अनुग्रहित
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कैसे चुकता होगा ये कर,
प्यार का मुझ पर जो बक़ाया हुआ है।
मुझ नासमझ नादान का रिश्ता,
दोनों हाथों से तुमने जो अपनाया हुआ है।
बेकार ही लोग कहते हैं इस जग में,
प्यार की गुणवत्ता का ह्रास हुआ है।
मग़र निवेश करोगे तो दुगुना मिलेगा,
मैंने तो रिश्ते में यही पाया है।
मैं चाहता हूँ ये समय रुके,
घड़ी की सुईंया धीरे-धीरे चले।
बीते जो पल साथ में उनके,
ताकि उनकी अवधि थोड़ी ज्यादा लगे।
मैं समझता हूँ इन पलों के मायने,
जब साथ तुम्हारा मेरे संग है।
देना चाहता हूँ प्यार तुम्हें इतना,
फिर जग में तुम्हें न कोई पराया लगे।
मेरे प्रेम की उजली किरणें,
तुम तक तो जाती होंगी।
कितना तेज़ है इन किरणों में,
बार-बार दुहराती होंगी।
पर तुम क्यों ये समझ ना पाती ?
मेरे सपनों के सागर में,
कितनी राते अकुलाती होंगी।।