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Jyoti narang

Others

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आख़िर भाग 4

आख़िर भाग 4

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अम्मा जी उससे कुछ कहने ही वाली होती हैं कि आयुष बोलता है कि "अम्मा जी आप जिंदा हो लेकिन हमें तो......."

अम्मा जी "मैं जिंदा हूं मतलब??"

आयुष "वो अम्मा जी हमें कल रात को एक फोन आया कि आपका देहांत हो गया है तो हम सब गांव की तरफ निकल पड़े। रास्ते में कुछ अजीब सा हुआ और हमारी गाड़ी पलट गई। मम्मी पापा कहां है? उनको ज्यादा चोट तो नहीं आई ना?"

अम्मा जी कुछ बोलती इससे पहले ही आयुष फिर बेहोश हो गया। अम्मा जी ने नर्स को बुलाया। नर्स ने चैक करके बताया कि एकदम से तनाव और दवाइयों की वजह से ऐसा हुआ है। आप चिंता ना करें थोड़ी देर में होश आ जाएगा।अम्मा जी बाहर आ गई।

लखन "कैसा है अब आयुष?"

अम्मा जी "वापस बेहोश हो गया तनाव की वजह से। वो अपने मां बाप के लिए चिंतित है।"

श्याम "तो क्या आपने उसे बता दिया कि उसके मां बाप अब नहीं रहे। क्योंकि दाह संस्कार में उनका होना भी जरूरी है।"

अम्मा जी "नहीं मैं कुछ कहती उससे पहले वो बेहोश हो गया। लेकिन वो कुछ अजीब सी बात कह रहा था।"

श्याम और लखन एक साथ पूछते है कि क्या अजीब सी बात?

अम्मा जी "वो बोल रहा था कि उनको किसी का फोन आया कि मेरा देहांत हो गया है इसलिए यह लोग यहां आने के लिए निकले और यह हादसा हो गया। लेकिन कौन हो सकता है जिसने फोन किया होगा। लखन तुम पता लगाओ।"

लखन "जी मैं पता करता हूं।"

थोड़ी देर में नर्स आकर बताती हैं कि आयुष को फिर से होश आ गया है लेकिन ध्यान रखना वो ज्यादा बात नहीं करे।अम्मा जी अंदर जाती हैं। आयुष के वापस मम्मी पापा के बारे में पूछने पर कुछ नहीं बोलती।आयुष अब जिद करने लगता है कि उसे जानना है। तब बड़े कड़े मन से सब कुछ बता देती हैं। आयुष दुखी होकर रोने लगता है और कहता है कि जल्दी से दाह संस्कार कर देना चाहिए। अम्मा जी श्याम को बोल कर दाह संस्कार की तैयारी करवा देती हैं। आयुष को दाह संस्कार करवाने व्हीलचेयर पर ले जाया जाता है।  10 दिन बाद आयुष को छुट्टी मिल जाती हैं। अम्मा जी उसे अपने साथ गांव ले आती हैं। घर के बाहर ही प्यारी, सरिता और पंडित जी मिलते हैं।

पंडित जी आयुष की आरती करके घर में प्रवेश करवाते हैं। अम्मा जी प्यारी को बोल कर आयुष के लिए एक कमरा तैयार करवा लेती हैं और आयुष को वहां भेज आराम करने को बोलती हैं।

पंडित जी "क्या आयुष ने बताया कि ऐसा क्या अजीब हुआ था।"

अम्मा जी "नहीं और ना मैने पूछा। पहले वो बेहतर हो जाए फिर बात करूंगी।"

पंडित जी "मुझे लगता है आपको ओर देर नहीं करनी चाहिए। कहीं ऐसा ना हो बात हाथ से निकल जाए।"

अम्मा जी "ठीक है मैं उससे कल ही बात करती हूं। आप भी तभी आ जाइए।"

अगले दिन सुबह अम्मा जी और पंडित जी आयुष को मिलने जाते हैं।"

अम्मा जी "कैसा लग रहा है अब?"

आयुष "बेहतर है। क्या यह कमरा पापा मम्मी का है?"

अम्मा जी "हां। लेकिन तुम्हें कैसे पता चला?"

आयुष "वो यहां हर चीज़ में उनके होने का अहसास हैं। क्या यह मेरे बचपन की फोटो हैं?"

अम्मा जी "हां तुम्हारे पैदा होने के कुछ दिन बाद की है। मुझे तुम से कुछ पूछना हैं।"

आयुष "मैं जानता हूं आपको क्या पूछना हैं। आइए बैठिए मैं बताता हूं सब कुछ कि उस दिन क्या हुआ।"

अम्मा जी और पंडित जी वहां रखी हुई कुर्सियों पर बैठ जाते हैं और आयुष बताने लगता है।

आयुष "हम लोग रोज की तरह खाना खा कर सोने जा रहे थे कि हमारे घर का फोन बजा। फोन मैने ही उठाया। किसी लड़की का फोन था वो रो कर बोली कि आपका देहांत हो गया है हम जल्दी आ जाए। यह सुनकर मुझे रोना आने लगा। मम्मी पापा के पूछने पर बड़ी मुश्किल से बता पाया। यह सुनकर वो दोनो भी रोने लगे। लेकिन फिर मैने संभलकर बोला कि हमें निकलना चाहिए।"

उस वक़्त 11 बजे होंगे हम लोग फटाफट घर से निकल गए। पापा इस हालत में नहीं थे कि गाड़ी चला पाते इसलिए मैं ही गाड़ी चला रहा था। सब कुछ सही चल रहा थालेकिन जब हम अपने शहर की सीमा के बाहर निकले और इस शहर में घुसे तब अचानक से अंधेरा कुछ ज्यादा ही हो गया। मैं गाड़ी चलाता रहा लेकिन मुझे कुछ साफ नजर नहीं आ रहा था। सड़क के किनारे लाइट जल तो रही थी लेकिन उनका कुछ खास असर नहीं था।

एक दम से मुझे सड़क पर एक बच्ची नजर आईं वो सड़क के बीच में आ कर बैठ गई। मेंने गाड़ी रोकी और ध्यान से उसकी ओर देखा उसके कपड़ों पर खून लगा हुआ था और चेहरा भी पूरा खून से सना हुआ था। मुझे लगा उसके साथ जरूर कुछ बुरा हुआ है इसलिए उसकी मदद के लिए मैं गाड़ी से उतरा।

मैं ने उससे पूछा कि "क्या हुआ बेटा आपको? क्या आपको चोट लगी है? आपके घर वाले कहां है?"

उस लड़की ने मुझे घुर कर देखा पर कुछ कहा नहीं। मेंने दुबारा पूछा। तब उसने बहुत भारी भयानक आवाज़ में कहा कि आख़िर..... "तुम आ ही गए कब से तुम्हारा इन्तज़ार था मुझे।"

उस बच्ची की आवाज़ यह बोलते वक़्त इतनी भयानक हो गई थी कि मैं डर कर पीछे हट गया। वो बच्ची मेरे करीब आने लगी और बोलने लगी "कोई नहीं बचेगा अब सब मारे जाएंगे वो आ गई है" ऐसा बोल वो हंसने लगी। उसकी हंसी देख मैं बहुत घबरा गया और दौड़ कर वापस गाड़ी में आ गया। वहां मम्मी पापा भी बहुत डरे से बैठे थे। मेंने जैसे ही गाड़ी स्टार्ट करना चाही तो गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही थी। तभी महसूस किया कि वो बच्ची हमारी गाड़ी में पीछे मम्मी पापा के बीच में बैठी है और दोनों के गले को दबा रही है। धीरे धीरे उस बच्ची का रूप बदलने लगा वो एक औरत में बदल गई जिसके बाल चेहरे पर बिखरे हुए थे आंखों में आग दिखाई दे रही थी। धीरे धीरे वो औरत एक काले साए में बदल गई और उस काले साए ने हम सब को अपने आगोश में ले लिया। यह सब इतना जल्दी हुआ कि मैं कुछ कर ही नहीं पाया। फिर मैं बेहोश हो गया। जब आंख खुली तो अस्पताल में पाया।यह बोल कर आयुष मम्मी पापा को याद कर रोने लगा। काश! भगवान मेरी जान ले लेते लेकिन उन दोनों को बच्चा लेते, आयुष रोते हुए बोला। अम्मा जी आयुष को गले लगा कर खुद भी रोने लगी।पंडित जी ने दोनों ढांढस बंधाया और कहा जो चले गए उनका दुख तो होगा ही लेकिन अभी जो है उसको बचाना है।

पंडित जी "मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि उसने आयुष को वहीं क्यों नहीं मारा?"

आयुष "यह कौन है जिसने मम्मी पापा को मारा है और मुझे भी मारना चाहता है।"

अम्मा जी "चाहता नहीं चाहती है। अब वक़्त आ गया है कि तुम्हे सब सच बताया जाए।"

आयुष "कैसा सच?"



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