आजादी: तब और अब
आजादी: तब और अब


आजादी के परवाने ना टकराते अंग्रेजों से तो, क्या हम आज भी गोरी मैम के डॉगी को सुबह की सैर करवा रहे होते। और लाट साहब ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए हिमालय के दुर्गम इलाकों में रेलगाड़ी पहुंचाने की योजना बना रहे होते, जहां आज भी पैदल चलने लायक तमीजदार पगडंडी नहीं है। खुले आकाश के नीचे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच यह कहना कि भारतीय नेताओं ने कुछ नहीं किया, सरासर गलत है। यह जरूरी नहीं कि हर फैसला सर्वसम्मति से हो। विवाद तो आजादी की लड़ाई में भी था। कोई शांतिप्रिय था तो किसी ने कफन ही बांध रखा था। लेकिन लक्ष्य सबका एक था सिर्फ आजादी। तात्कालिक परिस्थितियों में जो सर्वश्रेष्ठ था, वो हो गया। गड़े मुर्दे उखाड़ने से हवाओं में खुशबू नहीं फैलती। वाद-विवाद के बीच आपका विरोध प्रदर्शन दूसरे को कट्टरपन की हद पार करने को बाध्य करता है। बस यही एक बात फूट डालकर राज करने वाले ब्रिटिश नायक नहीं समझ पाए और सोने की चिड़िया से हाथ धो बैठे। भारतीय विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए अंग्रेजों ने जिस प्रकार से गोली और हंटर का प्रयोग किया बस उसके एवज में ही भारतीयों ने देशभक्ति में कट्टरपन की हद पार कर दी। फांसी के फंदे पर हंसते-हंसते झूल गए तो सीने पर गोलियां खाने लगे। गोरों के खिलाफ असहयोग आंदोलन का कुछ ऐसा असर हुआ कि 15 अगस्त 1947 को हिंदुस्तान आजाद हो गया और हम अंग्रेजी मैम के नखरे उठाने से बच गए।