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ज़ीवन-प्रज्ञता

ज़ीवन-प्रज्ञता

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जीवन के साग़र से,

बड़े गहरे जा कर के,

कुछ तिनके बटोरे हैं।


केवल तिनके न मानो तुम,

ये जीवन की कमाई है,

बड़ी मेहनत कर के,

ये पूंजी हमने पाई है।


देकर जा रहे तुमको,

रखना संभाल कर इनको,

जीवन में काम आयेंगे,

अनुभव साथ लायेंगे।


साथ तो हमारा है ही हमेशा,

हाथ ऊपर तुम्हारे रहेगा हमेशा,

करना जीवन में जो दिल चाहे,

ख़तरे मोल लेना जग में,

बढ़-चढ़ कर हमेशा।


विपदाओं का सामना होता है खड़े होकर,

झुकते हैं तो ख़ुद को,

हम ख़ुद ही तोड़ लेते हैं।


जैसे हारने वाली सेना के सिपाही,

बिन मन के,

विरोधी राजा के सामने,

हाथ जोड़ लेते हैं।


दृढ़-निश्यची ही बढ़ते है आगे,

कमज़ोर मन वालों को कौन पूछता है ?


शांत-चित्त से करें,

हर परिस्थिति का सामना,

बड़ी से बड़ी पहेली वही बूझता है।


अपनों के हमेशा साथ में चलना,

समभाव की भावना अंदर पैदा करना।


जीते हैं अपने लिए,

तो पशु भी जीवन भर,

दूसरों की जीवन-ज्योति,

बढ़ाने वाला बनना।


पर-अश्रु देख़-कर कुलबुलाये मन,

सच्चे मनुष्य की पहचान यही है।

तुम्हारे प्रयास से खिले किसी का चेहरा

सच में बच्चे ये बात बड़ी है।।


जीवन-साग़र में तैरती कश्ती को,

सही दिशा में तुम्हें मोड़ देना है।

किस ओर जायेगी तुम्हारी कश्ती,

अब आगे से तुम्हें सोचना है।


यही जीवन का सार है बच्चे,

बुद्धि को सदैव शांत-स्वरूप रख को,

हर पल ख़ुशी का गीत गाना है।


हर समय सकारात्मक सोच कर,

तुमको बस आगे ही बढ़ते जाना है।।



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