अटल बिहारी बाजपेयी
अटल बिहारी बाजपेयी
ब्रह्ममुहुर्त में जन्म लिया, धूल और धुँए की बस्ती में।
राजपाट न मिला उन्हें, बाप दादा की हस्ती में।।
विरासत में मिली कविता, और विशुद्ध भारतीय आचरण।
भीष्मपितामह से रहे जीवनभर, किया देश पर तन मन अर्पण।।
अगस्त क्रांति सहभागी बन, बजा दिया बिगुल क्रांति का।
कारगिल में दुश्मन के छक्के छुड़ा, मान बढाया भारत का।।
पोखरण में अणु परीक्षण कर, जग को कर दिया अचंभित।
संयुक्त राष्ट्र संघ में राष्ट्रभाषा, हिंदी में किया संबोधित।।
नपी तुली और बेबाक वाणी से, हँसी फुलझड़ियों में बतियाते।
अपने अकाट्य तर्कों के संग, अपना लोहा पक्ष विपक्ष से मनवाते।।
देखा था एक सपना जिसने, भारत होगा साधन संपन्नयुक्त।
भूख भय, निरक्षता,अभाव से, सदा सदा के लिए मुक्त।।
वो कहते थे, यह वंदन की भूमि है,यह अभिनंदन की भूमि है।
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।।
इसका कंकर शंकर है, इसका बिंदु गंगाजल है।
जिएंगे तो इसके लिए, मरेंगे तो इसके लिए यह मेरा उद्घोषण है।।
राम सी थी संकल्पशक्ति,चाणक्य सी नीति बुद्धिमत्ता।
कृष्ण सी राजनीतिक कुशलता, ओजस्विता, वाकपटुता, कर्मठता।।
भारत रत्न अटल कहलाये, पद्मविभूषण अलकरण पाये।
धन्य है हम भारतवासी, तीन बार ऐसे प्रधानमंत्री पाये।।