दो दोस्त और जादुई वृक्ष
दो दोस्त और जादुई वृक्ष


ये कहानी सुजालपुर गाँव की है। गाँव में हर तरह और हर जाति के लोग रहते थे। कुछ भले भी थे ,कुछ अपने काम से काम रखने वाले भी थे और कुछ के मन में धन का लालच भी था और कुछ मन में कपट भी रखते थे। जो लोग भले थे वो भलाई का काम करते और दूसरों की हर तरह से सहायता भी करते।जिस से उनका हर काम करने में भगवान भी सहायता करते। कुछ लोग जो अपने मन में कपट लिए चलते उनका काम रुक रुक चलता।
उसी गाँव में सूजल नाम का लड़का रहता था। मन का साफ़,समझदार और दूसरों की भलाई चाहने वाला अपने से जो बल पड़ता उतनी दूसरों की सहायता भी करता। उम्र कुछ तीस वर्ष के आस- पास होगी। खेत में घर वालों की सहायता करता। खुद दूसरों की भलाई करता तो गाँव वाले भी उसकी काफी सहायता कर देते जिस से उसका हर काम आसान हो जाता।
गाँव में ही सूजल का दोस्त था गोमू। गोमू का स्वभाव जैसे भगवान ने उसके खुद के लिए ही बनाया हो। वो अपने काम से काम रखता। दूसरों की सहायता करना उसे समय खराब करने के समान लगता। इसी बात से वो कई बार अपने काम में भी मात खा चूका था। उसका काम कई बार होते होते बिगड़ जाता और उसे वही काम दोबारा करना पड़ता। सूजल ने उसे कई बार समझाया पर उसके कान पर जूं न रेंगती।
सूजल और गोमू का घर कुछ दूरी पर था और उनका खेत पास-पास। दोनों दिन के काफी समय साथ रहते और खेत में भी साथ ही जाते और साथ ही वापस आते। उनका स्वभाव एक दुसरे के विपरीत था पर उनकी दोस्ती पक्की थी। खेत में काम के समय दोनों दोस्त एक दुसरे की सहायता करते पर कई बार गोमू बहाना बनाकर इधर उधर चला जाता। सूजल समझदार था तो वह अपनी समझदारी से अपना काम कर लेता।
एक दिन दोनों दोस्त खेत में घर वालों का हाथ बंटाकर घर की तरफ आ रहे थे। गाँव के पास पहुँचते ही उन्हें रस्ते के पास एक पोधा दिखाई दिया। देखने से लग रहा था जैसे कुछ दिन पहले ही उगा हो। दोनों दोस्तों ने उस पौधे के चारों और कचरा हटाया, मिट्टी ठीक की और पानी डालने के लिए जगह बनाई। दोनों दोस्त उस पौधे का ख्याल रखते और हर रोज पानी डालते।
गोमू अपनी आदत से मजबूर कभी कभी बहाना बना लेता और सूजल के साथ पौधे में पानी डालने न जाता लेकिन सूजल पौधे में पानी डालना याद रखता और हर रोज पानी डालता। कुछ दिनों में ही पौधा काफी बड़ा दिखने लगा क्योंकि पौधे के बढ़ने की रफ़्तार सामान्य से ज्यादा थी। गाँव वाले भी आते जाते पौधे को देखा करते। कई बार बहुत से लोगो ने पौधे को पहचानने की कोशिश की पर ज्यादा ध्यान किसी ने नही दिया। पौधा और बढ़ने लगा और कुछ महीनों बाद ही काफी बड़ा वृक्ष बन गया।
एक दिन सूजल अपने घर पर था और गोमू को देखा तो कहने लगा चलो वृक्ष में पानी देने चलते है तो गोमू ने कहा अब वो बड़ा वृक्ष बन गया है,उसे पानी की इतनी जरुरत नही है। सूजल के कहने पर वो चलने के लिए तैयार तो हो गया पर थोड़ी देर बाद का बहाना करके निकल गया। सूजल ने काफी देर तक गोमू के आने का इन्तजार किया पर गोमू नही आया। बहुत देर तक इन्तजार करने के बाद सूजल अकेला ही चल पड़ा।
वृक्ष के पास जाकर उसने वृक्ष में पानी डाला। गोमू का इन्तजार करते करते काफी धुप हो गई थी तो सूजल वहीँ छांव में बैठ गया। थोड़ी देर कुछ सोच विचार करने के बाद जैसी ही वहां से उठा तो वहां एक थैले में वृक्ष के नीचे कुछ रखा हुआ देखा। थैले के पास जाकर उसने सोचा ये थैला यहाँ कौई भूलकर चला गया। फिर उसे याद आया कि रास्ते की तरफ तो मैं देख रहा था और इस तरफ से तो कोई भी नही आया तो ये थैला कहा से आया। सूजल ने उसे अनदेखा किया और अपने घर आ गया।
दुसरे दिन वह गोमू के घर गया और उसे वृक्ष में पानी डालने के लिए बोला तो गोमू ने उस दिन भी बहाना बना दिया कि मुझे कुछ काम है तो सूजल अकेले ही चला गया। उस दिन भी वही हुआ। सूजल जब वहां से उठ कर चलने लगा तो फिर वही थैला उसे वृक्ष के नीचे दिखाई दिया। उसने सोचा आज फिर कोई नही आया और ये थैला यही पर है और कल से इसे कोई लेकर भी नही गया। वह उस थैले के पास गया और उसे उठाकर खोलकर देखा तो वह थैले में देखकर हैरान रह गया।
थैले में अंदर उपर की तरफ सूजल का नाम लिखा हुआ था। अपना नाम देखकर एक बार तो वो डर गया पर फिर उसने थैले का सामान देखा तो उसे याद आया कि ये सब सामान तो मैं यही बैठ कर सोच विचार कर रहा था। मगर ये यहाँ आया कैसे तो उसे थैले से एक पन्ने पर कुछ लिखा हुआ दिखा। फिर उसे सामान के बारे में जानने की उत्सुकता होने लगी। उसने पढ़ा तो उसे पता चला जिसमे लिखा था कि यह तुम्हारी जरुरत का सामान है और तुम इसे ले जा सकते हो और साथ में लिखा था कि यह तुम्हारी मेहनत का फल है। सूजल ने थैला उठाया और घर आ गया।
इसके बाद काफी दिन तक सूजल उस वृक्ष में पानी देता रहा क्योंकि उसे सिर्फ मेहनत पर विश्वास था और फल की चिंता कभी नही करता था। यही कारण था कि उसके सभी काम बनते जाते। काफी दिन बीत गए।
फिर एक दिन सूजल पानी देने गया,उस दिन गोमू भी उसके साथ गया था। दोनों ने पानी डाला और वही बैठकर बाते करने लगे। थोड़ी देर बाद चलने लगे तो सूजल को उसी तरह कुछ रखा हुआ दिखाई दिया। पास जाकर उसने देखा तो उसी तरह सामान था जैसे कुछ दिन पहले उसे मिला था। गोमू ने देखा तो कहने लगा ये सब सामान के बारे में तो तू मुझसे बात कर रहा था। सूजल ने उस दिन का किस्सा गोमू को बताया,फिर सामान उठाया और दोनों घर आ गये।
फिर काफी दिनों तक सूजल के साथ गोमू भी जाने लगा। उसे लगा जैसे उसे भी सूजल की तरह उसकी जरुरत की हर चीज़ मिलेगी। अब वह हर रोज धन मिलने के बारे में सोचने लगा क्योंकि वह नही जानता था की सिर्फ सोचने से कुछ नही होगा।
काफी दिन और बीते। एक दिन गाँव का ही एक व्यक्ति चलते चलते उसी वृक्ष के नीचे बैठ कर आराम करने लगा। वह किसी का भला करने और मदद करने के बारे में सोच विचार कर रहा था और मन का भी साफ़ था। उठ कर चलने लगा तो उसके साथ भी वही हुआ। उसी तरह कुछ रखा हुआ दिखाई दिया। सब कुछ देखने के बाद वह उसे लेकर चला गया।
अब यह रोज का किस्सा हो गया। हर रोज कोई न कोई इसी तरह की बात गाँव में जाकर बताता। पुरे गाँव में यह चर्चा का विषय बन गया। कुछ लोग अपना लालच पूरा करने वहां जाते पर उनके हाथ कुछ न लगता और कुछ भलाई के मन से जाते तो उनकी हर जरुरत पूरी होती। यही हाल दोनों दोस्तों का था। गोमू स्वार्थ के भाव से जाता और सूजल के मन ऐसा कुछ न होता तो उसकी हर इच्छा पूरी हो जाती।
अब गाँव के कुछ लोग अपना मन साफ़ भी रखने लगे। लालच,ईर्ष्या सब अपने मन से निकालने लगे तो उनका हर काम पूर्ण हो जाता पर अभी भी गाँव के कई व्यक्ति ऐसे थे जो मन में लालच रखते थे।
इस कहानी से हमे यही सीख मिलती है कि हर व्यक्ति को अपना मन साफ़ रखना चाहिए। भलाई के राह पर चलना चाहिए। जरुरतमंदों की जरुरत का ख्याल करना चाहिए। इसी से भगवान किसी भी रूप में आकर सहायता करते है। अन्धविश्वास बनाना भी गलत होता है। भगवान की सहायता को आस्था तक ही रखना ठीक है। जैसे गाँव के लोगो ने वृक्ष के लिए अन्धविश्वास न मानकर आस्था बनाया और अपने मन का लालच छोड़ भलाई के राह पर चले। कुछ गोमू जैसे व्यक्ति भी होते है जिन्हें भगवान खुद भी न बदल पाए।