बंधन
बंधन
दो अजनबियों स्त्री-पुरुष का एक अटूट बंधन। जिसकी खूबसूरती में सिर्फ इतना ही कहा सकता है कि जोड़ियां आकाश में बनती है और निभाई धरती पर जाती है। सृष्टि अनवरत महकती रहे इसके विवाह जैसी व्यवस्था कायम है। एक-दूसरे से अनजान भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में पले-बढ़े युवक-युवती एक दूसरे का सम्मान करते हुए एक साथ मिलकर जिंदगी व्यतीत करते है, इससे ज्यादा खूबसूरत और व्यवस्थित व्यवस्था और कोई नहीं हो सकती। सामाजिक मान्यताओं की परछाई में निरंतर अनादिकाल से चली आ रही विवाह व्यवस्था से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। वास्तव मे विवाह एक सार्वभौमिक सामाजिक संस्था है। सार्वभौमिक इसलिए क्योंकि विश्व के सभी समाजो मे विवाह दिखाई देता है, भले ही इसका स्वरूप एक समाज से दूसरे समाज मे कुछ या काफी भिन्न हो।
शास्त्रों के अनुसार विवाह आठ प्रकार के होते हैं। विवाह के ये प्रकार है - ब्रह्म, दैव, आर्श, प्राजापत्य, असुर, गन्धर्व, राक्षस और पिशाच। आठ विवाह में से ब्रह्म विवाह को ही मान्यता दी गई है बाकि विवाह को धर्म के सम्मत नहीं माना गया है। हालांकि इसमें देव विवाह को भी प्राचीन काल में मान्यता प्राप्त थी। प्राजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस और पिशाच विवाह को बेहद अशुभ माना जाता है। विवाह प्रत्येक देश, काल, समाज और संस्कृति में पायी जाती है।
विवाह दो विषमलिंगियों का सम्बन्ध है। विवाह के लिए दो विषमलिंगियों अर्थात् पुरुष और स्त्री का होना आवश्यक है। इतना अवश्य है कि कहीं एक पुरुष का एक या अधिक स्त्रियों के साथ और कहीं एक स्त्री का एक पुरुष या अधिक पुरुषों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होता है। विवाह को मान्यता उसी समय प्राप्त होती है जब उसे समाज की स्वीकृति मिल जाती है। यह स्वीकृति प्रथा या कानून के द्वारा अथवा धार्मिक संस्कार के रूप में हो सकती है।
विवाह संस्था के आधार पर लैंगिक या यौन सम्बन्धों को मान्यता प्राप्त होती है। विवाह यौन इच्छाओं की पूर्ति के साथ-साथ सन्तानोत्पत्ति एवं समाज की निरन्तरता को बनाये रखने की आवश्यकता की पूर्ति भी करती है। व्यक्तित्व के विकास की जैविकीय, मनोवैज्ञानिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। विवाह सम्बन्ध एक स्थायी सम्बन्ध है। विवाह के आधार पर पति-पत्नी के बीच स्थायी सम्बन्ध की स्थापना होती है। सभी समाजो से विवाह का सर्व प्रमुख कार्य परिवार का निर्माण करना है। व्यक्ति जब तक अपने परिवार का निर्माण नही करता उसका जीवन साधारणतया व्यक्तिवादी, अकेला तथा कभी कभी अनुत्तरदायी भी रहता है। विवाह संस्था व्यक्ति को मान्यता प्राप्त तरीके से परिवार का निर्माण करने का अवसर प्रदान करती है एवं इस तरह समाज मे व्यक्ति की स्थिति को ऊंचा उठाती है।