ग़ज़ल
ग़ज़ल
उसने हर गम को कहीं, दिल में छुपाया होगा,
उसने हर बार यूं ही, खुद को सताया होगा।।
है ॲंधेरा ही ॲंधेरा, हर तरफ फैला हुआ,
उसने उठकर के चराग़ों को बुझाया होगा।।
उसके होंठों पे हॅंसी, ऑंख में नमी सी है,
अपने सीने में समन्दर, को बिठाया होगा।।
देखा बिखरा हुआ है ख़्वाब जमीं पर ऐसे,
जिसको वर्षों से कभी दिल में सजाया होगा।।
उसके हर ज़ख्म दिखाई न दिए क्यूॅं हमको,
मेरी खुशियों के लिए ज़ख्म छिपाया होगा।।
वो गिलाफों से लिपटकर रात रोया बहुत,
तब कहीं उसने हमें सुबहा हॅंसाया होगा।।
कैसे कह दूॅं की गलत वो है 'विशू' तू सही,
उसके ज़ख्मों पे नमक तुमने लगाया होगा।।