नई राह
नई राह
महेंद्र बाबू आजकल तुम्हारे पांव जमीन पर नहीं टिक रहे हैं। हमें भी तो बताओ क्या बात है।
इतना सुनते ही महेंद्र बाबू उखड़ गए। और बोले क्या आप भी मजाक करने लगे हैं। अब यहां रोटी खाने के तो लाले पड़े हैं और आप कह रहे हैं कि मैं हवा में उड़ रहा हूं। गुरुजी बोले, अरे नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है। मैं तो हैरान हूं कि तुम अभी तक कामयाब क्यों नहीं हुए हो। क्यों इधर-उधर भागे फिरते हो। मैंने जो तुमको सिखाया क्या तुमने वैसा किया कभी। अगर तुमने मेरी बात पर ध्यान दिया होता तो शायद आज तुम्हारा भी सिक्का चल रहा होता। लेकिन तुम तो ठहरे अति हठी।
महेंद्र बाबू सकपकाए और तुरंत बैकफुट पर आ गए। भला कोई शिष्य अपने गुरु से आगे कैसे जा सकता है। महेंद्र बाबू बोले गुरु जी मुझे माफ कर दो मैं आपको कभी समझा ही नहीं। मैंने आपकी बातें सुनी तो है लेकिन उन पर कभी अमल नहीं किया। उसका ही नतीजा ह
ै कि मैं आज ना तो हवा में उड़ पा रहा हूं और ना ही जमीन पर पैर टिका पा रहा हूं। आपने मुझे मछली की आंख पर निशाना लगाने की तरकीब तो बताई थी लेकिन मेरा मन पूरी मछली को ही निगलने का था। और मैं यही गलती कर बैठा। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जिस एकाग्रता की जरूरत होती है। वह अब मेरे बेचैन मन में नहीं आ सकती। मन बहुत व्यथित है। मैं जानता हूं जब मैं इहलोक में ही व्यवस्थित नहीं हो सका तो परलोक की क्या कहूं। आपके ज्ञान और मेरे मन ने मुझे त्रिशंकु बना कर रख दिया है।
गुरुजी बोले बेटा उदास मत होना। जिंदगी कभी-कभी उस चौराहे पर लाकर खड़ा कर देती है जहां पर कुछ समझ नहीं आता। बस एक बात तुम समझ लो जहां पर सब कुछ खत्म हो जाता है, बस वहीं से जीने की एक नई राह दिखाई देती है।
गुरुजी की बात सुनते ही महेंद्र बाबू निकल पड़े उस चौराहे की तलाश में जहां से मिलेगी उन्हें एक नई राह।