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Abhishu sharma

Inspirational

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Abhishu sharma

Inspirational

आवारा

आवारा

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जैसे शिशु के पैदा होने के अगले पांच साल तक पोलियो की खुराक अति आवश्यक होती है ताकि जीवनभर का लंगड़ापन ना झेलना पड़ जाए, ठीक उसी प्रकार यही बचपन का वक़्त ,यह लड़कपन की संवेदनशीलता इतनी अधिक होती है की यदि यह नए-नवेले रोपित बीज से फूटे अंकुर को पर्याप्त मात्रा में तराई ,सूरज की करणों का पोषण मिल जाता है तो यह खुराक ज़िंदगीभर के लिए उसकी जड़ों को ज़मीन से जोड़कर बेहद मज़बूती प्रदान करती है।

एक पौधे के कपोलों की कोमलता इतनी अधिक होती है की यह तरी,यह उम्मीद की किरणें उनसे छीन ली जाएँ तो आगे की पूरी ज़िन्दगी में सूखापन और खालीपन भर जाता है।

कुछ ऐसी ही प्रीत और स्नेह की खुराक दस वर्षीय श्याम को अपनी बड़ी बहिन श्यामा से मिली थी। दोनों एक दूसरे की जान थे। एक दिन की बात है ,दोनों भाई बहन गाँव के पल्ले-घर में छुपन-छुपाई का खेल ,खेल रहे थे । खेल के आवेश में श्याम का थप्पा बहन को इतनी जोर और इतने आवेग में लगा की वो नज़दीक खुदे गहरे कुएं में जा गिरी। अब श्याम इतना बड़ा तो नहीं था की खुद बहन की मदद कर पाता । वह रोता हुआ घर आया और पिताजी को पूरा वाक्या कह सुनाया ,आनन फानन में पिताजी जब तक वहां पहुंचें तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

बस उसी पल से श्याम की रूह को खुराक की एक बूँद तक नसीब नहीं हुई थी और अब यही भूख उसकी ज़िन्दगी थी। बहन के बिना उसके लिए यह दुनिया मानो बिलकुल ही अलग और नई थी । यह नई दुनिया उसकी अतरंगी हरकतों को ,ज़िदों -शरारतों को उस स्नेह भरी ,ममतामय और क्षमादृष्टी से कतई नहीं देखती थी जैसे श्यामा उसे लाड करती थी।

पहले वाला श्याम बेहद ज़िद्दी ,बड़ा नटखट और सबकी आँखों का तारा था। कोई बात अगर मन में आ गई , और मुँह से निकल गई तो बस उसे पूरा करके की दम लेता था। चित्रकारी का इतना शोक था ,जूनून था की अगर कोई तस्वीर दिमाग में घर कर गई तो जब तक मन-माफिक चित्रकारी ना कर लेता, रात-रात भर नहीं सोता था पर अब हालत कुछ और थे।

उसने चित्रकारी तो दूर ,रगों से ही खुद को बेहद दूर कर लिया था। कपड़े भी सिर्फ सफ़ेद रंग के ही पहनता।

यह नई दुनिया बात-बात पर उसे डांटती ,फटकारती और उसकी हर एक हरकत पर टोकती थी। जिस लड़के के दिल का हर एक कतरा प्रेम के धागों में पिरोया हुआ था ,अब उसे इस दुनिया से ही नफरत हो गई थी। स्नेह के बंधन में द्वेष का विष घुल गया था।

नियमों को ,जिन बातों को करने की सख्त मनाही होती ,उन्हें तो वह अदबदाकर जरूर करता। इस जंगली फूल का अब कोई माली नहीं था। पर जैसे की कहते हैं ना ' भगवान को अपने ईमानदार और कमज़ोर बच्चों से अधिक स्नेह होता है और वही परमात्मा इन्हे नष्ट होने से बचाता है '। भगवान की लीला ने ही इस आवारा को भी बचा लिया। वे उसकी आवारागर्दी के गहरे गड्ढों से भरी ऊबड़खाबड़ सी सीधी सड़क पर एक मोड़ ले आये थे और इस मोड़ का नाम था 'साहित्य '।

मोटी-मोटी, हीरे मोतियों वाली जादुई ,तिलस्मी किस्से कहानियों से भरी किताबों का रस अब उसकी नीरस ज़िन्दगी की खुराक हो गया था। पंद्रह साल के लड़के ने हिंदी ,ईरानी ,रशियन ,अमेरिकन सब देशों का साहित्य चाट डाला था। शेखचिल्ली के किस्सों से लेकर 'मिस्ट्रीज़ ऑफ़ इंडियन जोंस इन टोम्ब्स ' तक ढेरों कहानिया ही कहानियां।

इसी अग्नि में तपकर तैयार हुआ था सदी का महान अमर कथा चित्रकार ' श्याम जिगर-धूमिल '।


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