चाचा होता है।
'मै और तुम' , पकोड़े और चाय का नाश्ता कर हर शनिवार उस झील के किनारे जाते थे, याद तो होगा ना तुम्हे ! , याद है हमारी वो आखिरी मुलाकात,हमारे कॉलेज का ,हमारी खुशियों का , 'हमारा' वो आखिरी दिन !
हल्का अँधेरा होने के कारण तुमने मेरा हाथ इतनी ज़ोर से पकड़ रखा था जैसे एक पांच ,छह साल का अबोध नन्हा कोई बालक मोटरसाइकिल पर आगे बैठे अपने पिता को कस कर पकड़ता है। पता नहीं क्यों पर उस दिन दूर-दूर तक कोई तीसरा इंसान तो क्या कोई भूली-भटकी रूह तक का कोई नामोनिशान नहीं था । बस तुम , मैं और एक जगह रुका हुआ पानी ही पानी। क्षितिज में झाँकने की कोशिश करते हम झील के किनारे किनारे चलने लगे थे । । शायद हमारी दिल की धड़कन की आवाज़ इतनी अधिक थी की रेत में छपते -छपाते हमारी बेचैनी और पैरों के निशानों को धोने बीच-बीच में थोड़ा सा पानी हमारी और आ जाता था।
मैंने तुम्हारा हाथ थाम रखा था या तुमने मेरा यह याद कर पाना मुश्किल हो रहा है . हम दोनों कितने खुश थे .
आज इतने सालों बाद उस झील से हज़ारों किलोमीटर दूर इस दस बाय दस के कमरे में भी मुझे उस थमे हुए पानी की आवाज़ ,तुम्हारी वो एक पुकार सुनाई पड़ती है ,एक आखरी पुकार जैसे वही मोटर वाला नन्हा अबोध बालक वर्षों बाद अपने पिता के अंतिम संस्कार में उनकी देह को अग्नि देने के बादआसमान की और देखकर भरे गले से "बाबूजी " कहता है। वो अंतिम आलिंगन क्या तुम्हे भी पल दर पल याद है।
लहर-दर-लहर ,सांझ-दर- सेहर पर पर भारी भोर को निगलती दोपहर
किनारे का कोई भी ना निशान
हर निशा तुम्हारी खोज में निकलता हूँ दर-ब-दर
नहीं मिलती ज़रा भी कोई खबर
इस बंद कमरे के शान्ति के शोर में खोकर ,
यहीं किसी कोने में दुबककर अब खोनी है वो सुध तुम्हारी आवाज़ की
वो रागिनी वो तुम्हारी लागी धुन काश हो जाए यहीं कहीं गुममिट्टी के हर कण में बसती तुम्हारी इन अमिट यादों को कहीं छुपाना है की
एक डर है मुझे कहीं , तुम्हारी यादों का घोंसला जो इतने सालों से मन में संजो रखा है मैंने
मेरी ही तरह लापता सा दफ़न ना हो जाए कल-परसों।
