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Ruchika Rai

Abstract Inspirational

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Ruchika Rai

Abstract Inspirational

सवेरे

सवेरे

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सूरज की किरणें जब आती,

मन में एक नई उम्मीद जगाती,

आलस्य छोड़ सब जुट जाते,

नव विकास का मार्ग दिखाती।


मन के गहन तिमिर मिटाकर,

आशाओं के है दीप जलाती।

नई चेतना नये निर्माण का

यह नव सरल पथ को दिखलाती।


खेत की ओर चलते किसान है,

धरती से सोना उपजाने को।

चल पड़े मजदूर काम पर,

नव निर्माण का नींव बनाने को।


धीरे धीरे सूरज मद्धम हुआ,

पेड़ों के पीछे छिप जाने को।

नदियों के जल बीच उदित हुआ था सुबह सवेरे,

संध्याकाल में डूब रहा था 

उसके बीच मिल जाने को।


मन भयभीत हुआ निराश

रात की घनघोर कालिमा देख।

तभी जुगनू सी आशाएं जन्म लीं

रात हुआ है सुस्ताने को।


देखो फिर कल होगा सवेरा,

नई उम्मीदों के पंख पसारे।

नये जोश नये उमंग के साथ

विकास की नई इबारत लिखने को।


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