Padma Agrawal

Classics Inspirational

4  

Padma Agrawal

Classics Inspirational

आई हेट हर

आई हेट हर

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“गूंज बिटिया, मुझे माफ कर दो....मेरी हड्डी टूट गई है। नीराजी फूट फूट कर रो रही थीं ‘’

“आप फोन बीना को दीजिये ‘’, गूंज परेशान स्वर में बोली थी

सुबह के 7 बजे थे, गूंज ऑफिस के लिये तैयार हो रही थी कि मां के फोन ने उसका मूड खराब कर दिया। ‘’बीना क्या हुआ मां को ? “

“दीदी मां जी बाथरुम में गिर कर बेहोश हो गई थीं। मैंने गार्ड को बुलाया और किशोर अंकल भी आ गये थे, किसी तरह से बेड पर लिटा दिया लेकिन वह बहुत जोर जोर से रो रहीं हैं, सब लोग हॉस्पिटल ले जाने को बोल रहे हैं, शायद फ्रैक्चर हुआ है। किशोर अंकल आपको फोन करने के लिये बोल रहे थे। “

“बीना, मैं डॉ. गुप्ता को फोन कर देती हूं। वह देख कर जो बतायेंगें, फिर देखती हूं.....’’

उसने अपने फेमिली डॉक्टर को फोन किया और ऑफिस आ गई। उसे मालूम हो गया था कि मां को हिप बोन में फ्रैक्चर हुआ है, इसी वजह से वह परेशान थी, उसके चेहरे पर तनाव परिलक्षित हो रहा था। किशोर अंकल ने एम्बुलेंस बुला कर उन्हें नर्सिंगहोम में एडमिट करवा दिया था। इतनी देर से लगातार फोन से सबसे बात करने से काम तो हो गया, लेकिन बीना है कि बार बार फोन करके कह रही है कि मां बहुत रो रहीं हैं और एक बार आने को बोल रही हैं।

“गूंज, किसका फोन है जो तुम बार बार कट कर रही हो ....’’

पार्थ उसका कलीग और अच्छा दोस्त है। एक ही कंपनी में काम करते करते दोनों के बीच घनिष्ठता बढ गई थी। फिर दोनों कब आपस में अपने दुःख सुख साझा करने लगे थे, यह पता ही नहीं लगा था। गूंज ने अपना लैपटॉप बंद किया और अपना सामान समेटती हुई बोली, ‘’मैं रूम पर जा रही हूं ‘’

पार्थ ने भी अपना लैपटॉप बंद कर बॉस के केबिन में जाकर बताया और दोनों ऑफिस से निकल पड़े।

“गूंज, कैफे डे में एक कॉफी पीते हैं ‘’

गूंज रोबोट की तरह उदास कदमों के साथ कैफे डे की ओर चल दी थी। वह वहां बैठी अवश्य थी परंतु उसकी आंखों से ऐसा स्पष्ट हो रहा था कि उसका शरीर यहां है परंतु आत्मा कहीं और है, मानो वह अपने अंतर्मन से संघर्ष कर रही हो।

पार्थ ने उसका मोबाइल उठा लिया और कॉल हिस्ट्री से जान लिया था कि उसकी मां की मेड का फोन, फिर डॉक्टर .....

“क्या हुआ तेऱी मॉम को?’’

“वह गिर गईं हैं, हिप बोन में फ्रैक्चर हुआ है। मुझे रो रो कर बुला रही हैं।‘’

“तुम्हें जाना चाहिये।‘’

“ मुझे तो सब कुछ करना चाहिये, इसलिये कि उन्होंने मुझे पैदा करके मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है....इसलिये....उन्होंने मेरे साथ क्या किया है ? हमेशा मारना पीटना ... प्यार, दुलार के लिये मैं सदा तरसती रही ....अब आये उनके भगवान् ...करें उनकी देखभाल....उनके गुरू महराज... जिनके कारण वह उसकी पिटाई किया करती थी।‘’

“ I hate her’’.

‘’देखो गूंज तुम्हारा गुस्सा स्वाभाविक है, होता है .... कुछ बातें मानस पटल से प्रयास करते रहने से भी नहीं मिट पाती। लो पानी पियो, अपने को शांत करो।‘ ‘’पार्थ ,मैं मां की सूरत नहीं दॆखना चाहती।‘’ कह कर वह सिसक उठी थी।

वह चाहता था कि उसके मन की कटुता आंसू के माध्यम से बाहर निकल जाये तो वह सही निर्णय ले पाये ...

   वह छोटी सी थी, तब संयुक्त परिवार में रहती थी। घर पर ताई जी का शासन था क्योंकि वह रईस परिवार की बेटी थीं ...मां सीधी सी, गरीब परिवार से साधारण सी थीं। वह, एक तो लड़की थी,दूसरी दुबली पतली सांवली, पढने में कमजोर ......बस सब तरह से उपेक्षित ... पापा का किसी के साथ चक्कर था ... सब तरह से बेसहारा मां दिन भर नौकरानी की तरह घर के कामों में लगी रहतीं। उनका सपना था कि उनकी बेटी पढ लिख कर बड़ी ऑफिसर बने परंतु उसे तो आइसपाइस, कैरम बोर्ड, और दूसरे खेलों से फुरसत ही नहीं रहती। वह हर समय ताई के गोलू और चिंटू के पीछे पीछे उनकी पूंछ की तरह फिरा करती।

    घर में कभी बुआ के बच्चे तो कभी मौसी के बच्चे तो कभी पड़ोस के साथियों की टोली का जमघट रहता, बस सबका साथ पाकर वह भी खेलने में लग जाती।

  एक ओर पति की उपेक्षा, पैसे की तंगी साथ में घरेलू जिम्मेदारियां, कुछ भी तो उनके मनमाफिक नहीं था।वह जिद् करती कि मुझे गोलू भइया जैसा ही बैग चाहिये, नाराज होकर मां उसका कान पकड़कर लाल कर देतीं। वह सिसक कर रह जाती, एक तो बैग न मिल पाने की तड़प तो दूसरी तरफ कान खींचे जाने का दर्द भरा एहसास ऒर सबसे अधिक अपनी बेइज्जती को महसूस कर वह कभी रो पड़ती तो कभी चीखने चिल्लाने लगती, तो फिर से पिटाई का एक राउंड अनिवार्य होना ही था, रोना धोना और भूखे पेट सो जाना उसकी नियति थी।

उस उम्र में नासमझ अवश्य थी परंतु पिटाई होने पर अपमान और बेइज्जती को तो बहुत ज्यादा ही महसूस करती थी। वह दूसरी क्लास में थी, उसकी फ्रेंड हिना का बर्थ डे था। वह़ स्कूल में बहुत सुंदर पिंक कलर की फ्रिल वाली फ्राक पहन कर आई थी, उसने सभी बच्चों को पेंसिल बॉक्स के अंदर पेंसिल, रबर, कटर, और टॉफी रख कर दिया था। इतना सुंदर पेंसिलबॉक्स देख कर वह खुशी से उछलती कूदती घर आई और मां को दिखाया तो उन्होंने उसके हाथ से झपट कर ले लिया, ’’कोई जरूरत नहीं है इतनी बढिया चीजें स्कूल ले जाने की, कोई चुरा लेगा।‘’ वह पैर पटक कर रोने लगी, लेकिन मां पर कोई असर नहीं पड़ा था।

कुछ दिनों के बाद वह एक दिन स्कूल से लौट कर आई तो मां उस पेंसिलबॉक्स को पंडित जी के लड़के को दे रहीं थीं, यह देखते ही वह चिल्लाकर उसके हाथ से छीनने लगी, यह मुझे मिला था, यह मेरा है तो बस उन्होंने उसकी गर्दन पीछे से इतनी जोर से दबाई कि मेरी सांस रुकने लगी और मुंह से गों गों की आवाज निकलने लगी .... वह बहुत देर तक रोती रही थी। लेकिन समय सब कुछ भुला देता है।

वह क्लास चार में थी ...अपनी बर्थ डे के लिये नई फ्राक दिलवाने की जिद् करती रही लेकिन फ्राक की जगह उसके गाल थप्पड़ से लाल हो गये थे। वह रोते रोते सो गई थी लेकिन शायद पापा को उसका बर्थ डे याद था इसलिये वह उसके लिये टॉफी लेकर आये थे। वह स्कूल यूनीफार्म में ही अपने बैग में टॉफी रख कर इतनी खुश थी कि कुछ पूछना नहीं ...लेकिन शायद टॉफी सस्ती वाली थी, इसलिये ज्यादातर बच्चों ने उसे देखते ही लेने से इंकार कर दिया था। वह मायूस होकर रो पड़ी थी, उसने गुस्से में सारी टॉफी डस्ट बिन में फेंक दी थी। लेकिन बर्थ डे तो हर साल ही आ धमकता था।

पड़ोस में गार्गी उसकी सहेली थी, उसने आंटी को गार्गी के माथे पर टीका लगा कर अपने हाथों से खीर खिलाते देखा था। उसी दिन से वह कल्पनालोक में केक काटते तो कभी मां के हाथ से खीर खाने का सपना पाल बैठी थी।परंतु बचपन का सपना केक काटना,और मां के हाथ से खीर खाना उसके लिये सपना ही बना रह गया।

वह क्लास 6 में आई तो सुबह मां उसे चीख कर जगातीं, कभी सुबह थप्पड़ भी लगा देतीं और स्वयं भगवान् के सामने बैठ कर घंटी बजा बजा कर जोर जोर से भजन गाने बैठ जातीं। वह अपने नन्हे हाथों से फ्रिज से दूध निकाल कर कभी पीती तो कभी ऐसे ही चली जाती। टिफिन में दो ब्रेड या बिस्किट देख कर उसकी भूख भाग जाती .... अपनी सहेलियों के टिफिन में मां के बनाये पराठे, सैण्डविच देख उसके मुंह में पानी आ जाता साथ ही भूख से आंखें भीग उठतीं, यही वजह थी कि वह मन ही मन मां से चिढने लगी थी।

उसने कई बार मां के साथ नजदीकी बढाने के लिये उनके बालों का स्टाइल बनाने की कोशिश भी की थी तो क्षणांश भी नहीं लगा था, उन्हें उसके हाथ झटकने में ....मदर्स डे पर उसने भी अपनी फ्रेन्ढ्स के साथ बैठ कर उनके लिये प्यारा सा कार्ड बनाया था कि उन्हें सरप्राइज दूंगीं लेकिन वह तो उस दिन अपनी भजन किटी से बहुत देर से आईं थीं, जब उसने उन्हें मुस्कुराते हुये कार्ड दिया तो बोलीं, कि ये सब चोचले किस लिये ? पढो लिखो, घर का काम सीखो, आखिर पराये घर जाना है ... उन्होंने कार्ड खोल कर देखा भी नहीं था और अपने फोन पर किसी से बात करने में बिजी हो गईं थीं।

वह मन ही मन निराश और मायूस थी साथ ही गुस्से से उबल रही थी।

पापा अपने दुकान में ज्यादा बिजी रहते, देर रात घर में घुसते तो दारू के नशे में ....घर में ऊधम न मचे, इसलिये मां चुपचाप से दरवाजा खोल कर उन्हें सहारा देकर बिस्तर पर लिटा देतीं। वह गहरी नींद में होने का अभिनय करते हुये अपनी बंद आंखों से भी सब देख लिया करती थी।

रात के अंधेरे में मां के सिसकने की भी आवाज आती, अब सोचती हूं कि शायद पापा मां से उनकी पत्नी होने का जजिया वसूलते थे, उसने भी बहुत बार मां के चेहरे, गले और हाथ पर पापा की अमानुषिकता के दिये काले निशान के रूप में देखे थे।

पापा को सुधारने के लिये उन्होंने बाबा लोगों की शरण में जाना शुरू कर दिया .... घर में शांति पाठ, हवन, बाबा लोगों द्वारा पूजा पाठ, व्रत, उपवास, सत्संग, बाबा की कथा का आयोजन हर दिन होने लगा था। उन्हें यह विश्वास था कि ये बाबा सत्यानंद ही पापा को नशे से दूर कर सकते है, इसलिये वह दिन भर पूजा पाठ, हवन पूजन और उन लोगों का स्वागत् सत्कार करना आवश्यक समझ कर उसी में अपने को समर्पित कर दिया था वैसे भी हमेशा से ही घंटों पूजा पाठ, छूतछात, कथा भागवत में जाना, बाबा लोगों के पीछे भागना, उनकी दिनचर्या में शामिल था। अब तो घर के अंदर सत्यानंद का उनकी चौकड़ी के साथ। जमघट लगा रहता .... कभी कीर्तन, सत्संग, और उपदेश फिर स्वाभाविक था कि उनका भोजन भी होगा .... पापा का बिजनेस बढ गया और उस महिला का ट्रान्सफर हो गया था, इसलिये वह मेरठ चली गई थी ...मां का सोचना था कि ये कृपा गुरू जी की वजह से ही हुई है, इसलिये अब पापा भी कंठी माला पहन कर सुबह शाम पूजा पर बैठ जाते और बाबा लोगों के ऊपर खर्च करने के लिये पापा के पास खूब पैसा रहता ...

इन सब ढोंग ढकोसलों के कारण उसे पढने, अपने होमवर्क का समय ही नहीं मिलता, अक्सर उसका होमवर्क अधूरा रहता तो वह स्कूल जाने के लिये आनाकानी करती तो मां का थप्पड़ मिलता और स्कूल में जाकर भी पनिशमेंट मिलता। वह टेस्ट में फेल हो गई तो पेरेन्ट्स मीटिंग में टीचर ने उसकी शिकायत की कि इसका होमवर्क पूरा नहीं रहता और क्लास में ध्यान नहीं देती तो इन्हीं मां ने उसकी जबर्दस्त पिटाई की थी।

वह सिसकती रही थी, तब वह क्लास 6th में थी। उसके दांत होठ में चुभ गये थे ...होठ सूजा हुआ था और गाल पर मां के जोरदार तमाचे के कारण उनकी उंगलियों के निशान उभरे हुये थे।वह शर्म से अपने चेहरे को रुमाल से ढकने की बराबर कोशिश करती रही थी। लेकिन नित्या ने जब उसके चेहरे को देख कर कहा कि गूंज इतनी जोर का थप्पड़ तुझे किसने मारा? …. सारी की सारी अंगुलियां छपी हुई हैं। उसने शरम के मारे अपना मुंह फेर कर आंसू पोछ लिये थे। लेकिन अब मां के प्रति उसका भरोसा टूट गया था।

  वह धीरे धीरे अपने में सिमटने लगी थी। उसका आत्मविश्वास हिल चुका था। वह हर समय अपने में ही उलझी रहने लगी थी। क्लास में टीचर जब समझातीं तो वह सब कुछ उसके सिर के ऊपर से निकल जाता।

वह हकलाने लगी थी, मां के सामने जाते ही वह कंपकंपानॆ लगती। पिता की अपनी दुनिया थी, वह उसे प्यार तो करते थे, वह उन्हें देख कर खुश तो होती लेकिन बात नहीं कर पाती थी, वह कभी कभी प्यार से उसके सिर पर अपना हाथ फेर देते तो वह खुशी से निहाल हो उठती थी।

   मां की कुंठा बढती जा रही थी, वह नौकरों पर चिल्लातीं, उन्हें गाली देतीं और उसकी पिटाई करके स्वयं रोने लगतीं, ’’गूंज, आखिर मुझे क्यों तंग करती रहती हो ‘’

अब वह ढिठाई से हंस देती थी, उसे मालूम था कि ज्यादा से ज्यादा फिर से उसकी पिटाई कर देंगीं और क्या? पिट पिट कर वह मजबूत हो चुकी थी, अब पिटने को लेकर उसके मन में कोई खौफ नहीं था।

वह क्लास 7th में थी, मैथ्स में फेल हो गई थी, जुलाई में उसकी पुनर्परीक्षा होनी थी । वह स्कूल से अपमानित होकर आई ही थी क्योंकि मैथ्स में (+ - ) प्लस माइनस का गठजोड़ उसके दिमाग में घुसता ही नहीं था। घर के अंदर घुसते ही चारों ओर से व्यंगवाणों से उसका स्वागत् हुआ था .... अब तो घर में नया नया काम होनॆ लगा है .... इससे घर में झाड़ू पोछा करवाओ, ये लड़की इसी के लायक है .... यह ताई जी का डॉयलाग था, शायद मां को बेटी का अपमान, अपना अपमान महसूस हुआ था, उन्होंने आव देखा न ताव जोर दार झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर रख दिया था।

वह पैर पटकते हुये जोर से बोली थी मारो.... मारो... मार ही डालो....झंझट ही खतम हो जाये। अब उसकी आंख के आंसू सूख चुके थे ...अब वह मां को परेशान करने के तरीके सोच रही थी। कुछ देर में मां आईं और फूट फूट कर रोने लगीं थीं। कुछ देर तक उसके मन में यह प्रश्न घुमड़ता रहा कि जब पीट कर रोना ही है तो पीटती क्यों हैं ....साथ में उनके प्रति क्रोध और घृणा बढती गई थी।

लेकिन उस दिन पहली बार मां के चेहरे पर बेचारगी का भाव देख वह व्याकुल हो उठी थी। व्यथित स्वर में वह बोलीं थी, “ गूंज, पढ लिख कर इस नरक से निकल जाओ, मेरी बेटी ‘’

उस दिन मजबूरी से कहे इन प्यार भरे शब्दों ने उसके जीवन में पढाई के प्रति रुचि जागृत कर दी थी।

अब पढाई में रुझान के कारण उसका रिजल्ट अच्छा आने लगा तो मां की शिकायत दूर हो गई थी।

वह 10th में थी बोर्ड की परीक्षा का टेंशन रहता... साथ ही उम्र की ऐसी दहलीज थी, जब किशोर मन उड़ान भरने लगता है ,पिक्चर, टी.वी. के साथ हीरो हीरोइन से जुड़ी खबरें मन को आकर्षित करने लगती हैं।

पड़ोस की शर्मा आंटी का बेटा कमल भइया का दोस्त था, वह घर हमेशा से आया करता था। वह B.s.c.में था, इसलिये वह कई बार उससे कभी इंग्लिश तो कभी मैथ्स के डाउट्स क्लीयर कर लेती थी। वह उसके लिये कोई गाइड लेकर आया था। उसने अक्सर उसे अपनी ओर देख कर मुस्कुराते हुये देखा था। वह भी शर्मा कर मुस्कुरा दिया करती थी। एक दिन वह उसके कमरे में बैठकर उसे मैथ्स की प्रॉब्लम समझा रहा था, वह उठ कर अल्मारी से किताब निकाल रही थी, तभी उसने उसे अपनी बाहों में भर लिया था, वह सिटपिटा कर उसकी पकड़ से छूटने का प्रयास कर रही थी तभी कमरे में कमल भइया आ गये और बस फिर तो घर में जो हंगामा हुआ कि पूछो मत .......

वह बिल्कुल भी दोषी नहीं थी लेकिन घर वालों की नजरों मे सारा दोष उसी का था ...

“कब से चल रहा है ये ड्रामा ? वही मैं कहूं कि यह सलिल आजकल क्यों बार बार यहां का चक्कर काट रहा है ..... सही कहा है... कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना....

बस मां ने एक भी नहीं सुनी, न ही कुछ पूछा और लगीं पीटने ....कलमुंहीं, पढाई के नाम पर तेरा यह नाटक चल रहा है .... वह पिटती रही और ढिठाई से कहती रही .... पीट ही तो लोगी... एक दिन इतना मारो कि मेरी जान ही चली जाये ...उनका हाथ पकड़कर अपने गले पर ले गई थी, लो मेरा गला दबाओ ...तुम्हें हमेशा के लिये मुझसे तुम्हें मुक्ति मिल जाये। उस दिन जाने कैसे पापा घर आ गये थे... उसको रोता देख मां से डांट कर बोले कि तुम इसको क्यों मारती हो?

तो वह छूटते ही बोलीं थी कि मेरी मां मुझे पीटतीं थीं इसलिये मैं भी इसे पीटती हूं।

पापा ने अपना माथा ठोंक लिया था।

अब मां के प्रति उसकी घृणा जड़ जमाती जा रही थी। वह उनके साथ ढिठाई से पेश आती। उनसे बात बात पर उलझ पड़ती।

वह गुमसुम रह कर अपनी पढाई में लगी रहती। वह मां का कोई कहना नहीं मानती न ही किसी की इज्जत करती। उसकी हरकतों से पापा भी परेशान हो जाते। दिन ब दिन वह उद्दण्ड होती जा रही थी।

उसके मन में पक्का विश्वास था कि यह पूजा पाठ, साधू बाबा केवल पैसा ऐंठने के लिये ही आते हैं ...यही वजह थी कि वह पापा से भी जुबान लड़ाती। वह किसी भी हवन पूजन, प्रसाद वितरण ऩा ही शामिल होती और ना ही सहयोग करती। उसके कारण अक्सर घर में अक्सर कहासुनी होती लेकिन वह अपनी जिद् पर अड़ी रहती ....इसी बीच उसका हाईस्कूल का रिजल्ट आया और उसकी मेहनत रंग लाई थी। उसने कॉलेज में टॉप किया था, उसके 92 प्रतिशत नंबर आये थे। बस उसने कह दिया कि उसे कोटा जाना है और फिर मां का हंगामा शुरू हो गया था कि नहीं जाना है ....लेकिन पापा ने उसे भेज दिया और वह इंजीनियर बन गई।

पापा की अपनी लापरवाही के कारण उनका स्टाफ उन्हें धोखा देता रहा.... वह सत्संग में मगन रह कर पूजा पाठ में लगे रहे,

जब तक पापा को होश आया उनका बिजनेस बाबा लोगों द्वारा आयोजित पूजा पाठ, चढावे के हवनकुण्ड में स्वाहा हो चुका था। वह नितांत अकेले हो गये फिर उन्हें पैरालिसिस का अटैक हुआ, कोई गुरू या बाबा या पूजा पाठ काम नहीं आया था, उसने खूब दौड़ भाग की लेकिन निराश पापा जीवन की जंग हार गये .... अब मां अकेली रह गईं तो वह बीना को उनके पास रख कर उसने अपना कर्तव्य निभा दिया।

गूंज का चेहरा रोष से लाल हो रहा था तो आंखों से अश्रुधारा को भी वह रोक सकने में समर्थ नहीं हो पाई थी।

‘’पार्थ, I hate her…..’’

I understand…. गूंज, तुम्हारे सिवा उनका इस दुनिया में कोई नहीं....इसलिये तुम्हें उनके पास जाना चाहिये.. शायद उनके मन में पश्चाताप् हो, इसलिये वह तुमसे माफी मांगना चाहती हों ....यदि तुम्हें मंजूर हो तो उन्हें बंग्लुरु शिफ्ट करने में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं। यहां के ओल्ड एज होम का ऩंबर मुझे मालूम है। यदि तुम्हारी परमिशन हो तो मैं बात करूं...

पार्थ, मैं उनकी शक्ल देखना भी नहीं चाहती....

डियर लेकिन सोचो एक मजबूर बुजुर्ग, वह भी तुम्हारी अपनी मां, बेड पर लेटी हुई तुम्हारी ओर नजरें लगाये तुम्हें आशा भरी निगाहों से निहार रहीं हैं ...

वह बुदबुदा कर स्वगत् ही बोली थी, ‘’कहीं पहुंचने में हम लोगों को देर न हो जाये।‘’

गूंज सिसकती हुई मोबाइल से फ्लाइट की टिकट बुक करने में लग गई थी....


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