प्यार की शुरुआत
प्यार की शुरुआत
कहते हैं किसी भी काम में हाथ डालने से पहले उसकी शुरुआत के बारे में जान लेना जरूरी होता है ।
वैसे तो ईश्वर का बनाया हर एक प्राणी ,हर ऋतु ,हर एक मौसम अत्यंत सुन्दर और सुहावना होता है पर ये प्यार का मौसम ही है जो सदाबहार रहता है।
आशिकों से प्यार है और प्यार से आशिक़ हैं।
इन्हीं प्यारी बातों के साथ इस प्यार भरे मौसम की शुरुआत की कहानी जानते हैं।
कहानी शुरू होती है उस शहर में जिसके रोम -रोम में प्यार बसा है । समस्त दुनिया में जिसका नाम स्वर्ण अक्षरों से अंकित है , प्यार का प्रतीक शहर रोम ।
वर्ष था 270 ईस्वी । बादशाह इब्राहिम का राज था। सब अच्छा था बस एक ही दिक्कत थी , वहां कोई भी फ़ौज में नहीं जाना चाहता था। कारण था प्यार।
दरअसल कोई भी सालों साल अपनी बीवी बच्चों को छोड़कर युद्ध के मैदान में नहीं रहना चाहता था। बादशाह इब्राहिम इस बात से बिल्कुल खुश नहीं थे ,नतीजतन उन्होंने शादियों पर ही पाबंदी लगा दी। अब उनकी प्रजा में कोई भी इंसान शादी नहीं कर सकता था।
अगर कोई शादी के बारे में बात करता या सोचता भी तो उसे कठोर सजा देने का कानून था ।
उसी शहर में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहे एक युवक को यह बात गलत लगी। उसका मानना था ,प्रेम तो एक अनुभूति है, भाव है और भावनाओं को महसूस करना ही तो इंसान को इंसान बनाता है। जैसे देख पाना ,सुन पाना ,सूँघना आदि हमारी प्रकृति है उसी तरह किसी को छूकर स्पर्श का एहसास कर पाना भी हमारे अंदर व्याप्त है।अपने एहसास को महसूस कर पाना एक मूल-सच है। यह तो जीवित होने का एक मौलिक स्तम्भ है।
उसकी सोच थी की बादशाह का यह आदेश तो उस वृक्ष के समान है जिसकी जड़ें काटकर उसे फल देने का आदेश देना ।
जैसे प्यार को देखा नहीं जा सकता बस महसूस किया जा सकता है उसी तरह उस पर डाली गई पाबंदी की बेड़ियों का मन पर भार भी बस अनुभव किया जा सकता है।
अपनी आज़ादी पर ये दासता उसे बिलकुल गवारा नहीं थी।उसने छुपकर लोगों की शादियां करवानी शुरू कर दी ।
यह बगावत एक तरीके से अपनी बात दृढ़ता से कहने का ज़रिया थी।
बादशाह को मालूम पड़ा की उनके राज्य में एक बागी चोरी -छिपे लोगों की शादियां करवा रहा है तो उन्होंने तुरंत उसे गिरफ्तार कर अपने दरबार में पेश करने का हुक्म जारी कर दिया।
बेड़ियों में बांधकर लड़के को राजदरबार में पेश किया गया।
बादशाह ने लड़के को समस्त प्रजा के सामने अपने किए के लिए माफ़ी मांगने को कहा पर लड़के ने साफ़ मना कर दिया।
"मुझे नहीं लगता महाराज की मैंने कुछ भी गलत किया है , मेरी फ़िक्र ना कीजिये,
इन लोहे की बेड़ियों का दर्द ,मन पर डाली गई परतंत्रता की बेड़ियों से बहुत कम है राजासाहब" लड़के ने अपनी बात पर अटल रहते हुए कहा।
बादशाह का आदेश ना मानने पर कैसा हश्र होता है इसका उदाहरण पेश करने के लिए बादशाह ने लड़के को कठोर कारावास की सज़ा सुनाई ।
यह बहुत सख्त सज़ा थी। दिन के दिन निकल जाते थे पर लड़के को सूरज की रोशनी तक नसीब नहीं होती थी । उसे एक बंद काल -कोठरी के अंदर रखा जाता था जिसमें हवा आने-जाने को एक पतला सा सुराख भर था।
हफ्ते में एक दिन उसे एक घंटे के लिए महल के बागीचे में घूमने की इजाज़त थी।
बादशाह की एक बेटी थी सारा, जो बचपन से ही देख पाने में असमर्थ थी। वह भी उसी वक़्त अपनी दासियों संग बगीचे में टहलने आती थी।
कैदी लड़का और सारा में बातचीत होने लगी और बातचीत कब प्रेम में बदल गयी किसी को पता नहीं चला।
प्यार हुआ ,इकरार हुआ और फिर एक रात जादू हुआ।
उस रात लड़के ने पहली बारी सारा की आँखों को छुआ और अगले दिन जब वो सोकर उठी तो देख सकती थी। तारीख थी चौदह फरवरी और दिन था सोमवार।
ये नदी, ये पहाड़, ये झरने, ये सुमन ,ये चमन , ये बहार वह सब देख सकती थी। पर इन सबसे पहले वो जिस एक इंसान को देखना चाहती थी,जिसकी मूरत वह अपने एहसास की ताकत से अपने हृदय में संजोए बैठी थी, वह असल में कैसा दिखता है ,जानना चाहती थी , उसका दीदार करना चाहती थी । वो लड़का जिसका नाम 'सैंट वैलेंटाइन' था, अब इस दुनिया में नहीं था ।
समाप्त
समाप्त का मतलब यह नहीं है कहानी खत्म हो गई है । बस इसके आगे की अभी लिखी नहीं गई है।कहानी हर पल बुनी , हर पल लिखी जा रही है। इसके आगे की कहानी जानने के लिए,उस पर से पर्दा हटाने के लिए आपको खुद प्यार करना होगा।
हम सबके अंदर एक सैंट वैलेंटाइन है , अब ये आपके ऊपर है की आप उसे बेड़ियों में जकड़कर रखना चाहते हैं या प्रीत के खुले आसमान में स्वच्छंद उड़ान भरने देना चाहते हैं।
