अंधविश्वास
अंधविश्वास


अंधविश्वास से अच्छा है खुद पर विश्वास। जहां दूसरे पर अंधविश्वास गर्त में ले जाता है, वहीं खुद पर विश्वास सफलता के नए रस्ते दिखाता है। कुछ साल पहले की बात है जब नई दिल्ली के बुराड़ी में मृत पिता से मिलने के अंधविश्वास में 11 लोगों ने फांसी लगा ली। ये कैसा भरोसा है। भला कोई आज तक मरने के बाद जिंदा हुआ है। एक बार मर गए तो मर गए। वही दूसरी ओर थाईलैंड की चौथी बड़ी गुफा में 15 दिन से जिंदगी और मौत के बीच फंसे बच्चों को बाहर निकाला जा रहा था, तो उनको खुद पर भरोसा था, हम कर सकते है।
गुफा की भयावहता की कल्पना करके ही प्राण सूख जाते हो, तब ऐसे में जरा सोचिये आखिर 9 दिन तक बच्चों और उनके कोच पर क्या बीती होगी। यूं तो दुनिया में आये दिन कुछ न कुछ होता है। लेकिन ये दो घटनाएं बहुत कुछ सिखाती है। कोई भी जंग जीती जा सकती है, बस खुद पर भरोसे के साथ-साथ तैयारी पुख्ता हो। लेकिन दूसरे पर पूरी तैयारी के साथ अंधा भरोसा मौत को गले लगाना ही होता है। भला बुराड़ी कांड के खुलासे में एक रजिस्टर में मास्टरमाइंड ललित ने पिता का हवाला देते हुए लिखा है, 'मैं कल या परसों आऊंगा, नहीं आ पाया तो फिर बाद में आऊंगा।' रजिस्टर में लिखी हर बात ललित लिख रहा था। वो पिता से मिलने के बाद अब इसी रजिस्टर में भगवान से मिलने की भी बात लिखने लगा। सारी बातें इस तरह लिखी गईं जैसे पिता भोपाल सिंह लिख रहे हो। रजिस्
टर में आगे लिखा था, 'तुम्हें पता है कि भगवान कभी भी हमारे घर में आ सकते हैं इसलिए पूरी तैयारी रखो। आखिरी समय पर झटका लगेगा, आसमान हिलेगा, धरती हिलेगी।
लेकिन तुम घबराना मत, मंत्र जाप तेज़ कर देना, मैं तुम्हें बचा लूंगा। जब पानी का रंग बदलेगा तब नीचे उतर जाना, एक दूसरे की नीचे उतरने में मदद करना। तुम मरोगे नहीं, बल्कि कुछ बड़ा हासिल करोगे।' शायद यही वह आदेश था जिसे पूरा करने के फेर में पूरे परिवार की जान चली गई। वही दूसरी ओर इस घटना के बाद उत्तरी थाईलैंड की एक गुफा में फंसे 12 बच्चों ने अपने परिजनों के लिए पहली बार कुछ लिखित संदेश भेजे थे। कुछ बच्चों ने लिखा है, आप लोग चिंता मत करिये।।। हम सभी बहादुर हैं। ये वो बच्चे थे जिनको 10 दिनों के बाद पहली बार खाना और दवाइयाँ मिली थी। बच्चों को गुफा से बाहर निकला जा रहा था। विपरीत परिस्थियों में बच्चों और कोच को बाहर निकलने का काम अपने अंतिम चरण में था।
आखिर में बच्चों को सुरक्षित बचा लिया गया था। अब सोचिये मौत को गले लगाना अच्छा है या मौत को मात देकर जिंदगी की जंग जीतना। भगवान भी उनकी ही मदद करता है, जिनको अपने पर भरोसा होता है। इन दोनों घटनाओं से यही बात समझ आती है कि भला ऐसा भी कहा होता है कोई अंधभक्ति में अपने परिवार सहित फंदे पर झूल जाए और कोई अंधेरी मौत की गुफा से जिंदगियों को निकाल लाये। ऐसा भी कहां होता है।