STORYMIRROR

Dr Sanjay Saxena

Inspirational

4  

Dr Sanjay Saxena

Inspirational

एक मां ऐसी भी

एक मां ऐसी भी

8 mins
18

विशु मैंने तुम्हारे लिए सूट और टाई निकाल दिया है.. पहन कर जल्दी तैयार हो जाओ... लड़की देखने चलना है..!

पर मां.. मौसम अभी इतना भी ठंडा नहीं कि सूट पहना जाए..! मैं पैंट शर्ट में ही ठीक हूं।

बातों में ज्यादा टाइम वेस्ट ना करो ...जो कहती हूं वह करो ...मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है... वैसे भी ऑफिस से लेट हो चुकी हूं...! और सर्दी गर्मी की तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं ...! कमरा ऐ सी है, गाड़ी ऐ सी है, और... होटल का रूम भी... ऐ सी ...!सूट में लुक अच्छा आएगा!

वैसे भी तुम इन कपड़ों में पुअर ब्लेजर से ही दिखते हो। अच्छे परिवार का तो कोई.. इस लुक में तुम्हारा प्रपोजल भी स्वीकार नहीं करेगा.. मैरिज की तो बात ही दूर की है! पर मम्मी ...मैं पुअर ब्लेजर ही दिखता हूं.. वह भी इंडियन पर आप तो फॉरेन मैम जैसी दिखती है ना .. विशू ने पलटकर मां को जवाब दिया ।

दरअसल उसकी मां बात-बात पर उसे पुअर ब्लेजर या पुअर इंडियन कहकर... उसकी पर्सनालिटी का मजाक उड़ाती रहती थी ..!जिससे वह सख्त चिढता था।

समय कम होने और विशू द्वारा जवाब देने से मां भड़क उठी ...तो तू मेरी बात नहीं सुनेगा... मैं मां हूं तेरी... मैंने तुझे जन्म दिया है ....! मेरा तुझ पर इतना भी हक नहीं कि तुझसे कुछ तेरे भले के लिए कह सकूं।

ओह ...तो मुझे जन्म देकर बहुत बड़ा एहसान किया मुझ पर ..? क्यों जन्म दिया..? क्या मैं कहने आया था कि मुझे जन्म दो...? वह तो आपने अपनी वासना की पूर्ति की होगी।

ऐसी उल फिजूल बातें सुनते ही विशु के पापा ने उसके गाल पर एक जोर का तमाचा रसीद कर दिया। तमाचे की गूंज पूरे मकान में सुनाई दी ..तो पड़ोस के कमरे से उसकी दादी निकल आई !

अरे क्या करते हो परताप .. । जरा अकल से काम लो। बच्चा अब छोटा नहीं है ...बड़ा हो गया है.. समझे इस बात को कुछ ...कहीं कुछ ऊंच-नीच हो गई तो.. कहीं के ना रहेंगे हम लोग... मेरा तो इकलौता नाती है...

इकलौता है तो क्या हमारे सिर पर नाचेगा ..! और तुमने ही इसको इतना बढ़ावा दिया है जो हमसे जुबान लड़ा रहा है ।

हम लोग तो समझते थे प्रताप ...कि तुम्हारी मां हमारे बच्चे को अच्छी शिक्षा दे रही होगी ..! पर हमें क्या मालूम था कि घर में ही हमारे बेटे को हमारे खिलाफ तैयार किया जा रहा है ।

बहु... थोड़ा सोच समझकर बोलो ...ऐसा घिनौना आरोप मेरे माथे ना मढ़ो।

यह कोई आरोप नहीं मां... मैं समझ गया... तुम्हें हमारी खुशियां हजम नहीं हुई तो तुमने हमारे बेटे को ही हमारे खिलाफ... अरे मेघना इस बुढ़िया से सिर लड़ाने में ही समय निकला जा रहा है.. जरा देख तो लड़का अभी तक तैयार हुआ या नहीं..! 

मेघना ने विशु को देखा ...तो वह अपने कपड़े उतार चुका था ..! यह क्या... तू अभी तक तैयार नहीं हुआ..!

नहीं मुझे कहीं नहीं जाना ।

तुझे नहीं जाना... तो क्या हम लोग अकेले ही वहां जाएं! आखिर वह पूछेंगे तो हम क्या जवाब देंगे ..! ऑफिस, सोसाइटी में क्या इज्जत रह जाएगी हमारी।

वाह मां ...सोसाइटी और ऑफिस में इज्जत की चिंता है.. पर बेटा और घर में कितनी इज्जत है इसकी कोई चिंता नहीं..!

तभी प्रताप वहां आया और जोर से चिल्लाया... ईडियट.. मां से जुबान लड़ाता है। जैसे ही उसने विशू के ऊपर हाथ उठाया विशू ने उसका हाथ पकड़ लिया। इतनी देर से मैं ज्यादा कुछ नहीं कह रहा तो इसका मतलब यह नहीं कि आप मेरे साथ पशुओं जैसा सुलूक करें... और आप क्या कह रहे हैं कि मैं ...मां से जुबान लड़ा रहा हूं..! तो थोड़ी देर पहले आप दादी से क्या कर रहे थे... कितने तमीज का परिचय दे रहे थे... वह आपको याद नहीं..! पकड़े हुए हाथ और किए गए प्रश्न से प्रताप की सिट्टी पिट्टी गुम हो चुकी थी..! वह निरुत्तर हो गया। दो मिनट पहले किए गए मां के साथ अनुचित व्यवहार पर उसके पास कोई जवाब नहीं था ।

विशू ने अपनी मां से कहा.. तुम क्या कह रही थी दादी से.... कि इन्होंने मेरी परवरिश ढंग से नहीं की..? तुम्हारे खिलाफ तैयार कर दिया ..? तो सुनो मां... दादी आप से नहीं कहने गई थी कि अपनी औलाद को पालने के लिए आप अपने बच्चे को उनकी गोद में डाल आए..! वह तो आप अपनी आजादी, मौज-मस्ती और मजबूरी के कारण दादी को सौंप जाती थी । आप और पापा सिर्फ एक कामवाली से ज्यादा तवज्जोह नहीं देते दादी को। वह जितना खाती हैं.. उससे ज्यादा घर की सेवा करती हैं..!

तभी दादी बोली ...चुप हो जा बेटा ..चुप हो जा ..जाने दे सारी बातों को ....

जाने दो ..पर क्यों दादी ... इन्होंने मां बाप का फर्ज कभी निभाया नहीं ..अधिकार जताने चले आए ..! और एक बात ...तुमने हमेशा मुझे पुअर ब्लेजर कहा.. तो आप क्या अपने आप को विदेशी समझती हो ..? और समझती हो तो समझो ...पर मुझे आप को देख कर कभी मां जैसी फीलिंग नहीं आई ..! वह तो दादी के दिए हिंदुस्तानी संस्कारों की वजह से मैं तुम्हें मां कह देता हूं। वरना तुम तो मां कहलाने के भी योग्य नहीं हो।

एक जवान बेटा और बूढ़ी सास के सामने अर्धनग्न वेशभूषा पहनते आपको शर्म नहीं आती। ऐसी औरतों को देखकर मुझ जैसे बेटे को भला मां की फीलिंग कैसे आएगी ? जब ऐसे वस्त्रों में गर्लफ्रेंड की भी कल्पना मैं नहीं करता । मां तो निरूपा रॉय जैसी होती है जो साड़ी पहने ,भोली सूरत वाली, बच्चे की तकलीफ में आंसू बहाने वाली, दुखी आवाज वाली, बच्चे को अपने छाती से चिपकाने वाली, होती है।

तो तुझे मुझमें मां नहीं मेरा अर्ध नग्न शरीर दिखता है ।जब आप दिखा रही हैं तो शरीर सबको दिखेगा ही ना... कोई अपनी आंखें तो फोड़ नहीं लेगा ..! यह तो उसके संस्कार हैं कि वह ऐसी महिलाओं को टोकता नहीं है।

कहीं जाकर तू और तेरी दादी डूब मरो ...जो ऐसी बातें कर और सुन रहे हैं ..! बहुत हो गया अब मैं तुम दोनों को इस घर में एक भी पल रहने ना दूंगी। मेरा ही खाते हो और मुझे ही भला बुरा कहते हो। निकलो ...अभी...

हां ...हां ..मैं भी तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता..! जाता हूं ...इस घर से ही नहीं.... इस दुनिया से भी.... इतना कहते हुए विशु दूसरे कमरे की ओर दौड़ा और...

अरे विशु बेटा... सुन तो ...तू गुस्सा छोड़ दे बेटा... पीछे पीछे बूढ़ी दादी भी चल दी

थोड़ी ही देर में एक जोरदार धमाका हुआ... मेघना की जोर की चीख निकली ...नहीं विशु... नहीं... वह दौड़ी देखा खून से लथपथ बेचारा विशु जमीन पर पड़ा हुआ है! हाथ में पिस्तौल है... वह रोने लगी... तभी दूसरा धमाका हुआ ...वह घबरा गई और चिल्लाई ...नहीं मां जी... नहीं तभी प्रताप घबराकर उठ बैठा ..! लाइट जला कर देखा तो मेघना पसीने पसीने थी। उसकी सांसे तेजी से चल रही थी ।

उसने मेघना को उठाया... क्या हुआ मेघना... क्या हुआ.. मेघना तेज सांसों के साथ उठी ...वह घबराई हुई थी! घबराकर प्रताप के गले लग गई और बोली.. मां और विशू को बचा लो ।

क्या हुआ ...?

वह रिवाल्वर से ...

ओ हो कुछ नहीं ...किसी की बारात निकल रही है! उसकी आतिशबाजी की आवाज थी ..!

पर विशु ...

आओ मेरे साथ ...वे दोनों उठे ...देखा तो विशु अपनी दादी की गोद में सिर रखकर सो रहा था! दादी उसके सिर को प्यार से सहला रही थी..! मेघना अपने कमरे में वापस आई और साड़ी पहन कर वापस अपने सास के कमरे में गई ।

वर्षों बाद आज मेघना ने साड़ी पहनी थी। वह घबराई हुई सी जाकर मां के पैरों में झुक गई और अपनी गलती के लिए क्षमा याचना करने लगी। उसने मां से पूछा.. विशू ने आज खाना खाया क्या..?

बूढ़ी मां बोली ...खा तो नहीं रहा था ..पर जैसे तैसे मैंने अपनी कसम खिलाकर उसे खाना खिला दिया!

मां की बातों से विशू की नींद टूट गई। उठकर देखा तो मां रो रही है । पर इतनी रात मां... वह भी साड़ी में.... क्या हुआ ..? वह कुछ समझ ना सका।

विशु के उठते ही उसने विशु के माथे को चूमा। मां जी के पैर छुए और फिर विशु और सासू मां को अपने गले से लगा लिया ।

विशु इस चमत्कार से अचंभित तो था पर वह मां के व्यवहार, उसके हाथों के स्पर्श तथा हृदय की धड़कन से यह समझ चुका था कि मां बदल चुकी है। वह आज उसे निरूपा रॉय जैसी ही लग रही थी। आज उसकी फीलिंग भी मेघना के लिए अपनी मां जैसी हो गई। उसने मां के चेहरे को देखा और फिर उसके आंचल में खुद को छुपा लिया। बहुत दिनों के बाद ही सही निरूपा रॉय जैसी मां आज उसे मिल चुकी थी ।

मेघना भी समझ चुकी थी कि बच्चों के लिए उनकी हिंदुस्तानी मां ही अच्छी है ...जिसका दिल हमेशा अपने बच्चों के लिए धड़कता है ..! अब मेघना अपने ऑफिस जाने से पहले अपनी सासू मां और विशू को खाना देकर जाती। सासू मां के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेती और विशू के माथे को चूमना ना भूलती ।

अब विशू भी अपनी मां के आने की राह देखता। मां भी ऑफिस वाले कपड़े चेंज करके साड़ी में विशू के पास आती । घर में विशू के साथ सभी लोग खुशी से रहने लगे और फिर विशू ने भी अपनी मां के कहने से ही विवाह किया ...साड़ी पहनने वाली हिंदुस्तानी लड़की से ..! आखिर मां ने आज यह स्वीकार कर ही लिया कि सच में, मैं बदल गई हूं ...वह समझ चुकी थी कि हमारे देश की संस्कृति ही हमारे लिए अच्छी और सच्ची है..!

सच है जैसा देश वैसा भेष....

                            .  


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational