मौत का बस सामान लिए हैं।
मौत का बस सामान लिए हैं।
जीवन में अभिमान लिए हैं।।
मन से निर्धन धनवान बने हैं,
जीवन में अभिमान लिए हैं।।
व्यभिचारी, पाखण्डी, पापी,
मौत का बस सामान लिए हैं।
आभूषण तन वस्त्र कीमती,
फिर नग्न अवस्था में हैं।
बोल में मिश्री घुली हुई पर,
जीता पल-पल नफ़रत में है।
बड़ी बड़ी भाषणबाज़ी संग,
बड़े बड़े उपदेश लिए हैं।
मन से निर्धन धनवान बने हैं
जीवन में अभिमान लिए हैं।।
मज़हब के नव बाजारों में
नफ़रत के दुकान सजाएं।
ये समाज को बांटने वाले,
जात पात पर आग लगाएं।
चौराहों पर खड़े हैं ढोंगी,
हाथ में ये विष बेल लिए हैं।
मन से निर्धन धनवान बने हैं
जीवन में अभिमान लिए हैं।।
लाचारी में जीवन जीकर,
सत्पथ हरि आधार बनाया।
भूख गरीबी में रहकर भी,
अपना जीवन धर्म निभाया।
हमने ऐसे भिखमंगे देखे जो,
धन-दौलत भण्डार लिए हैं।
मन से निर्धन धनवान बने हैं
जीवन में अभिमान लिए हैं।।
कर्म अनैतिक बोल हैं नैतिक,
फल फूल रहे अत्याचारी।
राजनीति में उच्च शिखर पर,
होते शोभित अब दुराचारी।
अपराधी सज्जन के डग में,
जाने कितनों के प्राण लिए हैं।
मन से निर्धन धनवान बने हैं
जीवन में अभिमान लिए हैं।।
दुष्कर्मों को छिपा के आपने,
नित मंचों पर प्रवचन करते।
अनाचरण दुराचार लिप्त नित,
लोभ-मोह मद काम में रहते।
मंदिर मस्जिद भटक रहे नित,
पाप की गठरी बोझ लिए हैं।
मन से निर्धन धनवान बने हैं
जीवन में अभिमान लिए हैं।।
