आख़िर भाग 5
आख़िर भाग 5
आयुष - "कैसा सच?"
अम्मा जी - "वही सच जो आज तक तुम्हें नहीं बताया गया। हम सबने तुमसे छुपाया।"
आयुष - "अम्मा जी। आप गोल गोल बातें ना करे। जो बात है वो बताए।"
अम्मा जी -"ठीक है तो सुनो।"
बात तब की जब मेरी शादी तुम्हारे दादा जी के साथ हुई थी। उस समय हमारे परिवार की शान किसी राजघराने से कम नहीं थी। मैं इस घर में दुल्हन बन कर आ गई लेकिन तुम्हारे दादा जी को मैं कुछ ख़ास पसंद नहीं थी। माता पिता के कहने पर उन्होंने मुझसे शादी कर ली थी। उस जमाने में ऐसा ही होता था। कुछ समय बाद पता चला कि तुम्हारे पापा इस दुनिया में आने वाले है। सब मेरा ख़्याल पहले से ज्यादा करने लगे। मेरे लिए एक दाई रख दी गई जो पूरे दिन मेरे खाने पीने और बाकी चीजों का ध्यान रखती थी। वो दाई बला की ख़ूबसूरत थी। काले लहराते बाल जैसे रेशम की डोरी हो, नीली आंखें बिल्कुल किसी झील की तरह हर कोई उसमें डूबना चाहे, इतनी खूबसूरत थी वो बस देखते ही जाए लेकिन गरीब घर में पैदा हुई इस वजह से यह काम कर रही थी। मोहिनी नाम था उसका जैसा नाम वैसा ही उसको देख मोह हो जाता था। शादीशुदा थी लेकिन पति कुछ नहीं करता था। वो मेरा बहुत अच्छे से ध्यान रखती थी। पता नहीं कब उसकी खूबसूरती का जादू तुम्हारे दादा जी पर चल गया और वो गर्भवती हो गई। मेरी गोदभराई वाले दिन यह बात सबको उसी ने बताई तुम्हारे दादा जी के पिताजी ने उन्हें बहुत धमकाया कि सच बताए तब तुम्हारे दादा जी ने कबूल किया कि यह सच है। तब मैं बहुत टूट गई थी खूब रोई भी तब मेरी मां और बहनों ने मुझे संभाला कि बच्चे की खातिर मत रो।
तुम्हारे दादा जी भी मेरे सामने माफी मांग रहे थे कि सबकुछ गलती से हुआ।
मोहिनी को बोला गया कि वो गर्भ गिरा दे लेकिन उसके पति को इसमें लालच दिख गया वो आधी सम्पत्ति की मांग करने लगा और मोहिनी भी इसमें शामिल हो गई।
तुम्हारे बड़े दादा जी को गुस्सा आ गया और अपनी बन्दूक निकाली और एक गोली मोहिनी के पेट पर गोली मार दी और एक गोली उसके पति को। यह सब इतना जल्दी हुआ कि वो लोग संभल नहीं पाए। पति की तो उसी समय मौत हो गई लेकिन मोहिनी नहीं मरी थी। फिर बड़ी दादी जी ने उसे पानी पीने को दिया तो मोहिनी के मुंह से खून निकलने लगा तब उन्होंने बताया कि इसमें जहर हैं। यह गोली अपना काम नहीं कर पाई इसलिए तेरे गंदे इरादों को मैने ख़तम किया।
अब मोहिनी तड़पने लगी और बोली आदमी अपनी हवस पूरी करने के लिए हमको निशाना बनाए और फिर गोली भी हम ही खाएं। तुमने मेरे अजन्मे बच्चे को मारा है मैं इसका बदला लूंगी। मरने से पहले मोहिनी ने हम सब को श्राप दिया कि इस घर का कोई वंश नहीं बचेगा सब मारे जाएंगे। मेरी बहन बहुत बड़ी तांत्रिक है वो लेगी मेरी मौत का बदला।
इतना बोल कर मोहिनी मर गई।
हमने उसकी बातों को ज्यादा सीरियस नहीं लिया। मैं अब तक तुम्हारे दादा जी को माफ नहीं कर पाई थी और मोहिनी के जाने का गम भी था मुझे क्योंकि उसकी कोई गलती नहीं थी। तुम्हारे दादा आज शहर जा रहे थे। मेंने उन्हें बिना तिलक किए जाने दिया और वो वापस ना लोटे, लौटी तो सिर्फ उनकी टुकड़ों में बटी हुईं लाश। जो ड्राइवर साथ में था उसको कुछ नहीं हुआ था उसने बताया कि उसे एक काला साया नजर आया जिसकी नीली आंखें थी। उन नीली आंखों ने उसे सम्मोहित कर दिया और वो गाड़ी को कच्चे पुल पर ले गया। पुल टूट गया और गाड़ी नीचे सुखी नदी में गिर गई। ड्राइवर जैसे तैसे बाहर निकला और तुम्हारे दादा जी को निकालने लगा कि तभी 2 पेड़ गाड़ी के उपर गिर गए जिससे गाड़ी पिचक गई और तुम्हारे दादा जी की मौत हो गई। मुझे आज भी लगता है कि उस दिन उनको तिलक किया होता तो ऐसा नहीं होता।
फिर 2 दिन बाद तुम्हारे बड़े दादा जी बन्दूक साफ करते हुए मर गए। वो जब भी बन्दूक साफ करते थे तब गोली निकाल देते थे लेकिन उस दिन पता नहीं कहा से गोली आ गई उसमे और उन्होंने खुद पर ही चला ली या चल गई इसका कुछ पता नहीं है आजतक।
बड़े दादा जी की चिता ले जा रहे थे तब घर में बड़ी दादी जी ने जहर पी कर आत्महत्या कर ली।
मैं इन सब से इतना घबरा गई थी। सब काम ख़तम करके मैं अपने मायके आ गई। कुछ दिनों बाद मैने तुम्हारे पापा को जन्म दिया। मुझे वापस यहां आने में डर लग रहा था लेकिन यहां का व्यवसाय संभालने वाला कोई नहीं था इसलिए अपने बड़े भाई को यहां भेज दिया। उसने सब कुछ संभाला। लेकिन 1 महीने बाद उसकी भी रहस्यात्मक तरीके से मौत हो गई।
अब मैं अपने 6 महीने के बच्चे को मायके में छोड़ कर यहां आ गई। शुरू में तो 2-3 तीन दिन ही यहां रुकती फिर चली जाती मायके। जब बेटा स्कूल जाने लगा तब ज्यादा रुकना शुरू किया और जब वो आगे की पढ़ाई के लिए दूसरी जगह चला गया तब यही आ गई मैं। हालांकि मुझे मोहिनी ने कभी मारने की कोशिश नहीं की क्योंकि शायद वो मुझे अपना कातिल नहीं समझती थी। मेंने शुरू से ही अपने बेटे को पंडित जी का दिया हुआ अभिमंत्रित धागा पहनाया था। उसके साथ छोटी मोटी घटनाएं होती लेकिन मोहिनी उसे छू नहीं पाती। कुछ समय बाद बेटे ने एक लड़की से प्रेम विवाह करना चाहा। मेंने हामी भर दी लेकिन पहले दोनों को बैठा कर सच बताया। दोनों को फिर भी साथ रहने में दिक्कत नहीं हुई तो उनका धूमधाम से विवाह किया। एक दिन बहू ने जिद की यहां आने की मैं उसकी जिद के आगे हार गई। जब वो लोग यहां आए तो हर दिन कुछ ना कुछ हो जाता था। एक रोज वो मंदिर दर्शन को गए तो तुम्हारी मां सीढ़ियों से गिर और उसका अजन्मा बच्चा मर गया। वो लोग मंदिर से आने के बाद मुझे बताने वाले थे कि वो गर्भवती है। लेकिन वो खुशी मुझे ना मिल सकी। अगले दिन मैने उन्हें यहां कभी ना आने की कसम के साथ वापस भेज दिया। अब जब मन होता मैं ही मिल आती थी। कुछ समय बाद तुम्हारे आने का पता चला। पंडित जी को बुला खूब हवन करवाया। तुम्हारे जन्म के बाद एक बार ओर यहां आने की जिद कर रहे थे लेकिन मैने आने ना दिया।
इसलिए हमेशा मैं ही तुमसे मिलने आती थी।
आयुष सब कुछ ध्यान से सुन रहा होता है। तभी उसका फोन बजता है। लखन का फोन है।
अम्मा जी - "लाओ मुझे दो।"
लखन - "हेल्लो आयुष बेटा।अम्मा जी से बात करवाना।"
अम्मा जी - "मैं ही बोल रही हूं। बोलो क्या हुआ।"
लखन - "मुझे पता चल गया वो फोन आयुष के घर कहां से हुआ था।"
अम्मा जी - "किसने किया था वो फोन? कहां से हुआ था मतलब?"
लखन - "मैं जो कहूंगा वो आपको यकीन नहीं होगा। वो फोन......"
