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Prafulla Kumar Tripathi

Abstract

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Prafulla Kumar Tripathi

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यह लखनऊ है लखनऊ !

यह लखनऊ है लखनऊ !

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यह लखनऊ है,

लखनऊ है, लखनऊ,

इसकी अदा मैं क्या कहूँ


चाँद से थोड़ा चुरा कर चांदनी,

जुबां पर मानो है बिखरी चाशनी

रूप - रंग - रस - गंध की चादर तनी,

शहर जिस पर नाज़ करता है ज़मी


यह लखनऊ

परियां उतरती हैं यहाँ ज़मीन पर,

मीठी जुबां भारी पड़े शमशीर पर

कत्थक की बंदिश गोमती के तीर पर,

है नाज़ सबको दावत-ऐ-लज़ीज़ पर


यह लखनऊ...

अदबी पतंगें छू रही हैं आसमां,

इंसानियत की जल रही हरदम शमा

आदाब का अद्भुत सलीका है जहां,

ज़रदोज़ी-चिकन का हुनर फैला यहाँ

यह लखनऊ..।


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