आख़िर भाग 3
आख़िर भाग 3
अम्मा और श्याम घर पहुंच जाते हैं। वहां बाहर ही उन्हें पंडित जी मिलते हैं।
अम्मा - आप आ गए। अंदर आइए।
पंडित जी - आख़िर..... वो आ गई। जैसे ही आपका फोन आया मैं सारी सामग्री ले आ गया। आपने अपने पोते को देखा तो नहीं ना?
अम्मा - मन को मना लिया लेकिन देखा नहीं। पर आपने उसे देखने को क्यों मना किया मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। और यह भी नहीं पता चल रहा वो लोग इतने समय बाद यहां क्यों आ रहे थे जबकि उनको पता है यहां आना खतरे से खाली नहीं है। आख़िर....
अम्मा यह बोल कर रोने लगी।
पंडित जी - आप अपने आप को संभालिए अगर आप टूट जाएंगी तो आपके पोते का क्या होगा।
पंडित जी - पहले हवन कर लेते हैं फिर बात करेंगे। वैसे भी आपको आपके सवालों के जवाब धीरे धीरे मिल ही जाएंगे।
लेकिन उससे पहले प्यारी तुम घर के चारों ओर यह गंगाजल छिड़क दो जिससे की हवन में कोई विघ्न ना आए।
पंडित जी हवन की तैयारी करते हैं। लगभग 3 घंटे में हवन पूरा होता है। पंडित जी सबको रक्षा सूत्र बांधते हैं और एक रक्षा सूत्र अम्मा को उनके पोते के लिए देते हैं।
पंडित जी - हवन की राख ले कर आप अपने पोते के पास जाओ। उसे यह रक्षा सूत्र और राख लगा देना वो ठीक हो जाएगा।
अम्मा - जी ।
पंडित जी - आप जल्दी से पहले अपने पोते के पास जाइए। याद रखना रास्ते में आपको बहुत सारी चीजें रोकना चाहेंगी लेकिन आपको किसी भी कीमत पर रुकना नहीं है और ना ही राख को नीचे गिरने देना है। जब भी सामने कुछ विचलित करने वाला दिखे या कोई आपको रुकावट मिले तो रक्षा सूत्र पर हाथ रख कर हनुमान चालीसा बोलना।
अम्मा और श्याम शहर की तरफ निकल पड़ते हैं। शाम होने लगती हैं कि तभी रास्ते पर उन्हें कोई औरत रोती हुई दिखाई दी। उसका रोना इतना तेज था कि उन्हें २ किलोमीटर से भी सुनाई दे रहा था।
श्याम - अम्मा जी वो औरत...
अम्मा - रुकना नहीं श्याम याद रखना पंडित जी ने क्या कहा था।
जैसे जैसे गाड़ी उस औरत के पास जाने लगी उसका रोना ओर तेज हो गया। धीरे धीरे रोना डरावनी आवाज़ों में बदल गया। अब वो औरत एक काले साये में बदल गई और वो काला साया पूरे आसमान में यूं छा गया शाम को ही रात हो गई। और वो भी ऐसी भयानक रात जिसे देखते ही रूह कांप जाए। कुत्तों के रोने की आवाजें आने लगीं। इतना काला आसमान कभी नहीं हुआ होगा।
अस्पताल पहुंचने में सिर्फ आधा घंटा था लेकिन यह समय अम्मा और श्याम के लिए बहुत मुश्किलों से भरा हुआ था।
इस समय में कभी उनको अपने पोते की लाश दिखाई देती तो कभी ऐसा लगता कि उनका बेटा रोते हुए उनको बुला रहा है।
श्याम को भी अपने पत्नी और बच्चों के शव दिखते जिससे वो बहुत घबराने लगा। लेकिन अम्मा जी उसको समझाती कि यह बस छलावा है। हमें पंडित जी की बातों को याद रखना है।
अम्मा और श्याम हनुमान चालीसा का पाठ किए जा रहे थे।
जैसे तैसे अस्पताल पहुंच जाते हैं लेकिन उनकी मुसीबतें अभी कम नहीं होती हैं।
अस्पताल के बाहर सभी जगह आग लगी मिलती हैं। दोनों बहुत घबरा जाते हैं मदद के लिए आवाज़ लगाते हैं लेकिन कोई आता नहीं है।
धीरे धीरे आग बढ़ने लगती हैं और बहुत ही विकराल रूप ले लेती हैं। आग में काला साया उभरता है, छोटे से रूप से बहुत विशाल रूप ले लेता है वो साया। फिर एक डरावनी हसीं सुनाई देती हैं।
अम्मा जी समझ जाती हैं कि यह सब उसका काम है, अम्मा जी और श्याम रक्षा सूत्र पर हाथ रख कर हनुमान चालीसा बोलने लगते है।
उनके हनुमान चालीसा बोलते ही वो साया और आग गायब हो जाती हैं।
अब अम्मा जी और श्याम अस्पताल के अंदर जाते हैं। उनके पोते को आईसीयू में रखा है। वो लोग वही जाते हैं।
आईसीयू के बाहर पहुंच कर अम्मा जी अपनी झोली से राख की पोटली निकालती हैं।
आईसीयू का गार्ड उन्हें चैकिंग के लिए रोकता है। वो चैकिंग करने वाला होता है तभी उसको अम्मा जी के हाथ में पोठली दिखती हैं।
वो अम्मा जी को पोटली की ओर इशारा करके पूछता है कि इसमें क्या है।
अम्मा जी बोलने वाली होती हैं कि श्याम बोल पड़ता है, इसमें कुछ खास नहीं है अम्मा जी की दवाई है।
गार्ड - अच्छा। लाइए मैं भी देखूं कौन सी दवाई है।
श्याम - जी हम कह रहे हैं ना दवाई फिर देखने की क्या जरूरत।
गार्ड - आप हमें बेवकूफ समझते हैं क्या? रोज पचासों लोग देखता हूं आप जैसे। लाओ दिखाओ मुझे। आईसीयू में कुछ भी ले जाने की अनुमति नहीं है। अगर ये सिर्फ दवाई है तो आप ले जा सकते हो लेकिन पहले चैक करवाना होगा।
और इतने में गार्ड सीनियर सेक्योरिटी ऑफिसर को भी बुला लेता है।
अब अम्मा जी और श्याम को वो पोटली सीनियर ऑफिसर को देनी पड़ती है।
जब सीनियर ऑफिसर पोटली खोलता है तो उसमे राख देख कर कहता है कि इसमें दवाई कहां है। और यह क्या मिट्टी भरी है इसमें ?
श्याम - यह हवन की राख है इनके पोते को लगानी हैं। कृपया आप इसे हमें ले जाने दीजिए।
गार्ड - सर यह लोग जरूर झूठ बोल रहे हैं अभी बोल रहे थे कि इसमें अम्मा जी की दवाई है और देखो क्या निकला । मुझे तो यह विस्फोटक पदार्थ लग रहा है।
श्याम और अम्मा उसे ख़ूब समझाते है कि वो राख उनके पोते के लिए बहुत जरूरी है नहीं तो वो बचेगा नहीं।
सीनियर ऑफिसर इतना सुनकर वो पोटली चैकिंग के भिजवा देता है और चला जाता है।
अम्मा जी वही बैठ कर रोने लगती हैं। श्याम उन्हें संभालता है।
तभी एक काला साया गार्ड में से निकल कर विकराल रूप ले लेता है और हंसता है कि अब कैसे बचाओगी अपने पोते को, क्योंकि आख़िर अब मैं आ गई हूं। काला साया हवा में गायब हो जाता है।
गार्ड बेहोश हो कर गिर जाता है।
अम्मा जी रोते रोते अपना माथा पिटती है। क्या जरूरत थी इस सबको यहां आने की , इतने सालो अपने से दूर रखा और एक पल में सब खतम हो गया।
श्याम अम्मा जी को समझता है कि रोए नहीं। तभी उसको कुछ दिखता है वो अम्मा जी के कान में कुछ बोलता है और अम्मा जी रोना छोड़ कर खुश हो कर आईसीयू की तरफ बढ़ती है।
अंदर उनके कलेजे का टुकड़ा बुरी हालत में होता है।
लखन उनके पोते के पास ही बैठा मिलता है। उनको देख कर पुछता है कि आप लोग सुबह बिना कुछ बताए क्यों चले गए। अम्मा जी अपने तो अपने पोते को देखा तक नहीं।
अम्मा जी - सब बातें बाद में पहले पंडित जी ने जो कहा है वो करने दो।
अम्मा जी आगे बढ़ती है और अपने माथे से राख ले कर पोते के माथे पर लगा देती हैं। वही राख जो पंडित जी ने हवन के दौरान उनके माथे पर लगाई थी काले साये से बचाने के लिए।
राख लगाते ही एक काला साया उनके पोते के शरीर से तड़पता हुआ बाहर निकलता हैं।
लखन, अम्मा जी और श्याम बहुत खुश हो जाते हैं लेकिन वो साया जाते जाते कहता है कि कब तक बचाओगे इसको मुझसे, क्योंकि आख़िर मैं आ गई हूं।
अब सबके चेहरे पर फिर से चिंता और डर आ जाता है।
धीरे धीरे अम्माजी के पोते को होश आने लगता है।
लखन भाग कर डॉक्टर को बुलाने जाता है। डॉक्टर आकर सब चैक करते हैं और कहते है कि अब कोई खतरा नहीं है।आपके पोते को थोड़ी देर में वार्ड में शिफ्ट कर देंगे फिर आप उससे बात कर सकते हैं।
अम्मा जी अपने पोते से मिलने जाती हैं, उसको उसके मां बाप की मौत भी बताना होगा और उन्हें यह जानना भी है कि वो तीनों इतने सालों बाद यहां क्यों आ रहे थे।
अंदर आयुष (अम्मा जी का पोता) अपने आप को अस्पताल में देख कर हैरान हो जाता है।
फिर जैसे ही अम्मा जी उसके कमरे में दाख़िल होती हैं तो आयुष को यकीन नहीं होता है।
अम्मा जी उससे कुछ कहने ही वाली होती हैं कि आयुष बोलता है कि अम्मा जी आप जिंदा हो लेकिन हमें तो.......

