Dhan Pati Singh Kushwaha

Children Stories Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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लहरें कोरोना के संक्रमण की

लहरें कोरोना के संक्रमण की

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व्हाट्सएप के माध्यम से पहले से दी गई सूचना के अनुसार सायंकाल ठीक 5:00 बजे मेरी कक्षा के कई विद्यार्थी गूगल मीट के माध्यम से आभासी बैठक (वर्चुअल मीटिंग) में मेरे साथ जुड़ गए।एक दूसरे के साथ औपचारिक अभिवादन और कुशल क्षेम जानने के उपरांत सबसे पहले ओमप्रकाश ने अपनी जिज्ञासा रखी। वह यह जानना चाहता था वैश्विक महामारी कोरोना के संदर्भ में यह पहली दूसरी तीसरी लहर क्या है ? इन लहरों के बनने उच्चतम स्तर पर पहुंचने फिर गिरावट के बाद न्यूनतम स्तर पर आने के बाद किस तरीके से अगली लहरें आती हैं?


मैंने सभी को समझाते हुए बताया कि किसी भी रोगाणु का संक्रमण एक विशेष स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने उसके तेजी से प्रजनन वृद्धि के लिए अनुकूल मौसम ,ताप आदि की अनुकूल परिस्थितियों के साथ - साथ हमारी अपनी अस्वास्थ्यकर जीवन शैली के चलते एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचता है । जब यह संक्रमण अपने उच्चतम स्तर की ओर अग्रसर हो रहा होता है ।उस समय चिकित्सकों और सरकारी दिशा निर्देशों , लोगों की सजगता चाहे वह समझदारी के कारण हो या भय के कारण इस संक्रमण में गिरावट आती है। लोगों के द्वारा सावधानियां बरतने के कारण ही संक्रमण काफी नीचा अर्थात अपने न्यूनतम स्तर पर आ जाता है लेकिन जैसे ही परिस्थितियां सामान्य सी होती हुई लगती हैं। लोगों की लापरवाही फिर बढ़ने लगती है और लोगों की यह यह असावधानी संक्रमण के पुन: बहुत तेजी से फैलने का कारण बनती है। अब जो संक्रमण न्यूनतम स्तर पर आ चुका होता है संक्रमणकारी रोगाणुओं के ज्यादा सक्रिय होने से यह संक्रमण फिर से बहुत ही तेजी से बढ़ता है तो इसे अगली लहर का नाम दिया जाता है ।इस लहर में संक्रमण की भयावहता, उपाय , और फिर से लोगों की सावधानियां भी इसमें अपना अपनी भूमिका निभाती हैं और संक्रमण उन्हें उच्चतम स्तर पहुंचने के बाद सावधानी बरतने और उपचार आदि के समुचित प्रबंधन से पुनः इस लहर में गिरावट आती है।इस प्रकार अगली लहर पूरी होती है। पहली लहर समाप्त होने के बाद सामान्य लोगों की सावधानियां कुछ ज्यादा ही होती इसलिए जैसा कि पिछली सदियों की महामारियों अनुभव यह बताते हैं कि सामान्यता यह दूसरी लहर ज्यादा घातक और विनाशकारी होती है।


आकांक्षा ने जानना चाहा कि क्या हर अगली लहर अपनी पिछली लहर से ज्यादा घातक होती है? तो उसकी इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए मैंने बताया कि पहली लहर के बाद लोगों की असावधानियां ज्यादा होती हैं ।वे पहली लहर के निकल जाने जाने के बाद काफी लापरवाह होते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि संक्रमण और महामारी समाप्त हो चुकी है इसलिए दूसरी लहर पहली लहर की तुलना में ज्यादा घातक होती है। दूसरी लहर के घातक प्रभाव से लोग एक सीख ले चुके होते हैं और दूसरी लहर के बाद जब संक्रमण फिर से बढ़ने लगता है तो लोग पिछले अनुभवों को ध्यान में रखते हुए जल्दी ही समझ जाते हैं और आवश्यक सावधानियां शीघ्र और अधिक प्रभावकारी तरीके से बरतते हैं । यही कारण है कि अगली लहर पिछली लहर की अपेक्षा कम घातक होती है। सामान्यतया तीसरी लहर के बाद लोगों में संक्रमण फैलने के कारण उसके एंटीबॉडीज ज्यादातर लोगों में बन चुके होते हैं और अन्य या तो आती ही नहीं और यदि आती ही है तो यह लहरें अपेक्षाकृत कम घातक होती हैं।


अब रीतू अपने प्रश्न के माध्यम से यह जानना चाहा कि हमारे देश की सबसे पहली दूसरी लेकर गई है लेकिन कहा गया था कि कुछ स्थानीय स्तर पर यह तीसरी चौथी लहर थी जैसे की दिल्ली के बारे में कहा गया कि शायद यह दिल्ली में चौथी लहर थी तो ऐसा क्यों कि देश के लिए दूसरी लहर और दिल्ली के लिए शोक की लहर रितु की इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए मैंने उसे बताया कि देश के लिए दूसरी लहर का जब अर्थ लिया जाता है तो पूरे देश से संक्रमण के आंकड़े जुटाए जाते हैं उस आधार पर अधिकतम और न्यूनतम संक्रमण के इस तर्क के आधार पर लहर का निर्धारण किया जाता है जबकि किसी एक शहर या किसी एक क्षेत्र में संक्रमण के चढ़ाव और उतार के कारण वहां स्थानीय स्तर पर यह लहर तीसरी या चौथी अथवा किसी क्षेत्र विशेष में पहली भी हो सकती है ।यह कोई ऐसा क्षेत्र भी हो सकता है जहां देश की पहली लहर की अवधि का असर वहां हुआ ही न हो या न के बराबर हो और जब पूरे देश में दूसरी लहर आई तब वहां पहली बार संक्रमण के बहुत अधिक मामले देखे गए हो तो उस चित्र के लिए यह पहली लहर ही होगी देश के किसी भाग में ऐसा चित्र भी हो सकता है कि वहां संक्रमण का असर अभी तक हुआ ही न हो इसका अर्थ यह हुआ कि वहां कोई लहर नहीं आई।


अजय ने एक बड़ा ही महत्वपूर्ण इस बैठक में रखा उसने यह जानना चाहा कि क्या यह संभव है कि हम अधिकांश संक्रमण से अपने आप को सुरक्षित रख पाएं इसके लिए क्या किया जाना चाहिए? मैंने अजय को शाबाशी देते हुए कहा कि बेटा अजय तुमने बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न किया है। तुम्हारे कहने का अर्थ यह है कि हम किस तरीके से अजेय रह सकते हैं अर्थात अपने आप को किसी भी प्रकार के संक्रमण से मुक्त रख सकें। हमने सदा ही कक्षा में भी चर्चा की है कि हम अपने स्वास्थ्य का भली-भांति ध्यान रखें तो वह कहावत कि 'बचाव उपचार से बेहतर है 'पूरी तरह लागू होती है ।हम सबको अपने स्वास्थ्य ,आहार -विहार के नियमों का पूरी इमानदारी से पालन करना चाहिए। हम सब अपनी कक्षा की पाठ्य- पुस्तकों में बताए गए भोजन ,स्वच्छता ,आहार-विहार ,व्यायाम - योग इत्यादि प्रकरणों को पढ़ते हैं और उनका उपयोग केवल परीक्षा पास करने के लिए नहीं बल्कि अपने सामान्य जीवन में अपने आचरण -व्यवहार -स्वास्थ्य को उत्कृष्ट बनाए रखने के लिए लागू करते हैं तब निश्चित यह सब लागू होता है। यही तो शिक्षा का उद्देश्य होता है कि पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से सीखे गए ज्ञान को हम अपने जीवन में व्यवहार में लाएं। विज्ञान विषय में हम पोषण ,पोषक -तत्व ,भोजन के विभिन्न स्रोतों ,भोजन की पौष्टिकता बढ़ाने की प्रक्रियाओं को पढ़ते -सीखते और आजीवन उनका ध्यान रखते हैं ।अपनी जीवन शैली में व्यायाम ,योग-आसन और विविध प्रकार के खेलकूद को अपने जीवन का एक हिस्सा बना लेते हैं । पाठों में बताए गए नियमों के आधार पर अपनी स्वच्छता जिसमें आंतरिक और बाह्य स्वच्छता दोनों शामिल हैं। हमारी व्यक्तिगत, आसपास और सामुदायिक स्वच्छता का पूर्ण रूपेण ध्यान रखते हैं तो हमारी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं नगण्य होंगी।


साधना ने सबके साथ अपने विचार साझा करते हुए बताया कि किस प्रकार विविध कहानियों के माध्यम से हम सबके चरित्र जीवनोपयोगी सद्गुण विकसित होते हैं । अपने बड़ों और छोटों के प्रति आदर्श- व्यवहार, नैतिकता ,अपने कर्तव्यों का बोध, अपनी प्राचीन संस्कृति और पूर्वजों के कार्य व्यवहार से उनके द्वारा सुझाए गए सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा विविध प्रेरक कहानियों और संस्मरणों से मिलती है। ठीक उसी प्रकार हम अपने विविध विषयों के अध्ययन से स्वास्थ्य , यातायात, समाज में व्यवहार और विविध प्रकार के व्यावहारिक ज्ञान को अर्जित करते हैं । इस ज्ञान की सहायता से स्वयं भी हम समाज में सुविधाजनक तरीके से रहते हैं , लोगों के व्यवहार से सीखते तथा अपने व्यवहार से दूसरे लोगों पर अपने आचरण की छाप छोड़ते हैं ।पाठ्य पुस्तकों की मदद से हम विविध जानकारियां चाहे वह प्राचीन काल से संबंधित हो या आधुनिक नव- तकनीक के विकसित होने और उसके प्रयोग की समुचित जानकारी भी शामिल है ,यह सब कुछ सीखते हैं । हम सबको अपने विषयों की पाठ्य पुस्तकों में दिए गए ज्ञान को अपने जीवन में व्यावहारिक रूप में शामिल करना चाहिए तब ही शिक्षा का उद्देश्य पूर्ण हो पाएगा।


साधना की बात पूरी होने के उपरांत मैंने जानना चाहा कि किसी दूसरे बच्चे की और कोई जिज्ञासा या कोई विचार हो तो वह प्रस्तुत कर सकता है। लेकिन किसी भी बच्चे ने न तो कोई जिज्ञासा व्यक्त की और ना ही और कोई विचार रखने की मंशा व्यक्त की ।तब हम सबने इस आभासी बैठक से एक दूसरे को पुनः अभिवादन करते हुए विदा लेते हुए अगली बैठक तक प्रतीक्षा करने को कहा।आशा व्यक्त की कि इस बीच में जिसके मन में जो- जो जिज्ञासा उत्पन्न हो या कोई उपयोगी विचार मन में आए तो वह उसे अपनी डायरी में नोट करता रहे और अगली बैठक में अपनी उन जिज्ञासाओं या अपने इन विचारों को प्रस्तुत करने के लिए तैयार रहे।


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