आख़िर का आख़िरी भाग
आख़िर का आख़िरी भाग
गुरु जी - तुम चिंता मत करो। वह नहीं आई तो भी पूजा का असर होगा ही क्योंकि वह इस घर से बाहर नहीं जा सकती हैं।
गुरु जी सभी घरवालों को सारी बातें बता देते हैं। सब डर जाते हैं कि इतने दिनों से वह लोग एक आत्मा के साथ रह रहे थे। गुरु जी समझाते हैं डरिए नहीं। आगे कहते हैं कि प्यारी और आयुष को हमारे साथ बैठ कर पूजा करनी होगी क्योंकि उस दिन सिर्फ इन्हीं दोनों के गुलाल का रंग नहीं बदला था। हमें 2 लोग ऐसे चाहिए थे जो बिल्कुल निर्दोष हो। श्याम और सरिता ने कभी ना कभी कुछ झूठ या छल कपट किया है उनके गुलाल का रंग हरा हो गया था। ध्यान रखना कोई भी अपनी जगह से ना हिले। हो सकता है कि वह आत्मा हवन बन्द करवाने के लिए अम्मा जी या आयुष पर हमला करें।
गुरु जी और पंडित जी मिल कर हवन शुरू करते है।
हवन शुरू होते ही मोहिनी को पता लग जाता हैं कि यह हवन अम्मा जी के बेटे बहू की शांति के लिए नहीं बल्कि उसके लिए किया जा रहा है।
अब मोहिनी बहुत गुस्से में आ जाती हैं। अम्मा जी के पके हुए सफेद रंग के बाल खुल जाते हैं और चेहरा एक दम सुर्ख लाल हो जाता हैं। वो गरजती हुई कमरे से बाहर आती हैं।
मोहिनी - तुम मुझे भगाओगे। तुम्हारी इतनी हिम्मत। अभी बताती हूं मैं कौन हूं।
मोहिनी के इतना बोलते ही कमरे की चीजे हिलने लगी और सब चीजों से मोहिनी उन सब पर वार करने लगी। लेकिन कोई भी चीज उन सबको छू भी नहीं पाई।
अब मोहिनी समझ गई की सिर्फ इतने से कुछ नही होगा। अब वह अम्मा को ही निशाना बनाने लगी। अम्मा का चेहरा आइने में जोर से टकराया। अम्मा जी के चेहरे पर खून ही खून हो गया और कुछ कांच के टुकड़े भी उनके चेहरे पर भी लगे हुए थे।
आयुष यह देख भावुक हो गया। गुरु जी ने उसे ना उठने का इशारा किया।
मोहिनी अब अम्मा जी को तड़पाने लगी। उनका गला घोंटने लगी।
अम्मा जी - आयुष बचाओ मुझे। मोहिनी मुझे मार देगी।
इतना कहते हुए अम्मा जी की सांस रुकने लगी। दम घुटने लगा।
आयुष अब रुक ना सका और अम्मा जी की ओर भागा। मोहिनी अब जोर से अट्टहास कर हसने लगी।
मोहिनी - यही तो मैं चाहती थी। अब तुम्हें मार कर मेरा बदला पूरा होगा।
यह बोल कर मोहिनी जो अम्मा जी के शरीर में थी उसने आयुष पर हमला कर दिया। आयुष को उछाल कर पटक दिया। फिर उसके उपर गमला फेंका। आयुष के मुंह से खून निकलने लगा। अब मोहिनी रूपी अम्मा जी आयुष का गला दबाने लगी। आयुष अब तड़पने लगा।
पीछे से पंडित जी ने कुछ मंत्र बोल कर अम्मा जी पर रुद्राक्ष की माला डाल दी जिसे अभी हवन में अभिमंत्रित किया गया था। माला डलते ही एक जोर की चीत्कार के साथ अम्मा जी के शरीर से मोहिनी अलग हो गई। अम्मा जी बेसुध हो कर गिर गई। मोहिनी का गुस्सा और भी बढ़ गया। मोहिनी ने गुरु जी को उछाल दिया वो दीवार से जा कर टकराए। आयुष को भी छत तक ले जा कर नीचे फेंक दिया। आयुष और गुरु जी दोनों के सिर से खून बहने लगा। मोहिनी गुस्से में आयुष की ओर बढ़ी।
मोहिनी - अब देखती हूं कौन तुझे बचाता हैं। मुझसे ज्यादा ताकतवर यहां कोई नहीं हैं।
इतने में प्यारी अपनी जगह से उठ गई। सरिता ने उसे बोला कि बेटा उठो नहीं वरना हमारा भी ये ही हाल होगा। पर जैसे प्यारी ने कुछ सुना ही नहीं। उसका शरीर कपकपाने लगा जैसे कोई झटका लगा हो। सरिता को लगा कि मोहिनी ने अब प्यारी पर कब्जा कर लिया है। वह रोने लगी। प्यारी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। ऐसा लग रहा था कि उसने खून से अपना मुंह धोया हो। प्यारी ने हवन कुंड के पास रखा त्रिशुल उठाया और मोहिनी की तरफ हुंकार भरती हुई चल पड़ी।
15 साल की मासूम सी लड़की मोहिनी जैसी आत्मा को ललकार रही थी। सरिता (प्यारी की मां) को समझ नहीं आ रहा था कि रोए या ख़ुश होए। मोहिनी के चेहरे पर अब खूंखार हंसी नहीं डर दिखाई दे रहा था।
अम्मा जी को भी होश आ जाता हैं। प्यारी अम्मा जी की तरफ बढ़ती हैं और उनके हाथ से एक अंगूठी निकाल कर हैं कुंड में फेंक देती हैं। मोहिनी तड़प उठती हैं। उसी समय प्यारी त्रिशुल से मोहिनी पर हमला कर देती हैं और मोहिनी एक काले धुएं में बदल जाती हैं। वह काला धुआं उस हवन कुंड की आग में समा जाता हैं। प्यारी भी बेसुध होकर गिर जाती हैं। गुरुजी प्यारी पर मंत्र बोल कर पानी डालते हैं तब प्यारी उठती हैं।
प्यारी - क्या हुआ था मुझे?
सरिता - तुमने मोहिनी को मारा।
प्यारी - मेंने ? मुझे कुछ याद नहीं।
गुरुजी - इसने नहीं महाकाली ने इसके शरीर में प्रवेश कर मोहिनी को मारा हैं।
सरिता - महाकाली मेरी बेटी में।
गुरु जी - हां । क्योंकि यह निष्पाप है इसलिए महाकाली ने इसे चुना। जब जब संसार में पाप बढ़ता हैं तब तब भगवान किसी भी रूप में अवतार लेते हैं।
अब अम्मा जी आप बताएं कि आपने मोहिनी की अंगूठी क्यों पहन रखी थी।
अम्मा जी - जी गुरु जी। जब मोहिनी की मौत होने से पहले मेरी गोद भराई में मोहिनी ने मुझे वह अंगूठी तोहफे में दी थी। मोहिनी और मैं अच्छे दोस्त थे। उस दिन उसकी मौत का मुझे बहुत दुख हुआ और सब घरवालों पर गुस्सा आ रहा था। मोहिनी की कोई गलती ना होने पर भी उसको सज़ा मिली। दूसरे दिन मुझे मोहिनी का अहसास हुआ। फिर मुझे वह दिखाई दी। मेंने उसे बताया मुझे उसके लिए दुःख हैं। उसने बोला कि वह सबसे बदला लेना चाहती हैं। उसने मुझसे मदद मांगी तो मैने मदद के लिए हां कर दी।
अगले दिन तुम्हारे दादा जी के ड्राइवर के अंदर घुस कर उसने दादा जी को मौत के हवाले कर दिया। उस ड्राइवर को मैने ही मोहिनी के कहने पर अंगूठी दी थी।
फिर बड़े दादा जी को मारने के लिए मेंने बड़ी दादी जी को अंगूठी पहनाई। दादा जी को मार कर मोहिनी ने उन्हें भी मार दिया। फिर मैं अपने मायके आ गई। वहां बच्चे को जन्म दिया और आराम से रह रही थी। भाई की मौत होने पर पता चला उसे वहां अंगूठी मिली और भाई ने पहन ली फिर उसकी भी मौत हो गई। मै हमेशा के लिए यहां आ गई तब मोहिनी मुझसे बातें करती। मेरे पास रहती। फिर जब तुम्हारे पापा मम्मी यहां आए तब तुम्हारी मम्मी ने गलती से वो अंगूठी पहन ली। तब ही मंदिर से लौटते हुए वो गिर गई और उसका अजन्मा बच्चा मर गया। उस वक़्त मैं बहुत डर गई क्योंकि मोहिनी की शक्तियां बहुत बढ़ रही थी। कोई ओर वह अंगूठी ना छुए इसलिए वो मैने पहन ली। अब मोहिनी मेरे शरीर में रहने लगी। लेकिन जब भी मैं मेरे मायके जाती या तुम लोगों के पास आती तब मोहिनी मुझ से अलग हो जाती शायद उन अभिमंत्रित धागे और ताबीज़ की वजह से। मोहिनी मेरे शरीर में रह कर मुझसे क्या करवाती मुझे कुछ याद नहीं।
गुरु जी - अब डरने की कोई बात नहीं हैं। आख़िर मोहिनी अब जा चुकी हैं।
आयुष सारा कारोबार संभाल लेता हैं।आयुष और अम्मा जी अब ख़ुशी ख़ुशी उसी घर में आराम से रहते हैं।

