यूँ ही
यूँ ही
शामिल है तू मेरी हर कल्पना में
कभी उतर कर आ सम्मुख पहलू की सतह महका दे।
आगोश में भरकर तेरे सर को चूमकर तेरा सजदा कर लूँ
दिल में बसर तू खुदा की जगह कैसे इस बात से इनकार कर दूँ।
हंसी पर ठहरी हो, निगाहों में बसी हो खयालों की धूप बन
धड़कन पर राज करती हो।
ज़िंदा हूँ दम से तेरे हर शै में तेरी खुशबू है
नाज़नीन बता क्यूँ तू मेरी बे-नूर ज़िस्त में रंगीनियों सी बसती है।
ना देखा ना मिले कभी, इकरार ना इज़हार हुआ
बस यूँ ही तसव्वुर की दुनिया में सरताज सी रहती हो।