प्रभु की कृपा भाग 2
प्रभु की कृपा भाग 2
पुजारी बोला...... नारायणदास सुनो.... यह मेरा नहीं प्रभु का आदेश है कि तुम अपने हल को साफ-सुथरा करके आने वाली अमावस्या को अर्धरात्रि के बाद प्रथम पहर यानी 2:00 से 3:00 बजे शुभ बेला में अपने साथ कुछ पुष्प, रोली, चावल लेकर गांव से बाहर वाले बाग में पीपल के पेड़ के पास पहुंच जाना। वहां उस हल को जमीन में इस प्रकार गढाना कि उसका लकड़ी वाला हिस्सा जमीन के अंदर और लोहे वाला हिस्सा, जिससे जमीन की मिट्टी पलट जाती है, वह ऊपर की ओर रहे।फिर उस लोहे वाले हिस्से पर रोली का तिलक लगाकर थोड़े चावल समर्पित करके उस पर पुष्प चढ़ा देना और प्रार्थना करना कि हे प्रभु मेरी पूजा से प्रसन्न होकर मुझे दर्शन दीजिए। फिर उस पीपल के पेड़ पर चढ़कर अपने वस्त्र उतार देना और केवल अधोवस्त्र धारण किए रहना।उसके बाद अपने पेट को जमीन की ओर करते हुए पेट के बल हल के उस लोहे वाले हिस्से के ऊपर गिर जाना। अगर प्रभु प्रसन्न हो गए तो तुम्हारे सारे कष्टों का निवारण कर देंगे। यह बात जब किसान की पत्नी ने सुनी वह जोर से चिल्लाई..... नहीं ....स्वामी .….तुम...! आगे कुछ कह पाती कि पुजारी ने उसका हाथ अपने दोनों हाथों से थाम लिया। उसको सहलाकर कुछ दबाते हुए बोला.... अरे पगली ...तू कैसी भारतीय नारी है जो पति को ईश्वर दर्शन से रोकना चाहती है। तू नहीं जानती तू कितना बड़ा पाप कर रही है। पत्नी का तो धर्म है कि पति के नेक कार्य में भागीदार बने और.... तू ... हुं....!
लेकिन ....अगर इन्हें कुछ हो गया तो... पुजारी.... जी। किसान की पत्नी ने पूछा।
अरे ....पगली इसे कुछ नहीं होगा। इसे तो प्रभु के दर्शन होंगे और अगर कुछ ऐसा वैसा हुआ तो..... तो ....हम लोग हैं ना .....तेरी मदद के लिए।
पुजारी किसान के सामने उसकी पत्नी का हाथ अपने हाथों में थाम उसे सहला सहला कर दबाते हुए यह बातें करता रहा और बेचारा किसान प्रभु दर्शन की आस में अनजान बना बैठा देखता रहा। कहते हैं स्त्रियां अपनी आबरू पर आने वाले संकट को बहुत जल्दी भांप लेती हैं।वह भी पुजारी के नापाक इरादों को भांप चुकी थी। तभी किसान की पत्नी ने जोर से अपना हाथ उसके हाथों से खींचकर साड़ी में छुपाने का प्रयास किया।
अब किसान और उसकी पत्नी मंदिर से उठकर वापस घर लौट आए। किसान को अब आने वाली अमावस्या का इंतजार था। उसकी पत्नी उसे इस कार्य को करने के लिए न कहती लेकिन वह उसकी बात अनसुनी कर देता।
आखिर आज अमावस्या की काली रात भी आ गई जिसका उसे इंतजार था। यमदूतों ने बाग में डेरा डाल दिया। वह किसान की आत्मा को ले जाने के लिए तैयार बैठे थे। किसान आज की रात प्रभु दर्शन की आस में सो न सका और उसकी पत्नी , पति वियोग के सोच में घुली जा रही थी। आखिर वह घड़ी आ पहुंची जिस घड़ी की प्रतीक्षा किसान नारायण दास को पिछले कई दिनों से थी। स्नान आदि से निवृत्त होकर ,अपने पूजा की सभी सामग्री तैयार करके, हल को साफ-सुथरा करके, वह अपनी पत्नी के पास गया और बोला सुन ....अब मैं जा रहा हूं।मुझे द्वारे तक छोड़ने नहीं चलेगी। इतना सुनते ही उसकी पत्नी की आंखों से आंसू बहने लगे वह जोर-जोर से रोने लगी उसे लगा कि शायद आज मैं इन्हें जैसे अपनी जिंदगी से ही विदा कर रही हूं। वह उसके पैरों से लिपटकर रोते-रोते कहने लगी...... स्वामी जरा सोचो.... मुझे अभागन ...बांझ ...औरत के साथ इस गांव में कैसा व्यवहार होता है और यदि मैं विधवा हो गई तो ....तो मेरा.... क्या होगा? मैं तो जीते जी मर जाऊंगी।यह दुनिया मुझे जीने नहीं देगी। अभी तो आप हैं ....जो मेरी रक्षा करते हैं ...फिर? फिर तो यह गिद्ध मुझ अबला को नोच नोच कर खा जाएंगे। स्वामी मेरी बात समझो ! इस प्रण को त्याग दो। मुझे संतान नहीं चाहिए। मेरे लिए तो मेरा सुहाग ही काफी है। कुछ तो सोचो..… कुछ तो बोलो ..।
किसान शांत भाव से बुत बना सब सुनता रहा। उसने आज तक अपनी पत्नी की ऐसी हालत कभी नहीं देखी थी। वह सोचने लगा कितनी स्वार्थी है यह औरत! और ...मैं ....मैं ही बेकार में इसके तानों की फिक्र किए पडा हूं। फिर एक पल रुक कर उसने सोचा ....नहीं.. नारायणदास सोच.… यह पत्नी तुझसे कितना प्रेम करती है। अपने सुहाग के आगे उसे कुछ और मंजूर नहीं। लेकिन.... मेरा भी तो अपनी पत्नी के लिए कुछ कर्तव्य है कि सारे कर्तव्य उसी को निभाने हैं। उसने उसे उठाकर अपने गले से लगाते हुए कहा..... अरे पगली ...जो तुझ पर बीतती है वह मुझसे भी देखा नहीं जाता। तू ही बता ...मैं तो खेत खलिहान जाकर अपना मन लगा लेता हूं और तू..….. तू कब तक दुनिया के तानों से घुटकर मरेगी। सच में यह समाज बहुत खुदगर्ज और निर्दयी है। हम जैसे गरीबों का तो यहां...…? खैर तू छोड़ परेशान ना हो।अगर मुझे प्रभु मिल गए तो मैं उनसे तेरी सारी समस्याएं कह दूंगा।अभी तू मुझे जाने दे।अपने आंसू पोंछ ले। तू ही तो मेरी हिम्मत है ....पगली ! तेरे सिवा मुझ दुखिया का भी तो कोई नहीं है।भगवान भी हम गरीबों से ही रूठता है। अच्छा... हट ....अब मुझे जाने दे। प्रभु मिलन की शुभ घड़ी बीती जा रही है। और ऐसा कहते हुए नारायणदास घर से निकल गया। इधर उसकी पत्नी अपने बिस्तर पर जाकर हूक भर भर कर रोने लगी। कुछ ही समय में नारायणदास बाग में पहुंच गया। बाग में बहुत सन्नाटा था। शियारों की आवाजें उसे डरा रही थी। किसान को अब मन ही मन डर लगने लगा।
अब किसान क्या करेगा ? .........क्रमशः