ऊंचे कद
ऊंचे कद
ऊँची ऊँची महल अटारी
ऊँचे पद और ऊँचे नाम
ऊँचाई पर होता है बस
एकाकीपन और अभिमान
हिमगिरी पर होती ऊँचाई
और ठंडेपन का एहसास
पाँव तले ना दूब उगती
ना जीवन का कोई प्रमाण
जल जीवन देता है लेकिन
ऊँचाई पर जम जाता
जीवन और सूनेपन का
देखो ये कैसा नाता
हिमगिरी पर गिरी बूँद भी
अपनी किस्मत पर रोती है
इठलाती नदियाँ में मिलती
कलकल करती बहती मै
ऊँचे ऊँचे सघन पेड़ जब
फैलाते अपनी बांहे
पाँव तले तब दूब उगती
नन्ही कलियाँ मुस्काये
कलरव करते पँछी मिलते
थका पथिक भी ले विश्राम
पवन सुगंधित कर देती है
उस पल जीवन के आयाम
ऊंचाई संग विस्तारित मन
जीवन को सुगंधित करता है
जैसे पारस को छूने से
लोहा सोना बनता है
शिखरों के वंदन करने से
मिलता ना हमें कोई भगवान
दुखियों के आँसू पोछे तो
बन जाते स्वयं भगवान
है प्रभु
ऊँचे कद में ना देना
तुम कोई ऐसा बौनापन
आसमान को छूते छूते
छुटे ना मेरा आँगन
है प्रभु दे दो अगर ऊँचाई
तो संग देना ऐसा मन
गैरो के संग चलते चलते
अपनो को ले चलू में संग।
