प्रभु की कृपा भाग 1
प्रभु की कृपा भाग 1
किसी गांव में गरीब किसान रहता था । वह बहुत भोला और ईश्वर भक्त था। उसके पास थोड़ी सी जमीन, दो बैल और घर में उसकी पत्नी थी । किसान के कोई संतान न थी। इसी बात से वह सदैव चिंतित रहता था। गांव की महिलाएं भी उसकी पत्नी को तरह-तरह के ताने देकर उसका घर से बाहर निकलना मुश्किल कर देती । किसान जब भी अपने खेतों पर हल , बैल लेकर जाता तो गांव के ही मंदिर में प्रभु के दर्शन करना न भूलता।
एक बार उस भोले किसान के मन में एक विचार आया। उसने अपने विचार से अपनी पत्नी को भी अवगत कराया और दोनों की सहमति होने पर वह अगले दिन मंदिर के पुजारी जी के पास जा पहुंचा। उसने पुजारी जी से कहा पुजारी जी आप तो भगवान के सबसे निकट हैं हमेशा से आप उनकी पूजा करते आए है। आपको तो ईश्वर के दर्शन होते ही रहते होंगे ।आप मेरी प्रार्थना उन तक पहुंचा दीजिए ना। उस मंदिर का पुजारी बहुत लालची था ।उसने सोचा पता नहीं इसकी क्या प्रार्थना है। धन देने के लिए तो इसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं है लेकिन फिर भी सुन लो क्या पता मेरा ही कुछ फायदा हो जाए इस मूर्ख के द्वारा ।
मन में ऐसा विचार करते हुए पुजारी जी ने कहा..…. हां .....हां नारायणदास बोलो.... तुम्हारी क्या समस्या है? किसान नारायणदास बोला .....पुजारी जी मेरी पत्नी बांझ है। तो अगर उसके कोई संतान हो जाए ...इस बारे में आप प्रभु से बात करके देखो । पुजारी जी की नजर उसकी जमीन पर पहले से ही थी। वह जानता था कि उसके मरने के बाद वह उस जमीन को हड़प लेगा । उसने कहा ....नारायणदास ऐसा करो कल तुम और तुम्हारी पत्नी प्रातः काल मंदिर में आ जाना । मैं रात को प्रभु से तुम्हारी समस्या का समाधान पूछने का प्रयास करूंगा । भोला किसान बहुत खुशी-खुशी घर लौट आया और सुबह होने का इंतजार करने लगा ।
आज की रात उन दोनों को बहुत लंबी लग रही थी। किसान की पत्नी बोली ...ए .....जी.… क्या ...सचमुच प्रभु जी से पुजारी जी हमारी बात पूछेंगे । तो किसान कहता.... अरे पगली .....भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं हमारे पुजारी जी। उनकी तो प्रभु जी से हमेशा ही बात होती रहती होगी। उसकी पत्नी भी उसका विश्वास कर लेती । समय बीता सुबह हो गई ।जल्दी-जल्दी सारे कामों से निवृत्त होकर वे दोनों मंदिर जा पहुंचे। पुजारी जी वहां की पूजा में व्यस्त थे । थोड़ी देर बाद जब पुजारी जी पूजा संपन्न कर चुके तो उन्होंने देखा कि किसान और उसकी पत्नी खड़े हैं । वह बोला अरे.... नारायण दास... बैठो और अपनी पत्नी का घूंघट ऊंचा कराओ । .......प्रभु से क्या पर्दा । .…..प्रभु तो सब देखते और जानते हैं। पुजारी जी की आज्ञा पाकर किसान ने अपनी पत्नी का घूंघट हटवा दिया । पुजारी जी उनके सामने बैठ गए । जैसे ही पुजारी जी की नजर किसान की पत्नी से मिली पुजारी जी के मन में लड्डू फूटने लगे। उसका ईमान डोलने लगा । वह सोचने लगा ......लगता है प्रभु मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है । अब मैं इसे ऐसी तरकीब बताऊंगा कि इसकी जोरू और जमीन मेरी होगी । कहते हैं ईश्वर तो सर्वव्यापी है । सो वह पुजारी के पवित्र स्थान पर बैठकर नापाक इरादों को सुन रहा था। प्रभु ने सोचा पहले तू नीचे गिर मैं भी देखता हूं कि तू कितना नीचे गिरेगा। कर्मों का हिसाब तो मैं बाद में करूंगा । पुजारी ने किसान से कहा... नारायणदास रात को जब मैंने प्रभु को प्रसन्न किया तो वह मेरे समक्ष आकर बोले .....वत्स ...किसान से कहना पहले वह अपनी परीक्षा देकर मुझे प्रसन्न करे , तब मैं उसकी प्रार्थना सुनूंगा।
भोला किसान उसके नापाक इरादों को भांप न सका । वह उत्सुकतावश बोला ....बोलिए.... पुजारी जी जल्दी कहिए.... मुझे प्रभु के लिए कौन सी परीक्षा देनी होगी ? पुजारी बोला...... नारायणदास बहुत ही कठिन परीक्षा है । उसमें तुम्हारी जान जाने का भी खतरा है। मुझे लगता है कि..... तुम ....रहने दो । तुमसे यह सब ना हो सकेगा। वह यह सब किसान को उकसाने के लिए कह रहा था । जब किसान ने उससे जिद की तो वह बोला........
क्रमशः