मरती रही मुहब्बत मिटती रही हया
मरती रही मुहब्बत मिटती रही हया
जलते हुए श-हर में सिसकती रही हया
मरती रही मुहब्बत मिटती रही हया
हुस्न-ए-बाज़ार में भी लगती हैं बोलियां
मीना बाजार में यूं बिकती रही हया
शीशे के इन महलों में उजयाली रोती
मुर्दों को फ़रियाद सुनाती रही हया
इश्क़-ए-जान-ए-वफ़ा तड़पती हुई मिली
रातों को हर रोज़ बिलखती रही हया
कतरा कतरा बिखरे वादे राह-ए-वफ़ा
आखों में भर ख़ून टहलती रही हया
राह-ए-मुहब्बत चलते खंजर भोंक दिया
पग-पग कत्लेआम सिहरती रही हया
चलना पड़ेगा हमको यूं रहबरों के साथ
हर हुक्मरां के आगे गिरती रही हया
किस मोड़ पे ले आई रंगीनी-ए-हयात
बे-पर्दा हो विशू वो निकलती रही हया।
