Dr Sanjay Saxena

Others

4  

Dr Sanjay Saxena

Others

आत्म समर्पण भाग 2

आत्म समर्पण भाग 2

7 mins
261


इस धारावाहिक रचना के पहले भाग में आपने पढ़ा कि डॉक्टर साहब की पत्नी रानी अपनी 5 वर्षीय बेटी राधिका के साथ चंबल के बीहड़ों में 50 लाख रुपए की रकम थैले में भरकर जंगल में अकेली जाती है... अब आगे...

तभी अचानक से पीछे से बंदूक चली। वह घबरा गई। उसने पीछे मुड़कर देखा... पर वहां कोई न था। डर से उसका बुरा हाल था । तभी उसे एक बदमाश ने पीछे से कस कर पकड़ लिया और दूसरे ने उसकी बच्ची का मुंह दबाते हुए अपनी गोद में उसे उठा लिया। वे उन दोनों को पकड़कर डकैतों के सरदार के सामने ले गए।

डॉक्टर साहब ने जब अपनी पत्नी और बच्ची को इस तरह से आते देखा तो उनके हृदय को बहुत पीड़ा हुई। उसने कहा.."सरदार क्या आपको अपना रुपया मिल गया?" सरदार की निगाहें अपने गैंग के अन्य सदस्यों की नजरों से मिली... तो उन्होंने बैग की ओर इशारा करते हुए सिर हिला दिया। डॉक्टर साहब ने फिर कहा... सरदार अपने वायदे के मुताबिक अब हम तीनों को घर जाने दिया जाए। सरदार ने तीनों को बंधन मुक्त करने का आदेश दिया। बदमाशों की गोद से छूटते ही राधिका अपने पापा से चिपक गई और बोली... "पापा अब हम कहां जाएंगे??" डॉक्टर साहब ने कहा... "बेटा अब हम अपने घर जाएंगे! पर पापा... घर तो दूसरे अंकल ने खरीद लिया है..!"

दूसरे अंकल ने .....

"हां ....हां ....पापा जी ने घर को गिरवी रख कर पैसों का इंतजाम किया था ना ...!" रानी ने कहा

उनकी बातें सुनते ही सरदार के मन को जोर का झटका लगा । दरअसल पिछले 15 दिनों में सरदार.. डॉक्टर द्वारा किए गए व्यवहार से बहुत प्रभावित था! डॉ.. न सिर्फ उन सभी को समझाता था वरन् उनके स्वास्थ्य से संबंधित सलाह व उपचार भी दिया करता था! उसने कभी वहां से भागने का प्रयास भी ना किया था! इस कारण सरदार डॉक्टर पर बहुत विश्वास करता था!

उसके कठोर हृदय में दया के बीज पनपने लगे थे ।घर को गिरवी रखने की बात सुनते ही उसने कहा... माफ करना डॉक्टर... मैंने तुम लोगों को बेघर कर दिया !अब यह पैसे तुम रख लो और अपने घर को पुनः हासिल कर लेना! डॉक्टर ने कहा... सरदार आप अपना वचन भंग न करो क्योंकि यदि इंसान को वचन भंग करने की आदत हो जाए तो वह लोगों को कभी वचन देने के लायक नहीं रहता। मेरा क्या है...? कहीं भी चला जाऊंगा ...? हां मेरी एक बात याद रखना... जिसका अपना घर ना हो ...वह दूसरों को बसने के लिए भला घर क्या देगा ....? इतना कहकर डॉक्टर अपने परिवार के साथ वहां से चल दिया।

    डॉक्टर की गुस्ताखी के लिए गिरोह के एक सदस्य ने बंदूक उठाई और कहा... सरदार आप हुक्म दें तो ...इन तीनों को यही ढेर कर दूं। इस डॉक्टर को भी पता चल जाए डकैतों से जुबान लड़ाने की कीमत कैसे चुकानी पड़ती है। अपने गैंग के सदस्य द्वारा कही गई बात सरदार के दिल में तीर जैसी चुभी। वह उठ खड़ा हुआ और उसने एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर रसीद कर दिया। गैंग के सभी सदस्य सरदार के इस व्यवहार से भौंचक्के रह गए।

    सरदार ने कहा... तुम कभी अच्छाई बुराई की परख नहीं कर सकते। तू जानता है हरिया जब मेरी बच्ची और पत्नी को बदमाश उठाकर ले गए थे और मैं उनके पीछे पीछे दौड़ा था ...तो उन्होंने मेरी बीवी और बच्ची को गोली मार दी और वह मुझसे हमेशा हमेशा के लिए दूर चले गए! मेरे मां बाप तो पहले से ही मुझे अकेला छोड़ गए थे। अब मैं इस संसार में बिल्कुल अकेला रह गया और उन बदमाशों से बदला लेने की ठान कर आज स्वयं एक डाकू बन गया। पर मुझे मिला क्या...? न बीवी मिली.. और न मेरी बच्ची..?? आज जब इस बच्ची को तू मारने चला तो मुझे अपने बीते दिन याद आ गए! जरा सोच... डॉक्टर ने पिछले 15 दिनों में हमारी कितनी मदद की और आज उसकी पत्नी सब कुछ बेच कर हमारे लिए मुंह मांगी रकम लाई फिर भी हम उसे मार दें !!

अरे इन बुराइयों के साथ रहते रहते और कितने बुरे बनेंगे हम ...! कितना नीचे गिरेंगे और ...! हरिया से बात करते-करते डॉक्टर का परिवार कब आंखों से ओझल हो गया सरदार को पता ही ना चला ।उस रात सरदार की नींद उड़ चुकी थी । वह डॉक्टर के साथ बिताए गए लम्हों को याद करने लगा। वह सोचने लगा काश... डॉक्टर जैसा कोई आदमी मेरी जिंदगी में पहले आया होता... तो मैं भी आज डाकू ना होता..! काश मुझे किसी अपने ने अच्छे से समझाया होता..! मेरे कर्मों पर मुझे चाटा मारा होता...! सही कहता था डॉक्टर... भला मौत देने वाला किसी को जीवन देने का सुख क्या जाने। अरे जिसको जीवन लेने में ही सुख मिलने लगे भला वह जीवन देने के बारे में क्यों विचार करे ।

आज अचानक से यह मुझे क्या होने लगा....!; डॉक्टर के जाने से मुझे अपनी दुनिया वीरान सी क्यों लगने लगी..! क्या सचमुच मेरा हृदय परिवर्तन होने लगा है...?? मुझे तुम्हारी जरूरत है डॉक्टर । कहीं मेरा द्रवित हुआ ह्रदय फिर से कठोर ना हो जाए ।इससे पहले यह फिर से कठोर हो मुझे संभाल लो ...? बचा लो मेरी जिंदगी..!

  सरदार की बेचैनी लगातार बढ़ती जा रही थी। वह भोर का इंतजार करने लगा।

     आज सरदार को भोर बदली बदली सी लगने लगी । सरदार उठा और उसने अपने गैंग के एक सदस्य बीजू को डॉक्टर को बुलाकर लाने को कहा। सरदार का विश्वसनीय बीजू डॉक्टर को खोजते.. उसके घर पहुंचा..! पर यह क्या.. यहां तो ताला लगा था! उसने आकर सरदार को सब कुछ बता दिया कि डॉक्टर वहां नहीं है..!! सरदार के कहने पर कुछ दिन और डॉक्टर को खोजा गया ...मगर उसका कुछ पता ना चला!

तभी एक दिन गैंग के एक सदस्य ने सरदार को सूचना दी सरदार... डॉक्टर बीहड़ की तरफ आ रहा है।

अच्छा .. उसे बुला कर ले आओ मेरे पास..

पर कहीं उसके साथ कोई पुलिस ना हो ...जरा उससे होशियार रहना ...सरदार...!!

अच्छा ऐसा करो ...तुम लोग रुको... डॉक्टर के पास मैं अकेला जाऊंगा ..! वह उठा और तेज कदमों से बताई गई दिशा में डॉक्टर से मिलने के लिए चल दिया। डॉक्टर के पास पहुंचकर वह डॉक्टर के चरणों में गिर गया और उससे अपने कृत्यों के लिए माफी मांगने लगा।

डॉक्टर ......सरदार के इस व्यवहार से आश्चर्यचकित रह गया। उसे सरदार द्वारा किए गए इस व्यवहार की कोई उम्मीद न थी ।उसने कहा .. सरदार मैंने आपके साथ 15 दिन व्यतीत किए ।आप सभी लोगों के स्वास्थ्य की कामना करते हुए उपचार भी दिया। आज मुझे सूचना मिली कि पुलिस कप्तान ने आपके गैंग के खात्मे के लिए कई टीमों का गठन किया है। आपकी जिंदगी की सलामती चाहने के लिए मैं आपके पास चला आया। आप यहां से कहीं और चले जाओ। मैं आप लोगों को मरते तड़पते नहीं देख सकूंगा।

   सरदार और उसके साथी डॉक्टर को एकटक देखते रह गए ।एक अजनबी डॉक्टर के मन में हमारे लिए इतनी हमदर्दी ...! सचमुच यह डॉक्टर नहीं कोई फरिश्ता है। सच ही कहा है.. मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है! उसने डॉक्टर से आग्रह किया.. डॉक्टर आप मुझे कल एसएसपी कार्यालय पर मिलना।

लेकिन क्यों......

यह मैं बाद में बताऊंगा... सरदार ने कहा

डॉक्टर उन्हें सूचना देकर जा चुका था। उसके जाने के बाद सरदार ने कहा... देखा हरिया.. मैं कहता था ना यह एक नेक इंसान है। ऐसे फरिश्ते रोज-रोज और हर किसी को नहीं मिलते। उसने डॉक्टर होकर हमेशा लोगों को जीवनदान दिया.. इसीलिए वह महान है और हमने... हमने हमेशा लोगों का जीवन छीना... इसीलिए हम समाज से बहिष्कृत हैं ! भलाई करने वाले को समाज में किसी से डरने की जरूरत नहीं और हम बुराई साथ लेकर खुद को ताकतवर कहते हैं ना.. पर मौत से डर कर भागे भागे फिरते हैं। नहीं हरिया.. अब और नहीं.. कल का सवेरा हम सब के जीवन का एक नया सवेरा होगा! तुम सब को मेरे साथ चलना होगा.. डॉक्टर के पास .. ..अपने गुनाहों की माफी मांगने... एक नए रास्ते पर चलने ......!!!

अगली सुबह सरदार अपने सभी साथियों के साथ हथियार लेकर शहर की ओर चल पड़ा। एक साथ डकैतों को देखकर डर से सारे बाजार बंद होने लगे। पुलिस को अलर्ट कर दिया गया ।सरदार और सभी सदस्य एसएसपी ऑफिस पहुंचे। वहां बाहर उन्हें डॉक्टर साहब खड़े मिले। सभी डकैतों को हथियार के साथ देख कर वह बहुत खुश हुए। उन सभी का मंतव्य समझते हुए उन सभी को एसएसपी साहब के सामने ले गए ।  आज डॉक्टर के प्रयास से सभी बदमाशों ने आत्मसमर्पण कर दिया। सरदार ने डॉक्टर साहब से गले मिलकर भलाई की नई राह पर चलने का संकल्प लिया और डॉक्टर साहब से मदद करने का आश्वासन लेकर अपने कर्मों का फल भोगने जेल चले गए आंखों में एक नई सुबह की उम्मीद लेकर......

                          



Rate this content
Log in