Dr Sanjay Saxena

Inspirational

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प्रभु की कृपा भाग 3

प्रभु की कृपा भाग 3

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किसान अपने घर से चलकर बाग में पहुंचता है जहां उसे सियारों की आवाज सुनकर डर लगता है अब आगे.........

  लेकिन कहते हैं ना जहां चाह वहां राह। किसान के मन में तो प्रभु प्रेम बसा था । वह उनके दर्शन जल्द से जल्द करना चाहता था ।अतः उसने सारे कार्य वैसे ही किए जैसे उस पुजारी ने उसे समझाया था। वह पीपल के पेड़ पर चढ़ गया और प्रभु का स्मरण करके अपना पेट जमीन की ओर करते हुए हल पर गिर गया। उसके मन में जरा भी घबराहट नहीं थी। प्रभु दर्शन के बारे में तनिक भी संदेह न था। लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना अन्य किसी ने भी न की थी ।

        चारों ओर खामोशी ही खामोशी थी। एक दिव्य प्रकाश पुंज चारों ओर फैल गया और हल पर गिरने से पहले ही प्रभु नारायण ने अपने भक्त नारायणदास को अपने हाथों में थाम लिया। नारायण दास की आंखें बंद थी। जब उसने अपनी दोनों आंखों को खोला तो वह देखकर आश्चर्यचकित रह गया। भला मेरे प्रभु इतने सलोने, उनकी ऐसी छटा, जिसका वर्णन करना भी असंभव है । ईश्वर के इस प्रकाश पुंज की उपस्थिति में वे यमदूत चले गए क्योंकि हर अंधकार को ज्ञान और आस्था द्वारा दूर किया जाता है। प्रभु के रूप को नारायणदास प्रभु की गोद में लेटे हुए निहारता रहा। कुछ देर बाद प्रभु ने कहा वत्स..... तुम कितने भोले हो और पुजारी कितना दुष्ट । तुम उसकी बातों को भांप ना सके । अगर मैं ना आता तो क्या हाल होता तुम्हारा ? तुम्हें इसका जरा भी आभास न था । नारायण दास प्रभु के चरणों में गिर पड़ा और बोला...... प्रभु , पुजारी तो आपका अनन्य भक्त है। उसने ही तो मुझे आपसे मिलने का आपका आदेश सुनाया था और प्रभु की बात तो हमेशा सच होती है । आप मेरी परीक्षा से प्रसन्न हो गए मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की और क्या बात हो सकती है । प्रभु बोले ......."वत्स तुम केवल अपने दिल की सुनते हो दिमाग की नहीं।"

       किसान बोला..... "प्रभु दिल में ही तो आप बसते हैं मन तो चंचल होता है।"

प्रभु ने कहा ..... "वत्स तुम आत्मा से पवित्र और मन से निष्कपट हो। तुम्हारी पत्नी पतिव्रता है । तो भला मैं ऐसे भक्तों को मुसीबत में अकेला कैसे छोड़ सकता हूं ।क्योंकि छल कपट मोहे तनिक न भावा अर्थात मुझे छल कपट जरा भी पसंद नहीं है। मैं तो सभी प्राणियों में हूं। तुम अपने को पहले मुझे समर्पित तो करो। आज प्रभु ने किसान की बहुत दिनों की इच्छा को दर्शन देकर पूरा कर दिया।"

     इधर किसान और प्रभु की वार्तालाप हो रही थी उधर पुजारी के मन में कुछ और चल रहा था। किसान की पत्नी अपने आंसू बहाते ईश्वर के चरणों में पड़ी प्रार्थना कर रही थी ।तभी अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाया ।किसान की पत्नी का चेहरा खिले गुलाब जैसा निखर उठा। वह इसी पल के इंतजार में ही तो थी कि कब उसका पति वापस आए। वह दौड़ती हुई दरवाजे की ओर बढ़ी और दरवाजा खोलते हुए बोली...... आ गए तुम , मैं तो कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी ।

     आ .....ओ ...सामने पुजारी को देखकर अचानक उसका चेहरा मुरझा गया । उसने ऐसी कल्पना तो कभी नहीं की थी । पुजारी बोला.... अरे... पगली तूने मुझे बुलाया और हम..... देख... आ... गए । अब मैं और तू ....समझी ...ना कहते हुए उसने किसान की पत्नी का हाथ पकड़ लिया। वह उसे बिस्तर की ओर ले जाने लगा । किसान की पत्नी जोर जोर से चिल्लाने लगी.... स्वामी..... स्वामी ...तुम आते क्यों नहीं । मुझे कौन बचाएगा इस जल्लाद से ।हे प्रभु ...तुम ही मेरी पुकार सुनो । प्रभु .....प्रभु ....इतनी करुण पुकार सुनकर प्रभु उठ खड़े हुए और किसान से कहा..... वत्स अब तुम जल्द घर जाओ तुम्हारी पत्नी तुम्हारी राह देख रही है। अगर अभी तुमने जाने में देरी की तो तुम कहीं के ना रहोगे। तुम चिंता ना करना अब तुम्हारे दिन फिरने वाले हैं। मैं अपने भक्तों को संकट में नहीं देख सकता ।जाओ ...जल्दी... करो। कहते ही प्रभु .....अंतर्ध्यान हो गए ।

  नारायण दास ने प्रभु के चरणों की धूल को मस्तक से लगाया और तेज कदमों से घर की ओर चल पड़ा। घर पर पहुंचकर उसने देखा दरवाजा खुला हुआ है ।पुजारी उसकी पत्नी के बाल पकड़कर उसे घसीट रहा था उसकी पत्नी प्रभु बचाओ ......बचाओ... चिल्ला रही थी। वह जल्द उसकी तरफ दौड़ा। जब पुजारी ने किसान को वहां देखा तो वह तेज कदमों से खुले दरवाजे से भाग निकला । किसान की पत्नी दौड़कर नारायण दास के सीने से लग कर रोने लगी। वह भी उसको गले से लगाए बुत बना खड़ा रहा । दोनों थोड़ी देर तक स्तब्ध रहे फिर एक-दूसरे की ओर निहारने लगे।

  दोनों की आंखों में अजीब सी चमक साफ दिख रही थी। उनकी जुबान खामोश थी, आंखें ही सब कुछ बयान किए जा रही थी। किसान की पत्नी जहां अपने पति के सलामत आने से खुश थी तो किसान प्रभु दर्शन से। वे पुजारी को भूल जाना चाहते थे।

      कुछ ही दिनों में नारायण दास के घर पर प्रभु नारायण का आशीर्वाद फलित हुआ (उनको बेटा की प्राप्ति हुई) और फिर धीरे-धीरे उनका घर धन-धान्य से भरता चला गया।

सच ही कहा है .....जापर कृपा राम की होई,

                           ताको कहा करे प्रभु कोई ।।



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