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Paras K. Gupta

Abstract

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Paras K. Gupta

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नितान्त_वास्तविकता

नितान्त_वास्तविकता

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जीवन,

पृथ्वी पर,

पंच-तत्वों से निर्मित,

आदि-अनंत के बीच विस्तारित,

एक-रूप, सर्वत्र,

एक जीवित सत्व,


क्षिति अंबु अनल व्योम समीर,

लेकर आनुपातिक मात्रा,

रचे इतने अद्भुत जीवन,

औऱ रचने की इसी प्रक्रिया में

गढ़ी एक चलायमान मूर्ति भी,

मानती है स्वयं को जो,

बाकी सारे जीवन मे सर्वश्रेष्ठ,


 हां वही,

मनुष्य-जीवन,

पृथ्वी पर,

उस विशाल जीवन से,

करता है ग्रहण केवल,

अपने हिस्से का भाग,

परंतु विभ्रम उसे ये है,


कि वह है कोई विशिष्ट,

जन्म हुआ उसका पृथ्वी पर,

करने को कुछ विशिष्ट,

जैसे करेगा वो कोई उपकार सृष्टि पर,

अपनी मैली पड़ चुकी,

आकांक्षाओं की पूर्ति करके,


परंतु अनन्तः,

वह सृष्टि-स्रोत,

करा ही देता है दर्शन,

उस सत्य का हर पुरूष को,

कि 

प्रकृति ही है माँ,

प्रकृति ही है अधिपुरूष,

वही है रचयिता

सब जीवों की,

पालनकर्ता भी,


और करे यदि कोई जीव-प्रजाति,

प्रकृति के दिए,

अपने क्षुद्र तुच्छ अधिकारों का अतिक्रमण,

तो बनने में झिझकती नहीं क्षण भर भी,

संहारकर्ता भी ।


इसीलिए करें प्रणाम,

उस बृहत्काय अंश को,

और जानकर अपनी सीमाएं,

करें व्यवहार कुछ ऐसे,

कि सभी प्रकार के जीवन,

पृथ्वी पर रहें बनाए सामंजस्य,


बना रहे संतुलन,

ना हो कोई उथल-पुथल,

और कर सकें हम,

माँ द्वारा दी हुई,


सारी शक्तियों का अधिकतम उपयोग,

माँ के हित में ही,

क्योंकि छुपा हुआ है रहस्य,

हित का हमारे,

हमारी माँ के हित में ही।


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