ज़िंदगी.......
ज़िंदगी.......
यहाँ एक पल का भरोसा नहीं है जिंदगी का
और आदमी ना जाने किस अकड में जी रहा है
कल जो शख्स शोहरातों में जिंदगी जी रहा था
वो एक सफेद चादर में लिपटा राह तक रहा है
कोई तो उसके शरीर को शमशान तक ले चलें
उसके अपने लोग भी बेबस-खामोश देख रहे हैं
जीवन के डाल पे बैठ़ा पंछी उड़ चला अनजानी दुनिया में
अपना घोंसला, अपने साथी सबको रख के परे जा रहा है
अधमरी सी कई कोशिशें जिंदगी जीने की करके देखी
पर एक साँस भी न मिली शरीर से आत्मा का साथ छूट रहा है
कुछ नहीं यादों के सिवा जिंदगी में हर एक पल खुशी से जियो
वरना पता नहीं कहाँ से मौत का फरमान आ रहा है।