मां कोई भी हो सब एक समान हैं।
मां कोई भी हो सब एक समान हैं।
सुनील सिंह जी बेटे के कहने पर जोधपुर से मुंबई रहने आ गए हो लेकिन उनकी सोच अब भी बड़े शहर के खुले पन को अपना नहीं पा रही थी।सुनील जी अपनी पत्नी रत्ना जी और बेटे सुयश के साथ सिनेमा हॉल से फिल्म देखकर निकल रहे थे। तभी बारिश होने लगी वह तीनों बारिश से बचने के लिए एक दुकान के छज्जे के नीचे खड़े हो गए।
सुयश को कोई जरूरी फोन आ गया तो वह उसी में लग गया। सुनील जी हमेशा की तरह बड़े शहर को कोसने लगे। लेकिन रत्ना जी बड़े शहर की पहली बारिश को देख मोहित हो रही थी।रत्ना जी बारिश को देखने में इतना खो गई कि उनकी तंद्रा तब टूटी जब उन्हे सुनील जी के व्यंग सुनाई दिए।सामने एक स्कूटी पर एक दंपती अपने बच्चे के साथ बैठ रहे थे। बारिश थोड़ी कम हुई थी इसलिए उन दंपती ने वहां से जाने का निश्चय किया होगा।
सुनील जी उस औरत को देख बड़बड़ा रहे थे कि "सच ही कहते हैं यह जींस पहनने वाली मां बच्चे को बारिश और ठंडी हवा से बचाने के लिए आंचल कहां से लाएंगी। हमारी संस्कृति के हिसाब से कपड़े पहने होते तब तो अचानक हुई बारिश में बच्चे को आंचल से ढक लेती हैं।"
रत्ना जी को सुनील जी के मुंह से यह सब सुनने की आदत थी। उन्होंने कोई जवाब नहीं दे कर उस दंपती की ओर ही देखना जारी रखा।थोड़ी देर में बारिश बंद हो गई लेकिन ठंडी हवा चालू थी। उस आदमी ने अपनी पत्नी को स्कूटी पर बैठने का इशारा किया वह बच्चे को बीच में लिए बैठ गई और अपना जैकेट खोल बच्चे को पूरी तरह समेट कर फिर चैन बंद कर दी। बच्चा पूरी तरह मां की जैकेट में छिप गया। ऐसा लग रहा था मानो वह मां का ही हिस्सा हो।
रत्ना जी यह देख बोल पड़ी देख लिया मां चाहे पश्चिमी सभ्यता वाली हो या भारतीय संस्कृति वाली, अमीर हो या गरीब, मां कोई भी हो सब एक समान हैं। मां अपने बच्चे को कैसे भी सुरक्षा प्रदान करती हैं।