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Paras K. Gupta

Abstract Inspirational Others

3.1  

Paras K. Gupta

Abstract Inspirational Others

' माँ - ख़ास'

' माँ - ख़ास'

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माँ, मुझे अपनी गोद में रहने दो

बाक़ी दुनिया में नहीं मिली ठंडक कहीं

अपने आग़ोश की गर्मी सहने दो


थक-हार कर आया तेरे पास फ़िर

थोड़ी देर तो मीठी नींद में सोने दो

मुझे पता है, तेरा आँचल बहुत बड़ा है

अपनापन तो जैसे, टुकड़े-टुकड़े बिखरा पड़ा है

इसी अपनेपन के ढेर से, अपने भाग का भाग्य लीये

मेरी पहचान के कुछ टुकड़े तो समेटने दो


बहुत ढूंढी शांति बाहर, लेकिन पता नहीं ?

किस कोने में छिपी बैठी है न जाने कहीं ?

घूमते-घूमते ख़त्म हुई, जब खोज मेरी,

तो पहुंचा वहीं, जहाँ से होती थी शुरुआत मेरी

हां माँ तेरी विस्तारित गोद में

शांति का साग़र जो छुपा था बाल पके आँखें हुई बड़ी

तब जाकर मुझे पता चला


माँ, मुझे अपनी गोद में ही रहने दो






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