पागल बहु
पागल बहु
यह वही पागल बहू है जिसे डॉक्टर ने दिमागी मरीज़ न करार देते हुए , अस्पताल में भर्ती करते से मना कर दिया था । पर ससुराल वाले काफी भले लोग थे , उन्होंने काफी मिन्नतें करके उसको भर्ती करवा ही दिया , वो बेचारे भी क्या करते जब बहु पागलो जैसी बातें कर रही थी । कह रही थी कि ससुराल वाले बड़े जालिम है साहेब और उसके देवता पति का किसी दूसरी औरत से सम्बन्ध है । हमेशा आधुनिक विचारधारा की बातें करने वाले संपन्न लोग कैसे ये सब बर्दाश्त कर पाते। बहू की बातों से काफी आहत थे बेचारे, ऊपर से गर्मी का मौसम था , सास फूट फूट कर रो रही थी जूस पीते पीते । वो भी क्या करती हैरान -परेशान थी बेचारी की सीधी साधी हमेशा घूँघट में रहने वाली, चुप चाप सारे जुल्म सहने वाली बहु आज न जाने अचानक से कैसे बोल पड़ी ? समझ नहीं आ रहा था कि ससुराल वाले सच बोल रहे थे या बहू, पर हमेशा सुख-दुःख में साथ देने वाला समाज सबके साथ था, सामने से सास के और पीछे से बहू के । अपना फ़र्ज़ बखूबी निभा रहा था सुख के साथ भी था और दुःख के भी । समाज सास को तसल्ली दे रहा था कि बुरा वक्त जल्दी ही टल जायेगा, और आपसी गुफ्तगू में कह रहा था, इसलिए बेटा इतने- इतने दिन घर नहीं आता ।
लड़की के बेबस बाप ने आकर सांत्वना दी कि सुसराल वालो को परेशान होने की कोई जरुरत नहीं है क्यूंकि उनकी कोई गलती नहीं है और पागल बहू सिसक सिसक कर रो रही थी: पापा ! अगर हद पर नहीं होती तो मैं कभी नहीं बोलती ।
वैसे पागल बहुओं पर कम ही भरोसा किया जाये तो अच्छा है , यह गुस्से में पहले तो पतियों का सारा चिटठा खोल देती हैं और फिर चार-छह महीने में जब गुस्सा कम होता है तो पता चलता है, पागल बहू की घर वापसी हो गयी और अब वो नालायक पागल पति फिर से प्रिंस चार्मिंग बन गया ।