मां गंगा
मां गंगा
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मैं
गंगोत्री की कोख से जन्मी
शंकर जी की जटा से निकली
विस्तृत हो बंगाल तक बह चली
सुजलाम सफलाम धरती करती
जनमानस का पाप मिटाती
भवसागर से पार लगाती
सबकी पीड़ा को मैं जानूँ
हर दर्द को मैं पहचानूं
कैसा ये कलयुग आया
मेरी पीड़ा समझ ना पाया
कर दिया मुझे मैला कुचेला
फिर नारी का आ गया झमेला
धरती को तुमने छेड़ा
जननी को अनाथालय छोड़ा
माँ कहते कहते नहीं थकते तुम
अपनी हरकतों से भी बाज नहीं आते तुम
हमारी पवित्रता पर ना लगाओ कालिख
सुधर जाओ इंसान, हो जाओ बालिग
मुझमें डुबकी लगा नहीं मुक्ति पाओगे
अपने कर्मों से भवसागर तर जाओगे।
