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Paras K. Gupta

Others

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Paras K. Gupta

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हॉस्टल से साधुवाद

हॉस्टल से साधुवाद

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आरोप लगाना, सब करेंगे,

छोटी भूल पर डाँटने वाला कोई नहीं।

तकलीफ़ है क्या, सब प्रश्न करेंगे,

आँखों में झलकते दर्द को

समझने वाला कोई नहीं।


शरीर के घाव को सब ठीक करेंगे,

हृदय-अग्नि बुझाने वाला कोई नहीं।

ख़ाना खा लिया, सब पूछेंगे,

भूख़ बची है? पूछेगा कोई नहीं

पीठ थपथपाने वाले बहुत मिलेंगे,

मन सहलाने वाला कोई नहीं।


कोई नहीं इस दुनिया में,

जो परिवार वालों सा प्यार दे।

कोई नहीं इस दुनिया में,

जो माँ-बाप वाला आशीर्वाद दे।

सों बंधुओं, सखाओं, मित्रों मेरे,

तुम सब से यही है विनती मेरी।

मात-पिता परिवार की छाया,

सबको युहीं नहीं मिलती।


जब तक हो माँ-बाप के संग,

उन सबका सम्मान करो।

जब जाना पड़े दूर उनसे तब भी,

उनका थोड़ा-सा ध्यान करो

क्योंकि होगे जब तुम घर से दूर,

तब भी तुम्हारी चिंता उन्हें सताएगी।

यही चिंता फिर हाल बन तुम तक,

फ़ोन के रूप में आएगी।


क्या खाया क्या नहीं खाया,

फिर तुमसे पूछा जायेगा।

तुम उत्तर में हां-हां कहोगे,

और कुछ तुमसे कहा ना जा पाएगा।

ज़ीवन-भर यही सिलसिला प्यार का,

ख़्याल का चलता जायेगा।

मगर जाओगे जब तुम घर से दूर,

तभी ये एहसास तुम्हें आ पाएगा।


जब आ जाएगी तुम पर घर की ज़िम्मेदारी,

माँ-बाप बूढ़े हो जाएंगे।

मानव-जीवन की सीमा के तहत,

वो तुमसे वही व्यवहार अब चाहेंगे।

तुम्हारा ये कर्त्तव्य है कि तुम

उनसे वही व्यवहार करो।

उनकी छोटी-छोटी जरूरतों का,

तुम ख़ुद से ख़्याल रखो।


ग़र हो गए विमुख तुम कर्त्तव्य-पथ से,

और एक दिन ऐसा आ गया।

हंस चुग रहा दाना-तिनका,

और कौवा मोती खा रहा।

फिर तुम्हारा किंकर्तव्यविमूढ़ मन,

अधिक दिनों तक स्थिर नहीं रह पाएगा।

क्योंकि ऊपरवाला तुम्हें

कभी फिर माफ़ नहीं कर पाएगा।

ऊपरवाला तुम्हें कभी

फिर माफ़ नहीं कर पाएगा।


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