आपका सबसे बड़ा डर
आपका सबसे बड़ा डर
मेरा डर छोटा है, बड़ा है ये तो मैं नहीं जानती, पर एक डर तो मुझे भी है। या फिर यूँ कहूं डर मेरा अनचाहा सा साथी है जो हर पल मेरे साथ रहता है। हाँ! जब मैं निकलती हूं अकेली घर से सुनसान सड़क पे अँधेरी रात में तो जो मेरे साथ होता है तो फ़क्त डर।
मेरे साथ ही क्यूँ मुझे तो लगता यह हर लड़की के साथ साये की तरह रहता है। चाहे उसके जीवन में उसके पिता, शौहर, भाई या हमारे सभ्य समाज का कोई भी शख्स उसका साथ दे न दे लेकिन डर उसका साथ कभी नहीं छोड़ता।
मेरा डर तो मेरे पैदा होने से पहले ही आ गया था। जब मेरे ओढ़ने - पहनने का, बोलने-सुनने का, खाने-पीने का, घूमने-फिरने का, नाचने, गाने बजाने का या फिर ख़ुशी और रंजिदगी जाहिर करने का दायरा तय कर दिया गया था। इस डर ने मुझे आजतक जकड़ रखा है और हमारा रिश्ता इतना अटूट है कि मैं चाहकर भी इससे छुटकारा नहीं पा सकती हूॅं।
सबसे ज्यादा डर मुझे खुलकर अपने ख्याल जाहिर करने से लगता है। शायद इसलिए लिख लेती हूं पर डर यहाँ भी मेरा साथ नहीं छोड़ता। हर पल डर लगा रहता है कि कहीं कोई पढ़ न ले वो सच जो हमारे समाज में बोलना हराम है।
लेकिन मेरा डर शायद इतना बड़ा नहीं है, जिसने मुझे डरा के रखा है। उसका डर मुझ से कहीं ज्यादा बड़ा है। इसलिए तो उसे डर रहता है कि किसी दिन मेरा डर ख़तम न हो जाये। वो तमाम कोशिशे करता है मुझे डराने की, वो कभी मुझे दारू पीकर मारता-कूटता है, मुझे जहर देता, मेरा बलात्कार करता है, मुझे जला देता है, मुझ पे एसिड फेंकता है, बीच सड़क में मुझे तड़पने के लिए छोड़ देता।
पर क्या उसका डर ख़तम हो जाता है? क्या मेरा डर ख़तम हो जाता है? क्या उसने मुझे मार दिया है? क्या मैं अभी तक जिन्दा हूं?