ज़िंदगी का दंश !
ज़िंदगी का दंश !
अब सहा जाता नहीं है
ज़िंदगी का दंश
काश ! पंछी की तरह
मुझको भी होते पंख
कुछ है तन की
कुछ है मन की
आग बढ़ती है
बदन की
पूर्णता में ढूँढ़ता हूँ
ज़िंदगी का अंश
काश ! पंछी की तरह
मुझको भी होते पंख
पाके खोया
खो के पाया
दूर होती
अपनी छाया
आह जीवन वाह जीवन
क्यों बदलता रंग
काश।
