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दयाल शरण

Abstract

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दयाल शरण

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यकीन

यकीन

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बंद दरवाज़ों की

दरारों से ना

झांका कीजे

मन करे जब भी

तो रूबरू होने

आ जाया कीजे।


चिटकनी, कुंदियां

बन्द करने को

उकसाने लगे

दिल की सुनिये

दरवाजों की

ना सुना कीजे।


मैं, वहीं हूँ 

कब तलक साबित 

करना होगा

तुम वही हो

मेरे यकीन पे

भरोसा कीजे।


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